मानसिक रूप से कोटला में मौजूद नहीं थे अफ्रीकी
मेरे खयाल से दक्षिण अफ्रीका मानसिक रूप से कमजोर पड़ गई है। खासतौर पर दो टेस्ट मैच गंवाने के बाद से ही वे हर वक्त बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। उपमहाद्वीप की खबरों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है जब वे विदेश दौरे खासकर ऑस्ट्रेलिया जाते हैं।
(वसीम अकरम का कॉलम)
मेरे खयाल से दक्षिण अफ्रीका मानसिक रूप से कमजोर पड़ गई है। खासतौर पर दो टेस्ट मैच गंवाने के बाद से ही वे हर वक्त बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। उपमहाद्वीप की टीमों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है जब वे विदेश दौरे खासकर ऑस्ट्रेलिया जाते हैं। आप शुरुआती दो टेस्ट मैच में पूरी ऊर्जा लगा देते हैं और मैच गंवा देने के बाद बस दौरे के खत्म होने का इंतजार करने लगते हैं।
मानसिक रूप से आप प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं, लेकिन दिमाग में कहीं यह बात बैठी होती है कि आप वहां नहीं हैं। कुछ ऐसा ही कोटला में दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ हो रहा है। मानसिक रूप से कोटला में वे मौजूद नहीं थे। इस पिच पर गेंदबाजों और बल्लेबाजों दोनों के लिए कुछ न कुछ था। यहां खतरनाक टर्न नहीं था, यह ठेठ उपमहाद्वीप पिच की तरह है। लेकिन जिस तरह से दक्षिण अफ्रीकी टीम ने भारत के सामने जिस तरह से आत्मसमर्पण किया है वह चकित करने वाला है।
विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे ने दिखाया कि रिवर्स स्विंग से कैसे निपटना चाहिए। उन्होंने फ्रंटफुट पर आकर गेंद को इनस्विंग होने से रोका। ज्यादातर दक्षिण अफ्रीकी युवा बल्लेबाज उछाल वाली पिच पर खेलकर बड़े हुए हैं, ऐसे में वे ज्यादा गेंद को बैकफुट पर जाकर खेलते हैं। ऐसे में वे ज्यादातर समय पगबाधा हो जाते हैं। कोई भी बल्लेबाज जो रिवर्स स्विंग से निपटने के लिए बैकफुट पर जाएगा वह गेंदबाज के लिए आसान शिकार हो सकता है। मुझे याद है कि मैंने और वकार ने मिलकर ऐसे न जाने कितने ही विकेट झटके।
यदि मैं विराट कोहली की जगह होता तो मैं यही समझ कर चलता कि मेरे पास शतक पूरा करने के लिए बहुत वक्त है और चौथे दिन की सुबह कुछ घंटे बल्लेबाजी करते हुए अपना शतक पूरा करता। उसके बाद भारत कभी भी अपनी पारी घोषित कर सकता है। अभी भी 180 ओवर का खेल बचा हुआ है। ऐसे में 3-0 की यादगार जीत दर्ज करने के लिए भारत के पास पर्याप्त वक्त है।
(टीसीएम)