सीरीज के जरिए खिलाडि़यों का स्वभाव भी सामने आया
मेजबान श्रीलंका और भारत के बीच हाल ही में खत्म हुई टेस्ट सीरीज टेस्ट क्रिकेट के बेहतरीन उदाहरणों में से एक थी।
(गावस्कर का कॉलम)
मेजबान श्रीलंका और भारत के बीच हाल ही में खत्म हुई टेस्ट सीरीज टेस्ट क्रिकेट के बेहतरीन उदाहरणों में से एक थी। बल्ले और गेंद के बीच की यह प्रतियोगिता उत्साहित करने वाली थी और ये सिर्फ कुशलता की असल परीक्षा नहीं थी, बल्कि दोनों टीमों के खिलाडि़यों का स्वभाव भी इसके जरिए सामने आया। पहली बार पूरी सीरीज का नेतृत्व कर रहे भारत के कप्तान विराट कोहली आक्रामक क्रिकेट खेलने की घोषित इच्छा के साथ इसमें शामिल हुए थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, बल्कि कई ऐसे मौके आए जब उनका खेल विवकेपूर्ण क्रिकेटर के रूप में दिखाई दिया, जो टीम के लिए उस वक्त बहुत जरूरी भी था। जैसे ही मुश्किल वक्त खत्म हुआ भारतीय टीम ने लंकाइयों पर अटैक करने का मौका नहीं चूका और भारत 22 साल के लंबे इंतजार के बाद आसानी से सीरीज जीतकर वापस घर लौटा। इसका श्रेय पहला टेस्ट हारने के बाद एक साथ जुटने की शैली के लिए टीम के हर व्यक्ति को दिया जाना चाहिए। लेकिन खासतौर पर इसमें कप्तान और टीम के निदेशक रवि शास्त्री की अहम भूमिका रही, जिन्होंने हार के बाद भी ड्रेसिंग रूम में किसी तरह का नकारात्मक माहौल नहीं बनने दी।
दुर्भाग्य से इशांत को सीरीज में उनके आक्रोश के कारण मुसीबत का सामना करना पड़ा। उन्हें एक टेस्ट के लिए ड्रेसिंग रूम में बैठना होगा। आशा है कि इस समय का इस्तेमाल वह अपनी प्रतिक्रिया के बारे में सोचने पर करेंगे। अटैकिंग और आक्रामक क्रिकेट में अंतर है। 1970 और 80 की वेस्टइंडीज टीम ने अटैकिंग क्रिकेट खेला और हर सीरीज जीती। वहीं 1990 और 2000 के मध्य में जीत दर्ज करने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम ने आक्रामक क्रिकेट खेला। आज भी उस कैरेबियाई टीम की तारीफ की जाती है और उन्हें क्रिकेट खेलने के उनके तरीके के लिए पसंद किया जाता है। मगर क्या यही ऑस्ट्रेलिया के लिए कहा जा सकता है? यह इशांत और कोहली के लिए सोच का विषय होना चाहिए।