भारतीय गेंदबाजों को दिखाना होगा दम: गावस्कर
ऑस्ट्रेलियाई टीम थोड़ा लडख़ड़ाई, डगमगाई.. लेकिन आखिर में यह तय कर लिया कि गाबा का किला सुरक्षित रहे। चार दिन में ही उन्होंने जीत दर्ज कर ली। स्टीवन स्मिथ को अपने संघर्षपूर्ण शतक और कप्तान के तौर पर अपने पहले ही टेस्ट में जिस तरह टीम को हैंडल किया, उसके
(गावस्कर का कॉलम)
ऑस्ट्रेलियाई टीम थोड़ा लडख़ड़ाई, डगमगाई.. लेकिन आखिर में यह तय कर लिया कि गाबा का किला सुरक्षित रहे। चार दिन में ही उन्होंने जीत दर्ज कर ली। स्टीवन स्मिथ को अपने संघर्षपूर्ण शतक और कप्तान के तौर पर अपने पहले ही टेस्ट में जिस तरह टीम को हैंडल किया, उसके लिए 'मैन ऑफ द मैच' चुना गया। लेकिन जिस खिलाड़ी ने जीत की भूमिका लिखी, वह मिशेल जॉनसन थे। उन्होंने ही बल्ले और गेंद से तीसरे और चौथे दिन मैच का नतीजा तय किया और भारतीय टीम को हार के गर्त में धकेल दिया।
भारत की बल्लेबाजी विदेशी पिचों पर अपने शबाब पर न दिख पाती हो, लेकिन गेंदबाजों को ऐसी परिस्थितियों का आनंद लेना चाहिए, जो उनके पक्ष में हैं। दुर्भाग्य ये है कि अभी तक गेंदबाज इसमें कामयाब नहीं हुए हैं। जब तक गेंदबाज बेहतर प्रदर्शन करना शुरू नहीं करते, भारतीय टीम इस दौरे पर जीत के लिए संघर्ष ही करती दिखाई देगी।
सीरीज से पहले ही भारत ने अपना रुख साफ कर दिया था कि वे आक्रामक रवैया अख्तियार करेंगे और ऑस्ट्रेलिया को उसी के अंदाज में जवाब देंगे। बल्ले और गेंद से आक्रामक होना अलग बात है। जबकि मुंह से आक्रामकता दिखाना बिल्कुल अलग है। जुबानी जंग में कोई टीम ऑस्ट्रेलिया को हराने में कामयाब नहीं हो सकती। ऑस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों को इसकी आदत जूनियर क्रिकेट के दिनों से होती है। इसलिए उन्हें इसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। दूसरी तरफ आमतौर पर भारतीय सज्जन होते हैं। अगर वे जुबानी तौर पर आक्रामक होते भी हैं, तो इसका उनके दिमाग पर असर पड़ता है। आखिर में ऑस्ट्रेलिया के ही हिस्से जीत आई। विडंबना ये है कि फिलिप ह्यूज की मौत और उसके बाद क्रिकेट जगत में दुख का माहौल छा जाने के बाद ऑस्ट्रेलियाई टीम ने अपना तरीका बदला है। उन्होंने जुबानी जंग से अलग रहने का फैसला किया है, लेकिन इसका असर मैदान पर उनकी आक्रामकता पर नहीं पड़ा है। भारतीयों को जुबानी जंग शुरू करते देखना और लगातार इसे बढ़ाते देखा जाना अजीब था। ये सब उनके खिलाफ ही गया।
हमारे पास महेंद्र सिंह धौनी के रूप में खेल के सबसे बड़े जेंटलमैन में से एक हैं। उन्होंने अपनी विपक्षी टीम को शायद ही कभी कुछ कहा हो। यह सही है कि कि जब सामने वाली टीम हमला करती है, तो वह कभी पीछे हटने में यकीन नहीं रखते। लेकिन इसके बावजूद उनकी भाषा ऐसी नहीं होती, जिसे आपत्तिजनक की श्रेणी में रखा जा सके। उनके जूनियर खिलाडिय़ों को जुबानी जंग करते देखना दुखद था। मैदान पर सिर्फ बल्ले और गेंद से अपनी बात रखनी चाहिए। यकीनन अगर आप को निशाना बनाया जाए, तो उसका जवाब देना चाहिए। लेकिन अपनी तरफ से कुछ ऐसा शुरू नहीं करना चाहिए, जिसे आप अंजाम तक न पहुंचा सकें। जुबानी जंग में भारतीयों को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कुछ हासिल नहीं होगा।