टेस्ट का रोमांच बढ़ाता है पांचवां दिन, तो क्या चार दिन का हो जाएगा क्रिकेट का सबसे लंबा प्रारूप
2023 से आइसीसी ने चार दिवसीय टेस्ट आयोजित कराने की बात कहकर माहौल बना दिया है।
नई दिल्ली, जेएनएन। पिछले 10 सालों में टी-20 की सफलता को देखते हुए क्रिकेट में बाजारवाद भी हावी हो गया है। दुनिया भर में चल रही लीग और फिर अंतरराष्ट्रीय सीमित ओवर के प्रारूप के बीच पांच दिन का टेस्ट खेलने से अब अंतररराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) को खिलाडि़यों के कार्य प्रबंधन की याद आई है। ऐसे में 2023 से आइसीसी ने चार दिवसीय टेस्ट आयोजित कराने की बात कहकर माहौल बना दिया है।
क्रिकेट के मूल प्रारूप से छेड़छाड़ के पीछे आइसीसी का बाजारवाद की ही साजिश नजर आती है, जो पांच दिन की जगह चार दिन का टेस्ट कराकर बचे दिनों में कोई अन्य सीमित ओवर प्रारूप का टूर्नामेंट कराना चाहती है। सवाल है कि 22 गज की पट्टी पर खेले जाने वाला टेस्ट प्रारूप खिलाडि़यों के लिए एक सबक है, जिसमें वह उतार-चढ़ाव, जीवन के हर एक पहलू से गुजरते हैं। शारीरिक और मानसिक हुनर परखने का भी पूरा मौका मिलता है। ऐसे में कैसे खिलाड़ी चार दिन के टेस्ट के लिए राजी हो पाएंगे?
10 साल में बदल गई परिस्थति : 2019 में सबसे ज्यादा 67 प्रतिशत टेस्ट मैच पूरे पांच दिन नहीं चल सके। यानी इससे पहले ही मैच का नतीजा आ गया। पांच दिन से पहले और परिणाम निकलने वाले मैचों की संख्या में इजाफे का कारण यह है कि टेस्ट खेलने वाले 12 देशों में मुश्किल से चार-पांच टीम ही एक-दूसरे को कड़ी चुनौती दे पाती हैं। टेस्ट क्रिकेट में भारत और ऑस्ट्रेलिया मजबूत टीमों में से एक हैं।
भारत ने पिछले ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर टेस्ट सीरीज 2-1 से अपने नाम की थी, एक मैच ड्रॉ रहा। ये चारों ही टेस्ट मैच पांच दिन तक चले। यानी दोनों ही टीम के खिलाडि़यों ने कड़ा संघर्ष दिखाया। वहीं श्रीलंका, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश ऐसी टीम हैं जो बदलाव के दौर से गुजर रही हैं। उनके पास टेस्ट स्तर के खिलाड़ी ही नहीं हैं। आइसीसी की विश्व टेस्ट चैपिंयनशिप को ही देख लें। इंग्लैंड जैसी मजबूत टीम न्यूजीलैंड दौरे पर सीरीज जरूर नहीं जीत पाई, लेकिन दोनों टेस्ट पांच दिन तक चले।
2019 एशेज सीरीज में खेले गए पांच मुकाबलों में मात्र दो ही चार दिन में खत्म हुए, जिसमें से तीसरे टेस्ट में इंग्लैंड पहली पारी में मात्र 67 रन पर ऑलआउट हुई और फिर बेन स्टोक्स की शानदार पारी की बदौलत एक विकेट से मैच जीत गई। ऐसे में जब भी टेस्ट क्रिकेट की मौजूदा मजबूत टीम आमने-सामने हुईं तो मैच पांच दिन तक पहुंचे। अगर आइसीसी चार दिन का टेस्ट करता है तो फिर मजबूत टीम के बीच चौथे दिन तक परिणाम बहुत कम देखने को मिलेंगे।
खत्म हो जाएगा आखिरी दिन का रोमांच : सही मायनों में अगर टेस्ट को चार दिन का कर दिया जाएगा तो फिर पांचवें दिन का रोमांच और पल-पल बदलने वाला मुकाबला देखने को नहीं मिलेगा। अक्सर देखा भी गया है खासकर भारत में गेंदबाज मैच के पांचवें दिन की पिच पर अधिक विकेट निकालते हैं। 2019 में खेले गए टेस्ट में चौथी पारी में विकेट निकालने की बात करें तो शीर्ष पांच गेंदबाजों ने 61 विकेट निकाले। पांचवें दिन कई बार मैच पलटते हैं। गेंदबाज और बल्लेबाजों के ऊपर पांचवें दिन मैच जिताने और बचाने का संघर्ष देखा जाता है।
तीन दिन से लेकर टाइमलैस : यहां पर चार दिन का टेस्ट कराने को लेकर माहौल बन गया है, लेकिन एक समय वो भी था जब टाइमलैस (समय की बाध्यता नहीं) टेस्ट मैच होते थे। तब करार करते हुए मैच खत्म होते थे। तीन दिन, चार दिन, पांच दिन, छह दिन और टाइमलैस टेस्ट जैसे बदलाव टेस्ट क्रिकेट ने देखे हैं। हालांकि, अभी तक खेले गए टेस्ट मैचों में से 81 प्रतिशत टेस्ट पांच दिन हुए हैं, जबकि पांच दिन के टेस्ट को छोड़कर अन्य टेस्ट (जिसमें तीन, चार, छह दिन या लाइमलैस टेस्ट शामिल हैं) सिर्फ 19 प्रतिशत हुए हैं।
तीन दिन के 121 टेस्ट अब तक खेले गए हैं, यहां टेस्ट क्रिकेट के शुरुआती दिनों की बात थी। कोई भी इन टेस्ट में ड्रॉ की उम्मीद करेगा, लेकिन तब पिच कवर नहीं रहती थी और तब स्कोर भी बहुत कम बनते थे। तीन दिन के 57 टेस्ट ड्रॉ रहे, यानी ड्रॉ का प्रतिशत 47 रहा। हालांकि, इनमें से 23 टेस्ट बारिश और 270 ओवर से कम फेंके जाने के कारण ड्रॉ रहे। रिकॉर्ड की ही बात करें तो 1930 में इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच खेले गए 209वें टेस्ट में 421 ओवर फेंके गए, यानी 140 ओवर प्रति दिन, लेकिन हाल के हालात को देखते हुए ऐसा करना मुमकिन ही नहीं है, क्योंकि आज के समय में स्पिनर और तेज गेंदबाज मुश्किल से अपने कोटे के 80 ओवर कर पाते हैं।
हालांकि अमूमन भारतीय टीम को साधारण दिन में 85 ओवर करने में मुश्किल आती है, लेकिन अंतिम दिन टेस्ट के वह परिणाम निकालने के लिए 95 ओवर भी कर जाते हैं, जिसमें रवींद्र जडेजा के दो मिनट के ओवर शामिल होते हैं। इसके बाद 1950 से चार दिन, पांच दिन और छह दिन के टेस्ट की शुरुआत हुई। इसके पीछे कोई बड़ा कारण नहीं रहा, लेकिन कमजोर टीम चार दिन का टेस्ट खेलना पसंद करती थीं। चार दिन का पिछला टेस्ट 24 से 27 जुलाई 2019 के बीच इंग्लैंड ने आयरलैंड के खिलाफ खेला था, जो तीन दिन में समाप्त हुआ और इंग्लैंड ने 143 रन से जीत दर्ज की।
पांच दिन के टेस्ट में मिले ज्यादा परिणाम: तीन और चार दिन के टेस्ट की परिणाम प्रतिशत लगभग समान रहा, लेकिन जब पांच दिन के टेस्ट हुए तो परिणाम का प्रतिशत बढ़ गया। टेस्ट क्रिकेट के शुरुआती 123 सालों में जीत का प्रतिशत 60 रहा था, लेकिन पिछले 18 सालों में परिणाम का प्रतिशत 76.8 पहुंच गया।
2010-19 में टीमों द्वारा पांच या उससे कम दिन में जीते मैच
टीम, 5 दिन, 4 दिन, 3 दिन, 2 दिन, कुल
अफगानिस्तान, 1, 1, 0, 0, 2
ऑस्ट्रेलिया, 25, 24, 8, 0, 57
बांग्लादेश, 5, 1, 4, 0, 10
इंग्लैंड, 21, 25, 11, 0, 57
भारत, 22, 23, 10, 1, 56
आयरलैंड, 0, 0, 0, 0, 0
न्यूजीलैंड, 17, 13, 2, 0, 32
पाकिस्तान, 18, 13, 2, 0, 33
दक्षिण अफ्रीका, 12, 23, 9, 1, 45
श्रीलंका, 16, 10, 5, 0, 31
वेस्टइंडीज, 10, 5, 7, 0, 22
जिंबाब्वे, 2, 2, 0, 0, 0, 4
कुल, 149, 140, 58, 2, 349
मैच के दिन, टेस्ट, परिणाम, ड्रॉ, परिणाम प्रतिशत
3 दिन, 121, 65, 56, 53.7
4 दिन, 133, 71, 62, 53.7
5 दिन, 1946, 1327, 619, 68.2
6 दिन, 78, 53, 25, 67.9
टाइमलैस, 100, 96, 4, 96.0
मैच के दिन, टेस्ट, परिणाम, ड्रॉ, परिणाम प्रतिशत
5 दिन (1877-1999), 1050, 628, 422, 59.8
5 दिन (2000-2019), 897, 699, 202, 77.9
नंबर गेम :
- 349 में से 149 मैच पिछले 10 साल में टीमों ने पांच दिन में जीते, जिसका प्रतिशत 42.7 रहा
- 349 में से 200 मैच पिछले 10 साल में टीमों ने चार या उससे कम दिन में जीते, जिसका प्रतिशत 57.7 रहा
- 57 मुकाबले सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड ने चार या उससे कम दिन में जीते, इसके बाद भारतीय टीम ने 56 मैच जीते
- 2014 में 34 प्रतिशत मैच पूरे पांच दिन नहीं चल पाए, 2015 में 40 प्रतिशत, 2016 में 38 प्रतिशत, 2017 में 49 प्रतिशत, 2018 में 56 और 2019 में 67 प्रतिशत मैच पूरे पांच दिन नहीं चले