सहवाग भले ही हमेशा रहे हों आगे, पर अंत में उनसे बाजी मार ले गए नेहरा
इस मामले में नेहरा से पीछे रह गए जहीर खान और वीरेंद्र सहवाग।
नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। क्रिकेट की दुनिया में ऐसा कोई भी शख्स नहीं है जो अपने क्रिकेट करियर का अंत उसी मैदान पर करना चाहता है जहां से उसने करियर की शुरुआत की। हालांकि ऐसा मौका कुछ को मिलता है और कुछ की ये हसरत अधूरी रह जाती है। जिस तरह मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने साल 2013 में करियर का 200वां टेस्ट खेलने के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहा कि उसके बाद कुछ ऐसी विदाई टीम इंडिया के बुजुर्ग क्रिकेटर नेहरा को मिली। जहां से उन्होंने क्रिकेट का ककहरा सीखा वहीं से उन्होंने अपनी क्रिकेट की किताब बंद की।
सहवाग, जहीर और वेंगी हुए मायूस
दुनिया के सबसे धाकड़ बल्लेबाजों में से एक वीरेंद्र सहवाग को मैदान से अपनी अंतरराष्ट्रीय विदाई का मौका नहीं मिला। उन्होंने इसके लिए काफी प्रयास किए और सफल नहीं होने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। यही हाल दिग्गज गेंदबाज जहीर खान और पूर्व कप्तान दिलीप वेंगसरकर का रहा। पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में जनवरी 2012 में आखिरी टेस्ट खेला। इसके बाद वह भारत लौट आए और अचानक संन्यास की घोषणा कर दी। उनकी विदाई पहले से तय नहीं थी।
सचिन, कपिल और गावस्कर रहे भाग्यशाली
हालांकि इस मामले में पूर्व कप्तान सचिन तेंदुलकर, कपिल देव और सुनील गावस्कर भाग्यशाली रहे। इन तीनों ने अपना आखिरी मैच तय किया और संन्यास लिया। सचिन के रिटायरमेंट के लिए तो बाकायदा वेस्टइंडीज के खिलाफ दो टेस्ट मैचों की सीरीज रखी गई और उसका आखिरी मैच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में रखा गया। सचिन चाहते थे कि वह 200 टेस्ट खेलने वाले दुनिया के इकलौते खिलाड़ी बनें और अपना आखिरी टेस्ट अपने घरेलू मैदान में खेलें। बीसीसीआइ ने क्रिकेट के भगवान के लिए ऐसा किया भी। वहीं कपिल ने 17 अक्टूबर 1994 को अपने घरेलू मैदान फरीदाबाद में वेस्टइंडीज के खिलाफ आखिरी वनडे खेला। इस मैच में वह चोटिल भी हो गए। वहीं सुनील गावस्कर ने भी तय किया था कि वह 13-17 मार्च 1987 को बेंगलुरु में पाकिस्तान के खिलाफ होने वाले टेस्ट मैच के बाद क्रिकेट के इस फॉर्मेट से संन्यास ले लेंगे। उन्होंने इस मैच में खराब पिच पर दूसरी पारी में शानदार 96 रन बनाए थे। हालांकि यह मैच भारत हार गया था। गावस्कर इसे अपनी बेहतरीन पारियों में से एक मानते हैं। इसके बाद उन्होंने तय किया था कि विश्व कप उनका आखिरी टूर्नामेंट होगा और पांच नवंबर 1987 को इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई में सेमीफाइनल मुकाबला हारते ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था।