छोटे से गांव से निकलकर बना भारत का सबसे तेज गेंदबाज, अब पलट गई है जिंदगी
भारत का सबसे तेज गेंदबाज मानते हुए उनकी तुलना विश्व के दिग्गज तेज गेंदबाजों से होने लगी थी।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। साल 2005-2006 में भारतीय टीम में एक ऐसा चेहरा शामिल हुआ जिसने अचानक क्रिकेट जगत में खलबली मचा दी थी। इस खलबली की वजह खास थी। दरअसल, भारतीय क्रिकेट टीम में सालों बाद एक धुआंधार तेज गेंदबाज शामिल हुआ था और उसे भारत का सबसे तेज गेंदबाज मानते हुए उसकी तुलना विश्व के दिग्गज तेज गेंदबाजों से होने लगी थी। सबको लगा कि शायद भारत में एक असल तेज गेंदबाज का इंतजार खत्म हो गया..लेकिन उसके बाद जो हुआ, उसने करोड़ों उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
- गुजरात के छोटे से गांव का हीरो
हम बात कर रहे हैं आज ही के दिन 1983 में गुजरात के छोटे से गांव इखर में जन्म लेने वाले मुनफ पटेल की। ये वो गेंदबाज हैं जिन्होंने कुछ समय के लिए भारतीय क्रिकेट में एक तेज तर्रार गेंदबाज की कमी को पूरा कर दिया था। मुनफ का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता दूसरों के खेतों में मजदूरी किया करते थे। मुनफ जब स्कूल में पढ़ते थे तो अपने स्कूल के सबसे तेज गेंदबाज थे। जब साथी उनकी गेंदबाजी की तारीफ करते, उस दौरान भी मुनफ ने कभी एक क्रिकेटर बनने का सपना नहीं देखा था। दरअसल, ये सपना उनके लिए काफी महंगा था और परिवार की आर्थिक स्थिति समझते हुए मुनफ ने कभी ऐसे सपनों से वास्ता नहीं रखा। बताते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब मुनफ एक फैक्ट्री में पचास रुपये से कम की दिहाड़ी में मजदूरी किया करते थे ताकि परिवार को सहारा दे सकें। कुछ साल बीते और स्कूल के कुछ शिक्षकों ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए मुनफ को क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्ररित किया।
- नहीं थे जूते, चप्पल पहनकर करते थे गेंदबाजी
जब क्रिकेट की ओर ध्यान देना शुरू किया तो मूलभूत सुविधाएं भी उनसे कोसों दूर थीं। बताया जाता है कि काफी समय तक वो चप्पल पहनकर ही गेंदबाजी किया करते थे क्योंकि उनके पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे। तभी एक बार जब बड़ौदा जाकर किस्मत आजमाने का मौका मिला तो दोस्त ने जूते खरीदकर दिए। मुनफ बड़ौदा पहुंचे और अपनी गेंदबाजी से सबका दिल जीतना शुरू कर दिया। इसी बीच पूर्व चयनकर्ता व भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे ने जब इस खिलाड़ी को पहली बार खेलते देखा तो वो समझ गए कि उनकी गेंदों में दम है और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाया।
- 20 की उम्र में मिला सचिन का सहारा
2003 में मुनफ 20 साल के थे और उनके पास गुजरात की तरफ से प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने तक का अनुभव नहीं था। हालांकि इसके बावजूद किरण मोरे के दम पर वो चेन्नई की एमआरएफ पेस फाउंडेशन जा पहुंचे। उस समय पेस फाउंडेशन में मौजूद पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव वॉ और पेस फाउंडेशन के निदेशक व न्यूजीलैंड के पूर्व महान खिलाड़ी डेनिस लिली ने जब मुनफ को गेंदबाजी करते देखा तो इसकी खबर सीधे सचिन तेंदुलकर को दी। सचिन का समर्थन हासिल हुआ और 2003 के अंत में उन्हें गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया।
- अगस्त 2005 का वो मैच
मुनफ की फिटनेस व चोटों की समस्या 2004 में शुरू हो गई थी। इस दौरान उन्हें गेंदबाजी सुधारने के लिए ऑस्ट्रेलिया भी भेजा गया और वहां से लौटकर अगस्त 2005 में उन्हें मेहमान इंग्लैंड के खिलाफ अभ्यास मैच में खेलने का मौका मिल गया। वो बोर्ड प्रसिडेंट इलेवन टीम का हिस्सा थे और उस मैच में कुल 10 विकेट लेकर मुनफ सुर्खियों में आ गए। उनकी चर्चा इतनी बढ़ी कि इंग्लैंड के उसी भारत दौरे पर टेस्ट सीरीज के दूसरे टेस्ट में उनको राष्ट्रीय टीम से खेलने का मौका मिल गया। मोहाली में खेले गए उस पहले ही मैच में मुनफ ने 97 रन देकर 7 विकेट लिए और फिर से सबका दिल जीत लिया। क्रिकेट एक्सपर्ट संजय शर्मा कहते हैं, 'वो मैच मुनफ के करियर को वापसी की दिशा दिखाने वाला मैच था। उस एक मैच ने उम्मीदें फिर जगा दी थीं। विश्व कप टीम में उनका शामिल होना चयनकर्ताओं का तोहफा होने के साथ-साथ विश्व कप के लिए कोच गैरी कर्स्टन की रणनीति का भी हिस्सा था।'
- छह गेंद पर पड़े छह चौके..और शुरू हुआ उतार-चढ़ाव भरा सफर
2005-2006 के वेस्टइंडीज दौरे पर वो उस समय के सबसे तेज भारतीय गेंदबाज के रूप में मशहूर हो गए थे लेकिन ये वही दौरा था जब रामनरेश सरवन ने उनके एक ओवर की सभी गेंदों पर चौका जड़कर मुनफ की कमजोरियां उजागर कर दी थीं। इसके बाद से उनका करियर कभी सीधी राह नहीं चला और इसकी प्रमुख वजह रही फिटनेस व चोटें। वो 2007 विश्व कप टीम में शामिल हुए लेकिन बाद में आरपी सिंह और श्रीसंत की एंट्री के कारण उन्हें टेस्ट टीम से बाहर होना पड़ा। हर अगले दौरे पर वो चोटिल होते और किसी न किसी अन्य गेंदबाज को उनकी जगह मौका मिल जाता।
- 2011 विश्व कप का गुमनाम हीरो
2011 विश्व कप से ठीक पहले दक्षिण अफ्रीका में वनडे सीरीज के दौरान एक खास मुकाबले में मुनफ पटेल के दम पर भारत ने एक रन से यादगार जीत दर्ज की। उनका वो प्रदर्शन इतना चर्चा में रहा कि उसी साल भारत में होने वाले विश्व कप के लिए उन्हें टीम में शामिल कर लिया गया। उन्होंने टूर्नामेंट के पहले मैच में चार विकेट लिए, इंग्लैंड-इंडिया मैच में अहम भूमिका निभाई और मोहाली में हुए भारत-पाकिस्तान सेमीफाइनल में भी अहम योगदान दिया। वो फाइनल में भी खेले और भारत ने ये खिताब भी जीता। वो टूर्नामेंट में भारत की तरफ से तीसरे सबसे सफल गेंदबाज रहे लेकिन उनकी कहीं चर्चा नहीं हुई। भारत के बॉलिंग कोच एरिक सिमंस ने तो उन्हें 2011 विश्व कप जीत का 'गुमनाम हीरो' तक बता डाला था। क्रिकेट एक्सपर्ट संजय शर्मा के मुताबिक, 'अहम मैचों में अहम विकेट निकालना ही मुनफ की खूबी थी और उस विश्व कप में वो साफ नजर भी आया। जहीर उस टूर्नामेंट में स्टार बने थे, शायद यही वजह रही कि उनके प्रदर्शन को सुर्खियां हासिल नहीं हुईं।'
- आज अलग है जिंदगी..
आज मुनफ 33 साल के हो चुके हैं। आखिरी बार भारत की तरफ से टेस्ट मैच 8 साल पहले खेला था और आखिरी वनडे व अंतरराष्ट्री टी20 मैच 6 साल पहले खेला था। सालों गुजर गए लेकिन छह फीट तीन इंच लंबे इस गेंदबाज पर दोबारा किसी का ध्यान नहीं गया। उनकी चोटें उनके करियर में सुराग होने की सबसे बड़ी वजह बनीं। आइपीएल में छह सीजन तक तो वो राजस्थान रॉयल्स टीम से खेले लेकिन 2014 की नीलामी में कोई उन्हें खरीदने आगे नहीं आया। कई साल बीते और आइपीएल-2017 की नीलामी में उन्हें गुजरात लायंस ने 30 लाख रुपये में खरीदकर कुछ राहत दी लेकिन एक हकीकत ये भी थी कि ये गुजरात की टीम का आखिरी आइपीएल सीजन था यानी मुनफ एक बार फिर बेरोजगारी की दहलीज पर पहुंच गए। पिछले साल नवंबर में आखिरी बार घरेलू क्रिकेट में खेलते नजर आए थे लेकिन यहां भी फिटनेस और बढ़ती उम्र उन्हें आंखें दिखा रही है। आजकल वो अपने गांव में परिवार के साथ ही रह रहे हैं और जमीन से जुड़े इस क्रिकेटर की सादगी व परिवार को लेकर समर्पण आज भी बरकरार है।