आशीष नेहरा के नाम दर्ज़ है ऐसा काम, जो दुनिया में कर सका था सिर्फ एक ही खिलाड़ी
2003 विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ 24 साल के नेहरा ने छह बल्लेबाजों बल्लेबाजों को सिर्फ 23 रन पर पवेलियन भेजा।
नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। दुनिया का हर क्रिकेटर कुछ इसी तरह की विदाई चाहता होगा जैसी आशीष नेहरा को मिली। जेंटलमैन तेज गेंदबाज के रूप में पहचाने जाने वाले नेहरा के आखिरी क्रिकेट मैच की कप्तानी उनसे दस साल छोटे और उनके जूनियर विराट कोहली कर रहे थे। नेहरा के घरेलू मैदान फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले टी-20 मैच में कोहली ने उन्हें पारी का पहला और आखिरी ओवर फेंकने का मौका दिया। अगर पांड्या ने कोलिन मुनरो का कैच नहीं छोड़ा होता तो नेहरा अपने आखिरी मैच में विकेट लेने में सफल हो जाते।
नेहरा जैसे ही आखिरी ओवर फेंकने आए वैसे ही पूरे मैदान नेहरा-नेहरा से गूंज उठा। उन्होंने चार ओवर के स्पेल में 29 रन दिए। वह आखिरी ओवर फेंक रहे थे तभी एक प्रशंसक अंदर घुसा आया और उसने नेहरा के पैर छुए। जब नेहरा अपना स्पेल खत्म करके आए तो हिल-बी स्टैंड की बाउंड्री के पास बिशन सिंह बेदी बैठे थे। नेहरा ने उनके पैर छुए। इसके बाद पूरी टीम के साथ उन्होंने मैदान का चक्कर लगाया और प्रशंसकों का शुक्रिया अदा किया। आखिर में दिल्ली के विराट और शिखर ने अपने सीनियर नेहरा को कंधे पर उठा लिया। नेहरा की पत्नी, बच्चे और पिता भी इस मैच को देखने के लिए आए थे। बाद में इन सबने विराट के साथ फोटो खिंचाए। नेहरा के बच्चे भी पिता की 64 नंबर की टीशर्ट पहने हुए थे।
जेंटलमैन गेंदबाज : अमूमन जेंटलमैन गेम क्रिकेट में तेज गेंदबाज आक्रामक ही होते हैं लेकिन नेहरा को दुनिया के गिने-चुने जेंटलमैन गेंदबाजों में माना जाता था। चोट से जूझते अपने शानदार करियर में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे।
2003 था स्वर्णिम काल : 2003 विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ 24 साल के नेहरा ने छह बल्लेबाजों बल्लेबाजों को सिर्फ 23 रन पर पवेलियन भेज दिया। भारत उस विश्व कप के फाइनल में पहुंचा। दिल्ली के छह फिट के इस गेंदबाज को 20 साल की उम्र में ही 1999 में टेस्ट कैप मिल गई थी। 2000 में जिंबाब्वे उनका पहला दौरा था जब उन्हें पूरी सीरीज में खेलने का मौका मिला। बुलावायो टेस्ट में भारत की जीत में उनकी अहम भूमिका रही। भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर 15 साल बाद भारत जीत पाया था लेकिन फिटनेस की समस्या के कारण उनका टेस्ट करियर पांच साल ही चल पाया। 2004 में वह आखिरी बार टेस्ट खेल पाए। वह लगातार टखने की चोट से जूझते रहे लेकिन वह आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं थे।
दुनिया में ऐसा करने वाले दूसरे खिलाड़ी बने नेहरा : नेहरा ने ऐसे कारनामे भी किए जो बड़े-बड़े बल्लेबाज नहीं कर पाए। वर्ष 2002 में टीम इंडिया इंग्लैंड दौरे पर गई थी। लॉर्डस में खेले गए टेस्ट मैच में टीम इंडिया को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन इसी टेस्ट की चौथी पारी में अजीत आगरकर ने अपने टेस्ट करियर का इकलौता शतक जड़ा था। उनकी इस पारी के दौरान नौ विकेट गिर गए थे। आगरकर 67 रन पर खेल रहे थे। दसवें विकेट के लिए उनका साथ देने नेहरा आए। नेहरा ने आगरकर के साथ दसवें विकेट के लिए 60 रन की साझेदारी की थी। उन्होंने 54 गेंदों पर 19 रन बनाए थे। नेहरा ने इस दौरान दो चौके और एक छक्का भी जड़ा। उनका यह छक्का हमेशा के लिए यादगार बन गया। नेहरा ने लॉर्डस में एंड्रयू फ्लिंटॉफ की गेंद पर जो छक्का जड़ा वो सीधे मैदान से बाहर चला गया। ऐसा लॉर्डस के टेस्ट इतिहास में सिर्फ दो बार हुआ है। पहली बार इस ऐतिहासिक मैदान पर यह कारनामा वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज विवियन रिचर्डस ने किया था। उसके बाद नेहरा ही गेंद को मैदान से बाहर पहुंचाने में सफल रहे। नेहरा ने इस घटना के बारे में कहा था कि जब मैं बल्लेबाजी करने आया तब आगरकर 67 रन पर खेल रहा था। मैंने उसके शतक तक डिफेंस करते हुए इंतजार किया लेकिन जब उसने शतक पूरा कर लिया तो मैंने उससे कहा, अब इस तरफ (स्ट्राइक) मत अइयो तू, बहुत हो गया डिफेंस-डिफेंस एक दो लप्पे-शप्पे मार लेन दे मुझे, दिल खुश हो जाएगा। फ्लिंटॉफ गेंदबाजी कर रहा था मैंने उसकी गेंद पर लप्पा घुमाया। उसकी किस्मत इतनी खराब थी कि गेंद बल्ले से कनेक्ट हो गई और सीधे मैदान के बाहर चली गई।
फिर हुई वापसी : आइपीएल के दूसरे सत्र में दमदार प्रदर्शन के बाद उन्हें 2009 में वेस्टइंडीज दौरे के लिए वनडे टीम में चुन लिया गया। 2009 उनके लिए बड़ा साल साबित हुआ। उन्होंने 21 वनडे मैचों में 5.92 के इकॉनमी से 31 विकेट लिए। उसके अगले साल उन्होंने 20 मैचों में 28 विकेट चटकाए। इसके बाद उन्हें 2011 विश्व कप की टीम में शामिल कर लिया गया। पाकिस्तान के खिलाफ जीत में उनकी बड़ी भूमिका रही लेकिन एक बार फिर शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। वह विश्व कप फाइनल में भी नहीं खेल पाए। लगा कि उनका करियर खत्म हो गया पर चार साल बाद 2015 के आइपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से 22 विकेट चटका कर उन्होंने फिर हुंकार भरी। चार साल के अंतराल पर एक बार फिर उनकी वापसी हुई। इस बार क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट में। उनकी बदौलत भारत पहली बार ऑस्ट्रेलिया में टी-20 सीरीज जीतने में कामयाब रहा। उसके बाद एशिया कप और फिर 2016 में विश्व टी-20 में भी नेहरा खेले। इस साल की शुरुआत में उन्हें मौका मिला। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 में उनका चयन हुआ लेकिन उन्हें एक भी मैच नहीं खेलने को मिला। इसके बाद उन्होंने एक नवंबर को संन्यास लेने की घोषणा की और टीम प्रबंधन ने उनके घरेलू मैदान में उन्हें अपना आखिरी मैच खेलने का मौका दिया। बायें हाथ के इस क्लासिकल गेंदबाज को रफ्तार, उछाल, सटीकता और लाइन-लेंथ में बदलाव देकर बल्लेबाजों को चकमा देने के लिए जाना जाता रहा। ऑफ साइड के बाहर जाती उनकी गेंद और उनकी लेट इनस्विंगर किसी भी बल्लेबाज को परेशान कर सकती थी।
तीसरा सबसे लंबा अंतरराष्ट्रीय करियर : नेहरा ने सबसे लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर को पूरा किया। नेहरा का अंतरराष्ट्रीय करियर 18 साल, आठ महीने, नौ दिन तक चला। यानी उनका करियर कुल 6826 दिन का रहा। इस मामले में उन्होंने पूर्व स्पिनर एस वेंकटराघवन का रिकॉर्ड तोड़ा। वेंकटराघवन का करियर 6784 दिन का रहा था। तीसरे स्थान पर अनिल कुबले हैं। उनका करियर 6767 दिन का रहा है। नेहरा अपने क्रिकेट करियर में सात कप्तानों के साथ खेले। इनमें मुहम्मद अजहरुद्दीन, गांगुली, द्रविड़, कुंबले, सहवाग, धौनी और विराट शामिल हैं। भारतीयों में नेहरा से लंबा करियर सिर्फ सचिन (8760 दिन) और लाला अमरनाथ (6935 दिन) का रहा है।