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Ind vs Ban: डे-नाइट टेस्ट तो होगा पर गुलाबी गेंद की इन चुनौतियों से कैसे निपटेगी टीम इंडिया

India vs Bangladesh टीम इंडिया के लिए पहले डे-नाइट टेस्ट मैच में गुलाबी गेंद की चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Wed, 30 Oct 2019 07:56 PM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 12:32 AM (IST)
Ind vs Ban: डे-नाइट टेस्ट तो होगा पर गुलाबी गेंद की इन चुनौतियों से कैसे निपटेगी टीम इंडिया
Ind vs Ban: डे-नाइट टेस्ट तो होगा पर गुलाबी गेंद की इन चुनौतियों से कैसे निपटेगी टीम इंडिया

नई दिल्ली, निखिल शर्मा । टेस्ट क्रिकेट किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन जब टेस्ट क्रिकेट फ्लड लाइट में और गुलाबी गेंद से खेला जाए तो चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच 22 नवंबर से 26 नवंबर तक कोलकाता में पहली बार भारतीय सरजमीं पर डे-नाइट टेस्ट खेला जाएगा। दोनों ही टीम अब तक डे-नाइट टेस्ट नहीं खेली हैं। ऐसे में भारत और बांग्लादेश की टीमों के लिए इस टेस्ट में चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है।

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कम घास में रफ होने का डर : 2016 में पहली बार बीसीसीआइ ने दलीप ट्रॉफी को गुलाबी गेंद से फ्लड लाइट में कराया था। ग्रेटर नोएडा में हुए इस टूर्नामेंट में पिच बनाने वाले एक क्यूरेटर ने बताया कि दिन में यह गेंद ज्यादा स्विंग नहीं हो रही थी, लेकिन रात में यह गेंद स्विंग कर रही थी। लाइट में यह गेंद ज्यादा परेशान कर रही थी। पिच पर कम घास रहने से यह जल्दी रफ हो जाती थी और फ्लड लाइट में कलाई के स्पिनरों को ज्यादा फायदा पहुंचा रही थी। उनका मानना है कि पिच पर चार से पांच मिलीमीटर की घास रखने पर गेंद की चमक ज्यादा देर तक रहेगी।

लाल गेंद की तरह नहीं होती रिवर्स स्विंग : गुलाबी गेंद से दलीप ट्रॉफी में खेलने का अनुभव रखने वाले उत्तर प्रदेश के युवा तेज गेंदबाज अंकित राजपूत का मानना है कि 2016 में जब पहली बार गुलाबी गेंद से खेले, तो किसी को कुछ भी आइडिया नहीं हो रहा था। यहां पर विकेट सपाट था, इसीलिए स्पिनरों खासकर कलाई के स्पिनरों को ज्यादा फायदा पहुंचा। आप देखें तो यहां पर कुलदीप यादव और श्रेयस गोपाल जैसे स्पिनरों ने काफी विकेट लिए। अगले वर्ष डिंडिंगुल में हुए दलीप ट्रॉफी टूर्नामेंट के बारे में बताते हुए अंकित ने कहा कि यहां विकेट पर घास थी, जिससे अच्छा उछाल मिल रहा था। हालांकि यह गेंद लाल गेंद की तरह से रिवर्स स्विंग नहीं होती है, लेकिन सफेद गेंद की तरह से ठोस जरूर बनी रहती है। अंकित ने कहा कि यहां पर मैंने और रजनीश गुरबानी ने पारी में चार से पांच विकेट लिए थे। हमें फ्लड लाइट में अच्छी मदद मिल रही थी।

स्पिनरों को खेलना मुश्किल : अंकित ने बताया कि फ्लड लाइट में स्पिनरों खासकर कलाई के स्पिनरों को खेलना बल्लेबाजों के लिए इस गेंद से मुश्किल हो जाता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि कलाई के स्पिनरों की गेंद की सीम पर ध्यान रखना होता है, लेकिन गुलाबी गेंद की सीम काली हो जाती है और बल्लेबाजों को कुछ समझ नहीं आता है। यही वजह है कि 2016 में जब पहली बार दलीप ट्रॉफी हुई तो कुलदीप और गोपाल ने काफी विकेट चटकाए थे। ऐसे में कोलकाता टेस्ट में कलाई के स्पिनरों को खेलना मुश्किल होगा। साथ ही बल्लेबाजों को गेंद की चमक किस ओर है, यह भी अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।

घास ज्यादा, बल्लेबाज मुश्किल में : अब तक जो डे-नाइट टेस्ट विदेश में हुए हैं उसके मुकाबले भारतीय मैदान वैसे नहीं हैं। ऐसे में गेंद की चमक जल्द खोने का डर कोलकाता टेस्ट में बना रहेगा। इसके लिए क्यूरेटर को पिच पर सामान्य से ज्यादा घास छोड़नी पड़ेगी, जिससे गेंद को लंबे समय तक बचाया जा सके। ज्यादा घास छोड़ने का मतलब है कि पिच से तेज गेंदबाजों को अधिक सहायता मिलेगी और बल्लेबाजों की मुश्किल बढ़ जाएंगी। गौर करने वाली बात यह है कि 2015 में टेस्ट इतिहास में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच जो पहला डे-नाइट टेस्ट खेला गया था, उसमें दोनों टीम के तेज गेंदबाजों ने कुल मिलाकर 29 विकेट चटकाए थे, जबकि 66 रन बनाकर ऑस्ट्रेलियाई विकेटकीपर पीटर नेविल सबसे ज्यादा रन की पारी खेलने वाले बल्लेबाज बने थे।


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