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EXCLUSIVE: ICC world cup 2019 पाकिस्तान के कोच और समर्थकों को भी नहीं पता टीम की क्षमता : सुनील गावस्कर

ICC world cup 2019 इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय टीम काफी मजबूत है लेकिन पाकिस्तान ने इस विश्व कप में ही दुनिया की नंबर एक इंग्लैंड टीम को पराजित किया है।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Fri, 14 Jun 2019 07:35 PM (IST)Updated: Fri, 14 Jun 2019 09:54 PM (IST)
EXCLUSIVE: ICC world cup 2019 पाकिस्तान के कोच और समर्थकों को भी नहीं पता टीम की क्षमता : सुनील गावस्कर
EXCLUSIVE: ICC world cup 2019 पाकिस्तान के कोच और समर्थकों को भी नहीं पता टीम की क्षमता : सुनील गावस्कर

ICC world cup 2019 India vs Pakistan अब पूरे क्रिकेट जगत की नजरें रविवार को भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले विश्व कप मुकाबले पर लगी हैं। यह मुकाबला कोई भी जीते, लेकिन दुनिया भर के क्रिकेट प्रशंसकों को मजा आने वाला है। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय टीम काफी मजबूत है, लेकिन पाकिस्तान ने इस विश्व कप में ही दुनिया की नंबर एक इंग्लैंड टीम को पराजित किया है। दुनिया के दिग्गज बल्लेबाज और पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर का भी मानना है कि पाकिस्तान ऐसी टीम है जिसको खुद नहीं पता होता है कि वह मैच के दिन कैसा प्रदर्शन करेगी। विश्व कप और भारत-पाकिस्तान क्रिकेट को लेकर हाल ही में अभिषेक त्रिपाठी ने सुनील गावस्कर से विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-

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-भारत और पाकिस्तान जब भी क्रिकेट के मैदान में एक-साथ उतरते हैं तो वह खास होता है। 2017 में इंग्लैंड में ही चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में जब भारत को शिकस्त मिली तो मैदान का माहौल काफी गर्म था। क्या आपको लगता है कि भारत-पाक मैचों को सिर्फ आम मैचों की तरह लिया जा सकता है?

--आखिरकार यह भी एक मैच ही होता है, लेकिन मैदान पर जो तनाव होता है, जो दबाव बनता है उसे आप नकार नहीं सकते। इन दोनों देशों के बीच मुकाबले से पहले आप तनाव या दबाव दूर करने के लिए चाहे हेडफोन पर कितने भी अच्छे गाने क्यों ना सुन लीजिए, लेकिन वह दबाव आपके ऊपर रहता ही है। अगर यह फाइनल मुकाबला हो तो फिर और दवाब बढ़ना स्वभाविक है। यह तो सिर्फ कहने के लिए होता है कि यह भी आम मैचों की तरह है, लेकिन कुछ ऐसे मैच होते हैं जिन्हें आप सिर्फ एक आम मैच नहीं कह सकते हैं। भारत-पाकिस्तान मुकाबला उनमें से ही एक है। यही नहीं, अगर टीम विश्व कप का फाइनल खेल रही है, तो ऐसे में उसके सामने चाहे ऑस्ट्रेलिया हो या वेस्टइंडीज, वह एक आम मैच नहीं होगा। ऐसा ही पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले को लेकर है, इसीलिए लोग कहते हैं कि हमने अगर पाकिस्तान को हरा लिया और अगर चैंपियनशिप नहीं भी जीती, तब भी कोई परेशानी नहीं है।

-पाकिस्तान की मौजूदा टीम को आप कैसे देखते हैं? क्या आपको लगता है कि इस बार वह विश्व कप में भारत को हराने की अपनी कसर पूरी कर पाएगा?

--देखिए, पाकिस्तान की जो क्षमता है, वह खुद उसे नहीं जानता। मैं तो कहता हूं कि पाकिस्तान के कोच और उसके समर्थकों को भी नहीं पता चलता है कि उन्हें अपनी टीम की ओर से एक चैंपियन टीम वाला प्रदर्शन देखने को मिलेगा या फिर एक क्लब स्तर की टीम वाला प्रदर्शन देखने को मिलेगा। मुझे लगता है कि अगर दुनिया में कोई टीम है कि जिसके आज और कल के प्रदर्शन में जमीन और आसमान का अंतर देखने को मिल सकता है, तो वह पाकिस्तान की है। जब पाकिस्तान का प्रदर्शन आसमान वाली टीम का है तो वह किसी भी टीम को हरा सकरी है, लेकिन अगर जमीन वाली टीम जैसा प्रदर्शन है तो उसे कोई भी टीम हरा सकती है।

-पिछली चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान ने भारत को हराया था जिसे इंग्लैंड में बसे पाकिस्तानी समर्थक एक बदलाव के तौर पर देख रहे थे। ऐसे में क्या उस जीत का मनोवैज्ञानिक लाभ पाकिस्तान को इस विश्व कप में मिलेगा?

--पाकिस्तान के कोच, उसका सपोर्ट स्टाफ और कप्तान सभी ऐसा ही कहेंगे। ये सभी यही कहेंगे कि देखो हमने भारत को हराया था, लेकिन जो लोग क्रिकेट को नजदीक से देखते हैं उन्हें पता है कि उससे पहले भी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत, पाकिस्तान से हार चुका था, लेकिन हमारी टीम विश्व कप में आज तक नहीं हारी है। भारतीय टीम को यही याद रखना होगा। जो चैंपियंस ट्रॉफी में हुआ वह ठीक है क्योंकि वह पहले भी हो चुका था, लेकिन विश्व कप में अब तक भारत नहीं हारा है।

-आप कपिल देव की कप्तानी में चैंपियन बनी भारतीय टीम के गवाह रहे। आपने धौनी को मुंबई में विश्व कप की ट्रॉफी उठाते देखा और अब विराट कुछ वैसी ही सोच के साथ इंग्लैंड गए हैं। इन तीनों कप्तानों को आप कैसे आंकते हैं?

--स्वभाव के हिसाब से आप कह सकते हैं कि कपिल देव और एमएस धौनी एक जैसे हैं। दोनों बेहद शांत और आगे बढ़कर टीम की अगुआई करने वाले। वैसे विराट भी आगे बढ़कर टीम को संभालते हैं, लेकिन वह कभी-कभी कुछ ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं। हालांकि उनके पास वह काबिलियत है कि अगर भारत के हाथों से मुकाबला निकल रहा हो तो वह अपनी बल्लेबाजी से उसे भारत की ओर मोड़ सकते हैं। यह विराट की सबसे खास काबिलियत है। जैसे कपिल देव को जिम्मी अमरनाथ और सैयद किरमानी जैसे खिलाड़ी खूब मदद करते थे, वैसे ही विराट के पास धौनी हैं। इससे टीम में बहुत फर्क पड़ता है। मैं यही उम्मीद करता हूं कि जिस तरह से कपिल ने लॉ‌र्ड्स की बालकनी में विश्व कप ट्रॉफी उठाई थी, वैसे ही विराट भी उठाएंगे।

-इंग्लैंड में विश्व कप जीतने का पल आज भी आपको कितना रोमांचित करता है?

--आज भी उस पल को याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। किसी ने नहीं सोचा था कि हम विश्व कप जीतेंगे, लेकिन हमारी टीम ने पहले मैच के बाद विश्व कप जीतने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। विश्व कप के शुरू होने से पहले हमें आशा थी कि हम अच्छा करेंगे, लेकिन फाइनल तक पहुंचेंगे, इसका हमें विश्वास नहीं था। पहले मैच में जब हमने वेस्टइंडीज को अच्छे रनों के अंतर से हराया, तभी हमें लग गया कि हम कुछ खास कर सकते हैं और बिलकुल वैसा ही हुआ। हालांकि कपिल देव और मोहिंदर अमरनाथ का प्रदर्शन नहीं होता तो शायद हमारा विश्व विजेता बनना संभव नहीं होता।

-विश्व कप जीतने के बाद आपकी कभी कपिल देव या फिर दूसरे खिलाडि़यों से बात हुई कि यार हमने यह कैसे कर दिया?

--नहीं, वैसी कोई बात नहीं हुई क्योंकि जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा हमारा प्रदर्शन बेहतर होता चला गया। हमने जिंबाब्वे के खिलाफ अहम मुकाबला जीता, ऑस्ट्रेलिया को हराया। ऐसे में मैच दर मैच हमारा विश्वास बढ़ता चला गया।

-आपको स्लिप का एक अच्छा क्षेत्ररक्षक माना जाता था। ऐसे में भारतीय टीम को लेकर स्लिप के क्षेत्ररक्षण के बारे में क्या कहेंगे और इंग्लैंड के दर्शकों के बारे में क्या कहेंगे?

--भारत को स्लिप में अच्छे क्षेत्ररक्षक रखने होंगे। शायद 1987 तक लाल गेंद से विश्व कप खेला जाता था, लेकिन 1992 से संभवत: सफेद गेंद से विश्व कप खेला जाने लगा। लाल और सफेद गेंद में बहुत फर्क है। आप जानते हैं कि लाल गेंद 50-60 ओवर तक स्विंग होती रहती है। वहीं, सफेद गेंद शुरुआती कुछ ओवरों तक ही स्विंग होती है। ऐसे में उन दिनों में स्लिप में अच्छा स्लिप क्षेत्ररक्षक होना जरूरी था क्योंकि इंग्लैंड में गेंद स्विंग होती थी। अब इतना शायद जरूरी नहीं होगा तो शायद शुरुआती कुछ ओवरों में ही स्लिप की जरूरत पड़े, फिर शायद जरूरत ना पड़े। रोहित शर्मा जिस तरह से स्लिप में क्षेत्ररक्षण कर रहे हैं तो उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि उनके रूप में हमारे पास एक अच्छा स्लिप क्षेत्ररक्षक है। हाल के समय में उन्होंने कुछ अच्छे कैच पकड़े हैं और बहुत मुश्किल कैच को आसान भी बनाया है।

-स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर के आने के बाद आपको ऑस्ट्रेलिया भी टीम कैसी दिखाई दे रही है?

--ऑस्ट्रेलियाई टीम में जब संयोजन बनता है तो वह बेहतरीन होता है। वार्नर को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बायें हाथ के बल्लेबाजों में से एक माना जाता है। उनके टीम में रहने से बायें हाथ और दायें हाथ के ओपनर का संयोजन बनता है जो बेहद खतरनाक होता है। वार्नर का आइपीएल में शानदार प्रदर्शन रहा और न्यूजीलैंड एकादश के खिलाफ उन्होंने और स्मिथ ने ऑस्ट्र्ेलिया में जाकर भी रन बनाए। मुझे यह एक बहुत संतुलित टीम लग रही है। खासतौर से जिस तरह का प्रदर्शन हाल के दिनों में उन्होंने किया है, उससे उनका मनोबल भी ऊंचा होगा। वार्नर और स्मिथ महान खिलाड़ी हैं और इनके आने से टीम मजबूत हुई है।

-इस बार विश्व कप में हर टीम लीग राउंड में दूसरी टीम से भिड़ रही है। 1992 में भी यह प्रारूप था, लेकिन तब भारत ग्रुप चरण से ही बाहर हो गया था। ऐसे में भारत के लिहाज से सेमीफाइनल से पहले इस प्रारूप को आप कैसे देखते हैं?

--इस प्रारूप की वजह से आपको बहुत ध्यान देकर खेलना होगा। अगर आप मैच हारे तब भी आपको नेट रन रेट पर ध्यान देना होगा। हालांकि, अगर आप लगातार मैच जीतते चले जाते हैं तो कोई दिक्कत ही नहीं होगी। मेरा मानना है कि भारतीय टीम बहुत अच्छी है और उसे आगे बढ़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। एक-दो मुकाबलों में उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

-हमने जो दोनों विश्व कप जीते उसमें ऑलराउंडर की भूमिका काफी अहम रही। ऐसे में क्या इस बार हार्दिक पांड्या हमारे लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं?

--यही तो आशा करनी है हमें कि हार्दिक पांड्या और विजय शंकर वह काम करें जिसके लिए उन्हें चुना गया है। बल्लेबाजी में तो इनका कोई जोड़ नहीं है, लेकिन गेंदबाजी में मुझे लगता है कि अगर दोनों ने चार-पांच ओवर अच्छे निकाल दिए, जिनमें उन्होंने रन नहीं दिए और एक-दो विकेट निकाल लिए तो वह अपना काम कर जाएंगे।

-1975 विश्व कप के पहले मैच में आपने 60 ओवर खेलकर महज 36 रन बनाए थे। हालांकि अब क्रिकेट काफी तेज-तर्रार हो गया है। ऐसे में क्रिकेट के बदलते स्वरूप को आप कैसे देखते हैं?

--मेरा मानना है कि क्रिकेट और ऊंचे स्तर पर पहुंचा है। आप खिलाडि़यों की फिटनेस देखिए, उनका क्षेत्ररक्षण देखिए। ऐसा क्षेत्ररक्षण पहले नहीं था। एक टीम के पास एक या दो बहुत अच्छे क्षेत्ररक्षक होते थे, लेकिन आज देखा जाए तो हर टीम में छह-सात अच्छे क्षेत्ररक्षक हैं। यह बहुत बड़ा फर्क है क्योंकि एक जमाने में जहां चौके मिलते थे वहां अब दो ही रन मिलते हैं। दूसरा अहम बदलाव यह है कि अब क्षेत्ररक्षण में पाबंदी है। जब हम खेलते थे तो आपके 10 क्षेत्ररक्षक सीमा रेखा पर हो सकते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब केवल चार या पांच क्षेत्ररक्षक ही सीमा रेखा पर रह सकते हैं। मेरे ख्याल में यह बदलाव आना भी जरूरी था। गेंदबाजी में भी बदलाव आ गया है। धीमी गति के बाउंसर, बैक हैंड से धीमी गति की गेंद, ये सभी चीजें पहले नहीं थीं। शायद पहले इसकी जरूरत नहीं थी क्योंकि पहले लाल गेंद 50-60 ओवर तक हिलती रहती थी। बल्लेबाजी में भी कई नए-नए शॉट्स आ गए हैं। दिलस्कूप, स्विच हिट, रिवर्स स्वीप जैसे शॉट्स आ गए हैं। अब तो पीछे के विकेट की ओर भी मारने लगे हैं। ये सभी बदलाव देखकर मुझे काफी आनंद आता है। यह खेल अच्छी दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन मेरे ख्याल में यह बल्लेबाजों के पक्ष में थोड़ा ज्यादा आगे बढ़ रहा है।

-आज अगर आप वनडे क्रिकेट खेल रहे होते तो तकनीकी शॉट्स पर ज्यादा ध्यान देते या हेलीकॉप्टर शॉट की तरह कुछ अलग शॉट्स मारने की कोशिश करते?

--देखिए जमाने के हिसाब से खेलना पड़ता है। जब हम खेलते थे तो हमारे कोच कहते थे कि अगर तुमने गेंद जमीन से छह इंच ऊपर मारी तो मैदान के दो राउंड लगाने की सजा मिलेगी। तब हमें बल्ले को ऊपर उठाकर मैदान के दो चक्कर लगाने पड़ते थे। घर में जैसी आपकी परवरिश होती है वैसा ही आपका आचरण हो जाता है। हमारे साथ भी वैसा ही था। आज के समय में अलग है। अब कोच कहते हैं कि अलग तरह से शॉट्स मारने की कोशिश करो, लंबा मारो।

-पहले आपने कई बार बर्न आउट पर लिखा, लेकिन आजकल आप इस बारे में कुछ नहीं कहते। क्या आपकी राय बदल गई?

-आजकल खिलाडि़यों की फिटनेस बहुत अच्छी हो गई है। बर्न आउट अगर होता भी है तो वह यात्रा से होता है, खेलने से नहीं। आप कभी भी खेल सकते हैं। अगर आप चोटिल हो गए तो वह अलग बात है। ऐसे में मेरा मानना है कि खेलने से बर्न आउट नहीं होता, बल्कि यात्रा से होता है। मान लीजिए कि आपको सुबह-सुबह यात्रा करनी है तो उससे आपको दिक्कतें आती हैं जिससे आपको एक्सरसाइज करने का समय नहीं मिलता। इंग्लैंड में बर्न आउट होने की संभावना ना के बराबर है क्योंकि वहां इतनी लंबी यात्रा करनी ही नहीं पड़ती। सभी मैदान बहुत पास-पास ही हैं। वहां पर आपको आरामदायक यात्रा मिलती है।

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