सीओए के दोहरे मानदंड से बीसीसीआइ के सदस्य हैरान, अयोग्य खिलाड़ियों पर दिया ये फैसला
सदस्यों ने सीओए की निर्णय प्रक्रिया और पदाधिकारियों के निर्णयों व विचारों को नजरअंदाज करने पर भी हैरानी जाहिर की।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। बीसीसीआइ के सदस्यों ने शुक्रवार को मुंबई में मुलाकात की और हाल ही में भारतीय क्रिकेट और बोर्ड में चल रही घटनाओं पर अपनी चिंता व्यक्त करने के साथ हैरानी जाहिर की। इस दौरान सदस्यों ने कई मुद्दों पर चर्चा की इनमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित प्रशासकों की समिति (सीओए) द्वारा बोर्ड के कामकाजों में फैसले लेने की प्रक्रिया पर गंभीरता से विचार किया गया।
सदस्यों ने सीओए की निर्णय प्रक्रिया और पदाधिकारियों के निर्णयों व विचारों को नजरअंदाज करने पर भी हैरानी जाहिर की। इस तरह के अनियमित निर्णयों पर बीसीसीआइ के संसाधनों को गलत तरीके से उपयोग करने को लेकर भी सदस्य चिंतित थे।
सदस्यों ने खिलाडि़यों से संबंधित मुद्दों से निपटने में दोहरे मानदंड पर हैरानी जाहिर की। बैठक में मौजूद सदस्यों ने कहा कि जहां दो भारतीय खिलाडि़यों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं और उनको जांच पूरी होने तक निलंबित कर दिया गया है, जबकि कुछ ऐसे ही मामले में बोर्ड के सीईओ को निलंबित भी नहीं किया गया था और उनके मामले में जांच प्रक्रिया में बीसीसीआइ के संविधान का उल्लंघन भी किया गया था।
इस दौरान सदस्यों ने पहली बार घरेलू क्रिकेट में भाग लेने वाली टीमों को शामिल करने वाले सदस्य संघों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। हालांकि सदस्यों ने 2018-19 के घरेलू सत्र की कथित सफलता का बखान करने के लिए दिए जा रहे बयानों पर हैरानी जाहिर की। सदस्य ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण माना कि कैसे पहली बार बुनियादी पात्रता नियमों को बीच सत्र में बदल दिया गया था। जहां एक राज्य से खेलने के लिए अयोग्य करार दिए गए खिलाडि़यों को दूसरे राज्य से खेलने की अनुमति दी गई थी।
बैठक में मौजूद अधिकतर सदस्यों ने इस बात की निंदा की कि बीसीसीआइ प्रबंधन ने पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली की अगुआई वाली तकनीकी समिति के फैसलों की अनदेखी की। सदस्यों ने इस बात की भी निंदा की कि सीओए ने जून 2018 में आयोजित विशेष आम बैठक में लिए गए निर्णयों को नजरअंदाज किया। इस सच्चाई के बावजूद कि यह बैठक विधिवत सदस्यों और केवल उन व्यक्तियों द्वारा अपेक्षित थी जो लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुसार योग्य थे। सदस्यों ने माना कि वह बीसीसीआइ के लोकतांत्रिक कामकाज और नीति-निर्माण को विफल करने की एक कोशिश थी।
सदस्यों ने फैसला किया कि वे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कुछ बिंदुओं को सामने लाएंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विशेष रूप से क्रिकेट मामलों पर निर्णय लेने में लोकतंत्र बहाल हो जिससे भारतीय क्रिकेट को नुकसान न हो।