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एक हाथ में था पोलियो, फिर भी भारत के लिए खेला इंटरनेशनल क्रिकेट और बने खास

एक हाथ में पोलियो होने के बाद भी उनके हार नहीं मानने के जज्बे ने उन्हें अंतररष्ट्रीय क्रिकेट तक पहुंचाया और देश की कई ऐतिहासिक जीत में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Tue, 19 May 2020 05:52 PM (IST)Updated: Tue, 19 May 2020 05:52 PM (IST)
एक हाथ में था पोलियो, फिर भी भारत के लिए खेला इंटरनेशनल क्रिकेट और बने खास
एक हाथ में था पोलियो, फिर भी भारत के लिए खेला इंटरनेशनल क्रिकेट और बने खास

नई दिल्ली, जेएनएन। भारत के लेग स्पिनर रहे भगवत (बी.) चंद्रशेखर एक ऐसे गेंदबाज थे जो बल्लेबाजों के लिए एक पहेली बने हुए थे। एक हाथ में पोलियो होने के बाद भी उनके हार नहीं मानने के जज्बे ने उन्हें अंतररष्ट्रीय क्रिकेट तक पहुंचाया और देश की कई ऐतिहासिक जीत में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जब विश्व कप विजेता कप्तान कपिल देव ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना पैर भी नहीं रखा था तब तक तो यह गेंदबाज अपनी फिरकी के आगे बल्लेबाजों को खूब नचाया करता था।

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मैसूर में जन्मे चंद्रशेखर का कद इसी से पता चल जाता है कि जब वह 17 मई को 75 वर्ष के हुए थे तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से उन्हें बधाई दी और एक फोटो साझा की थी जिसमें चंद्रशेखर इंग्लैड के खिलाफ टीम की यादगार जीत में गेंदबाजी कर रहे थे। इतना ही नहीं दिग्गज बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने भी हाल ही में भारत और पाकिस्तानी खिलाडि़यों को मिलाकर ऑल टाइम टेस्ट इलेवन टीम चुनी थी जिसमें चंद्रशेखर को शामिल किया था।

चौकड़ी में शामिल : वह टीम इंडिया की स्पिन चौकड़ी का हिस्सा थे जिसमें ई प्रसन्ना, बिशन सिंह बेदी, श्रीनिवासराघवन वेंकटराघवन शामिल थे। इन खिलाडि़यों का साल 1960 से 1970 के बीच वर्चस्व था। चंद्रशेखर ऑस्ट्रेलिया के पूर्व स्पिनर रिची बेनॉड की खेल शैली से प्रेरित थे। 10 साल की उम्र में चंद्रशेखर ने क्रिकेट खेलना शुरू किया और 1964 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया।

अलग अंदाज : चंद्रशेखर अपनी उछलती-कूदती और तेज गुगली के साथ भारतीय क्रिकेट टीम की टोपी में एक गहने जैसे थे। उन्होंने विदेशी टेस्ट में राष्ट्रीय टीम का रंग बदल दिया। 1972 में चंद्रशेखर को विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुना गया और इसी साल ही भारत सरकार ने उनके क्रिकेट में योगदान के देखते हुए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया।

और हो गया पोलियो : चंद्रशेखर एक बच्चे के रूप में पोलियो के शिकार हो गए जिसके कारण उनका दाहिना हाथ कमजोर हो गया था। लेकिन चंद्रशेखर का वही दोष गुणवत्ता में बदल गया। गेंद फेंकने के दौरान उनकी कलाई अधिक मुड़ गई, जिससे उन्हें सामान्य स्पिनरों से अलग रखा गया। वास्तव में, वह सबसे तेज लेग ब्रेक गेंदबाज थे जिसके कारण अच्छे बल्लेबाज आसानी से आउट हो जाते थे।

इंग्लैंड की धरती पर पहला टेस्ट जीता : उन्होंने अपनी गेंदबाजी से कई बार मैच का रुख बदल दिया जिसमें भारतीय क्रिकेट के इतिहास में यादगार मैच शामिल हैं। जब भारत ने 1971 में ओवल टेस्ट जीतकर इंग्लैंड की धरती पर पहला टेस्ट जीता और सीरीज पर कब्जा कर लिया। चंद्रा ने 38 रन देकर छह विकेट लिए, जिससे इंग्लैंड की दूसरी पारी 101 रन पर सिमट गई।

ऑस्ट्रेलिया में पहली बार टेस्ट जीत : इसके अलावा, चंद्रशेखर ने 1978 में ऑस्ट्रेलियाई धरती पर भारत को पहली टेस्ट जीत दिलाई। उस मेलबर्न टेस्ट में उन्होंने 104 रन देकर 12 विकेट लिए थे। संयोग देखिए- पहली पारी में उन्होंने 52 रन देकर छह विकेट लिए, जबकि दूसरी पारी में भी उन्होंने 52 रन देकर छह विकेट लिए। चंद्रा के इस प्रदर्शन के कारण भारत ने ऑस्ट्रेलिया को बड़े अंतर से हराया।

नंबर गेम :

- भारत ने 14 टेस्ट मैच चंद्रशेखर के करियर के दौरान जीते। इन 14 टेस्ट मैचों में चंद्रशेखर ने 19.27 के औसत से 98 विकेट झटके। भारत ने इन 14 टेस्ट में से पांच टेस्ट विदेशी धरती पर जीते थे और इन पांच टेस्ट में चंद्रशेखर ने 42 विकेट चटकाए थे। 

टेस्ट पदार्पण, मैच, विकेट, औसत

1964, 58, 242, 29.74

वनडे पदार्पण, मैच, विकेट, औसत

1976, 01, 03, 12.00


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