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Ahses: जानिए एशेज सीरीज में कब और किसने हार के डर से खोद डाली थी पिच

Ashes 2019 137 वर्ष के एशेज इतिहास की बात करें तो ये ट्रॉफी 81 साल तक ऑस्ट्रेलिया के पास तो 56 साल तक इंग्लैंड के पास रहा है।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 07:56 PM (IST)Updated: Fri, 02 Aug 2019 03:46 PM (IST)
Ahses: जानिए एशेज सीरीज में कब और किसने हार के डर से खोद डाली थी पिच
Ahses: जानिए एशेज सीरीज में कब और किसने हार के डर से खोद डाली थी पिच

 नई दिल्ली, जेएनएन। Ashes का नाम लेते ही इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच का वो द्वंद याद आता है जो पिछले 137 वर्ष से चला आ रहा है। एक बार फिर से एशेज की शुरुआत हो चुकी है और ये 71वां सीरीज है। इससे पहले कुल 70 एशेज सीरीज खेली जा चुकी है जिसमें इंग्लैंड ने 32 तो ऑस्ट्रेलिया ने 33 बार जीत हासिल की है। पांच बार ये सीरीज ड्रॉ रही है। 

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137 वर्ष के एशेज इतिहास की बात करें तो ये ट्रॉफी 81 साल तक ऑस्ट्रेलिया के पास तो 56 साल तक इंग्लैंड के पास रहा है। इसके लिए नियम ये है कि जो टीम एशेज जीतती है उसे ट्रॉफी मिलती है और सीरीज ड्रॉ रही तो पिछली सीरीज की विजेता टीम को ट्रॉफी दे दी जाती है। पिछली बार वर्ष 2017 में एशेज हुई थी जो ऑस्ट्रेलिया ने जीती थी। वहीं पिछली पांच एशेज की बात की जाए तो इसमें दो बार कंगारू टीम ने जबकि तीन बार इंग्लैंड ने जीती है। 

एशेज की प्रतिद्वंदिता किसी से छुपी नहीं है और इस सीरीज में दोनों टीमें जीत के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती हैं। एशेज के दौरान कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं जिससे पता चलता है कि इसे लेकर खिलाड़ियों और दर्शकों में कितना जुनून है। 19वीं सदी की शुरुआत में यानी 1920 में एशेज टेस्ट का दिन खत्म होने के बाद इंग्लैंड के चौराहों पर लोग स्कोरकार्ड वाले अखबार लेकर खड़े हो जाते थे, जो हाथों-हाथ बिक जाते थे। वहीं 1932 में एशेज के दौरान एक नई परंपरा की शुरुआत हुई। इस वर्ष इंग्लैंड के गेंदबाजों ने बॉडीलाइन गेंदबाजी की शुरुआत की जिससे कई गेंदबाज घायल हुए। बॉडीलाइन गेंदबाजी में गेंदबाज बल्लेबाज के बॉडी को निशाना बनाकर गेंद फेंकता है। 1975 में एजबेस्टन टेस्ट मैच के आखिरी दिन ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 225 रन बनाने थे और उससे सात विकेट शेष थे, लेकिन इंग्लैंड के फैंस ने रातों-रात पिच खोदकर उसमें तेल डाल दिया था। 1979 में डेनिस लिली एक ऐसा बल्ला लेकर उतरे जिसमें निचला हिस्सा एल्युमिनियम का बना था। चार गेंद खेलते ही अंपायर को शक हो गया और फिर उन्हें बल्ला बदलना पड़ा। 2009 में ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज मिचेल जॉनसन और इंग्लैंड के केविन पीटरसन भिड़ने ही वाले थे कि स्टुअर्क क्लार्क बीच में आ गए और दोनों को रोका। बाद में जॉनसन ने कहा कि वो पीटरसन को मुक्का मार देते। 

एशेज के कुछ ऐसे भी हीरो रहे हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। इसमें एक हैं एंड्रयू स्ट्रॉस। एंड्रयू इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दोनों जगह एशेज जिताने वाले कप्तान हैं। वहीं इंग्लैंड के माइकल वॉन ने लगातार आठ बार एशेज जीत चुकी कंगारू टीम का विजयी रथ रोकने वाले कप्तान थे। ऑस्ट्रेलिया के एलन बॉर्डर ने अपनी टीम को लगातार तीन बार एशेज सीरीज जिताने में बड़ी भूमिका निभाई थी। वहीं इयान चैपल ने दो बार ऑस्ट्रेलिया को एशेज में जीत दिलाई थी। 

ऐसे पड़ा एशेज का नाम

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच साल 1882 में लंदन के केनिंग्टन ओवल के मैदान पर टेस्ट मैच खेला गया, जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को सात रन से हरा दिया। इंग्लिश सरजमीं पर कंगारुओं की यह पहली जीत थी। इंग्लैंड की हार के बाद ब्रिटिश अखबर स्पोर्टिंग टाइम्स के पत्रकार शिर्ले ब्रुक्स ने इस खबर को इस हेडिंग से छापा थी कि 'शोक समाचार', इंग्लिश क्रिकेट को याद करते हुए इतना ही कहना चाहूंगा कि 29 अगस्त 1882 को ओवल ग्राउंड में इसकी मौत हो गई है। इसे चाहने वाले दुख में हैं। इंग्लिश क्रिकेट मर गया, उसके अंतिम संस्कार के बाद ऐश (राख) ऑस्ट्रेलिया भेज दी जाएगी। इंग्लैंड में क्रिकेट की मौत वाली हेडलाइन से नाम निकला एशेज, जो आज भी दुनिया में छाया है। जब इस हार के बाद उसी साल इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई और 2-1 से सीरीज को अपने नाम किया, तब इस जीत को इंग्लैंड में ऐश (राख) वापस लाने के रूप में बताया गया। यहीं से दोनों देशों के बीच होने वाली टेस्ट सीरीज को एशेज कहा जाने लगा।

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