जानिए धवन की जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं को जिसके बारे में आपको नहीं पता
धवन ने अपनी जिंदगी के दिलचस्प पहलुओं को कुछ ऐसे साझा किया।
मुंबई, प्रेट्र। मौजूदा चैंपियंस ट्रॉफी में शानदार फॉर्म में चल रहे भारतीय सलामी बल्लेबाज शिखर धवन ने कॉमेडियन विक्रम साठ्ये के शो 'वाट द डक' में अपने करियर के दिलचस्प पलों को साझा किया। यह शो वीडियो ऑन डिमांड सर्विस वियू पर प्रसारित किया गया।
धवन ने रविवार को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मौजूदा चैंपियंस ट्रॉफी में अपना फिफ्टी प्लस से ज्यादा का तीसरा स्कोर बनाया, जिसकी बदौलत भारतीय टीम सेमीफाइनल में पहुंचने में सफल रही। इस दौरान उन्होंने 2013 में मोहाली में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने टेस्ट पदार्पण के समय को भी याद किया।
मीडिया विज्ञप्ति के अनुसार, शो में धवन ने बताया कि जब वह खतरनाक ऑस्ट्रेलियाई आक्रमण के खिलाफ अपनी पदार्पण पारी खेलने के लिए ड्रेसिंग रूम से जा रहे थे तो वह कितने नर्वस थे। बायें हाथ के इस साहसिक बल्लेबाज ने यह भी बताया कि कई वर्षों तक नाकामियों के दौर से गुजरने के दौरान अध्यात्म और दृढ़ इच्छाशक्ति ने किस तरह उनकी मदद की।
जब साठ्ये ने पूछा कि उनका सूफी संगीत में रुझान किस तरह उत्पन्न हुआ, तो धवन ने कहा, 'जब मैं 21 साल का था तब मैंने सूफी संगीत सुनना शुरू किया था। मैं सिर्फ अच्छे लिरिक्स वाले गाने पसंद करता था। मुझे गजल का काफी शौक था। मैं जगजीत सिंह और सर गुलाम अली की गजल पसंद करता था। इन गजलों में ऐसे कई लिरिक्स थे जो मुझे अध्यात्म की ओर ले गए। गुरदास मान सर का गाना 'मावा ठंडिया छावां छावां कौन करे बहुत प्रेरणादायी है। और भी कई अन्य जैसे सतिंदर सरताज और हंसराज हंस ने बहुत अच्छे लिरिक्स लिखे हैं। इन गानों के अर्थ से मैं अपने जीवन को जोड़ता हूं और यह मुझे शांत रखते हैं, नकारात्मकता से दूर रखते हैं और मुझे अध्यात्म की ओर ले जाते हैं।
दिल्ली के इस बल्लेबाज ने शाह रुख खान के अंदाज में जश्न मनाने की वजह का भी रहस्योद्घाटन किया। जब साठ्ये ने पूछा कि जब वह जश्न मनाते हैं तो वह उनका अपना अंदाज होता है या इसका शाह रुख खान से कुछ संबंध है, तो इस पर धवन ने कहा, 'जश्न का यह उनका स्वाभाविक अंदाज है। जब मैंने अपना पहला शतक जड़ा था, तो मैंने भगवान की ओर देखते हुए खुशी में स्वाभाविक रूप से दोनों हाथों को उठाया था। तब से यह मेरा अंदाज बन गया। यह सब स्वाभाविक है न कि मैंने इसका अभ्यास किया है।