Ranji Trophy 2022 Final: चंद्रकांत पंडित ने मप्र की टीम में आत्मविश्वास पैदा किया- सुनील गावस्कर
गावस्कर ने कहा कि पंडित धीरे-धीरे गेंद की ओर बढ़े जिससे बून को लगा कि वह रन चुरा लेंगे। लेकिन अचानक पंडित ने गति बढ़ाई और दस्ताने निकालकर गेंदबाज के छोर पर थ्रो की जो सीधे विकेट पर लगी। बून समझ भी नहीं सके कि उनके साथ क्या हुआ।
(सुनील गावस्कर का कालम)
चंद्रकांत पंडित का जादू एक बार फिर चल पड़ा। मध्य प्रदेश जो काफी समय बाद रणजी ट्राफी के फाइनल में पहुंचा है, वो इस खिताब के करीब है। चंद्रकांत पंडित कोच हैं और इसमें कोई शक नहीं हैं कि उन्होंने टीम के अंदर वैसा आत्मविश्वास पैदा किया है, जैसा वो हर उस टीम को देते हैं, जिसके वह कोच रहे हैं। पंडित ने विदर्भ टीम को दो बार रणजी ट्राफी और ईरानी कप का खिताब दिलाया। विदर्भ की तरह ही मध्य प्रदेश भी ऐसी टीम है जिसमें कोई सुपरस्टार या बड़ा नाम शामिल नहीं है। इस आइपीएल के बाद क्रिकेट की दुनिया ने रजत पाटिदार, कुमार कार्तिकेय और कुलदीप सेन को पहचाना है। वेंकटेश अय्यर भी उनकी टीम में थे, जो फिलहाल आयरलैंड के विरुद्ध भारतीय टीम में शामिल हैं।
कुलदीप और वेंकटेश दोनों खिलाड़ी फाइनल में नहीं खेले, लेकिन इससे मध्य प्रदेश की टीम पर कोई खास असर नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने फाइनल में काफी अच्छा क्रिकेट खेला और अब वह नया रणजी चैंपियन बनने की दावेदार है। अज्ञात खिलाड़ियों की टीम को चैंपियन बनाने की यह आदत एक कारण है कि पंडित घरेलू क्रिकेट में काफी लोकप्रिय कोच हैं। वह खिलाड़ियों को एक स्मार्ट क्रिकेटर और हार नहीं मानने वाला बनाते हैं। पंडित खुद एक क्रिकेटर के तौर पर ऐसे ही थे। अपने चेहरे पर एक मुस्कान के साथ नाखून की तरह सख्त। पंडित शांत दिखते थे लेकिन उनकी आंखें और कान हमेशा खुले रहते थे। वह अपनी टीम और विपक्षी टीम के साथ छोटी-छोटी सलाह लेते थे।
हम लोगों ने 1985-86 की सीरीज में आस्ट्रेलिया के विरुद्ध एडिलेड टेस्ट मैच में विकेटकीपिंग करने के दौरान उनके झांसा देने के कौशल को देखा था। किरण मोरे विकेटकीपर के रूप में उतरे थे और पंडित टीम में एक बल्लेबाज के तौर पर खेल रहे थे। हालांकि, मोरे चोटिल हो गए और उन्हें मैदान से बाहर जाना पड़ा। उन दिनों यह नियम नहीं था कि रिजर्व विकेटकीपर चोटिल विकेटकीपर की जगह लेगा और अंतिम एकादश में से ही किसी को यह भूमिका निभानी होती थी। भाग्य से पंडित ने मोरे की जगह दस्ताने संभाले। डेविड बून शतक से आगे बढ़ चुके थे लेकिन रन बनाने की उनकी भूख और भी बढ़ गई। कपिल देव की गेंद उनके थाई पैड को छूकर निकली।
पंडित धीरे-धीरे गेंद की ओर बढ़े जिससे बून को लगा कि वह रन चुरा लेंगे। लेकिन अचानक पंडित ने गति बढ़ाई और दस्ताने निकालकर गेंदबाज के छोर पर थ्रो की जो सीधे विकेट पर लगी। बून समझ भी नहीं सके कि उनके साथ क्या हुआ। पवेलियन लौटते समय बून के चेहरे पर जो अविश्वास की कमी दिख रही थी, वो अभी भी यादों में ताजा है। पंडित हर किसी की रणनीति में नहीं थे लेकिन उन्होंने नतीजे दिए जो अंत में मायने रखता है। लालचंद राजपूत जिसके नेतृत्व में भारत ने 2007 टी-20 विश्व कप जीता था, वह कभी आइपीएल में कोच नहीं बने। उन्होंने नतीजे दिए हैं, लेकिन आइपीएल फ्रेंचाइजी अपने सहायक स्टाफ में फैंसी नाम चाहती हैं।
मुंबई सेरेना विलियम्स की राह पर जाती दिख रही है, जो फाइनल में पहुंची लेकिन वहां संघर्ष कर रही है और ट्राफी से दूर है। सेरेना मारग्रेट कोर्ट के सर्वाधिक खिताब जीतने के रिकार्ड से एक जीत दूर हैं। सेरेना नियमित रूप से सेमीफाइनल और फाइनल में पहुंचीं हैं, लेकिन नाकआउट में झटका देने की सक्षम नहीं हो पा रही हैं। मुंबई भी फाइनल तक अच्छा प्रदर्शन करती दिखी लेकिन यहां कुछ ना कुछ उसे परेशान कर रहा है।
सरफराज खान के शतक ने उन्हें राष्ट्रीय टीम में शामिल होने के दावेदार के रूप में पहचान दिला दी है, जहां अजिंक्य रहाणे बाहर हैं और चेतेश्वर पुजारा को स्कोर करने और टीम में जगह बरकरार रखने के लिए आखिरी मौका दिया गया है। सरफराज की तरह ही रजत पाटिदार जैसे अन्य खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने सत्र में लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत के पास भाग्य से ऐसी प्रतिभाएं हैं जो सीनियर खिलाड़ियों को चैन नहीं लेने दे रही हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि आत्मसंतुष्टि के लिए जगह नहीं है।