Under 19 Cricket Team: एथलीट नहीं बन सके पिता ने आखिरकार बेटे को बना दिया क्रिकेटर
दिल्ली के स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए पैसे नहीं थे इसलिए वर्ष 2003 में ग्रेटर नोएडा आ गए।फिर यहां पर पढ़ाई की।
ग्रेटर नोएडा [चंद्रशेखर वर्मा]। उनका भी सपना था कि एथलीट बनूं। खेल की दुनिया में शोहरत पाऊं। रोजी-रोटी के लिए अरमानों को दफन करना पड़ा। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने सपनों और शौक को अपने बेटे में पहचाना। उसके हुनर को बढ़ावा दिया। आज श्याम प्रकाश जोशी का बेटा दिव्यांश जोशी भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम में शामिल होकर देश के लिए खेलने को तैयार है। उनका परिवार सेक्टरअल्फा-2 में रहता है। पिता के साथ मां ने भी बेटे के लिए जो सपना संजोया था, बेटे ने अंडर-19 टीम में शामिल होकर गुरु दक्षिणा के तौर पर वापस किया। श्याम प्रकाश के परिवार में बेटा दिव्यांश के अलावा पत्नी शशि जोशी और बड़ी बहन रिकांक्षी जोशी हैं।
मूलरूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से ताल्लुक रखने वाले श्याम अपने पिता के साथ वर्ष 1974 में दिल्ली आ गए थे। बचपन में आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। बड़े हुए तो नौकरी करनी शुरू कर दी, साथ में पढ़ाई भी पूरी की। बचपन में एथलेटिक्स का काफी शौक था। बेन जोहंसन के 100 मीटर दौड़ में 9.98 सेकेंड के रिकॉर्ड को तोड़ना चाहते थे, लेकिन रोजी-रोटी के लिए सपने का दफन करना पड़ा। दिल्ली के स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वर्ष 2003 में ग्रेटर नोएडा आ गए। कुछ पैसे एकत्रित हुए तो जमीन खरीद ली और एक कमरे का मकान बनाया। जमीन के बाकी के हिस्से को बच्चों के खेलने के लिए छोड़ दिया। श्याम भी हर अभिभावक की तरह दिव्यांश को डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाना चाहते थे। वह जब छह वर्ष का था। एक दोस्त ने बात कही कि पांच से लेकर 12 वर्ष की उम्र में बच्चे से भरपूर प्यार मिलता है। इसके बाद दिव्यांश के साथ घर पर ही क्रिकेट खेलना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि क्रिकेट के तकनीक की जानकारी नहीं थी तो किताबों से लेकर इंटरनेट का सहारा लिया। वहां की जानकारी दिव्यांश को बताने लगे। 10 वर्ष तक उसने कोई भी मैच नहीं खेला था। साढ़े 10 वर्ष की आयु में दिल्ली में पहला मैच खेला और करीब 86 रन बनाए। इसके बाद दिल्ली में कोच तारक सिन्हा के पास ले गए। दिल्ली से रोजाना उसको लाते और ले जाते थे। इसके लिए कई बार छुट्टी तक लेनी पड़ती थी। स्टेडियम में सुविधा नहीं थी तो एस्टर पब्लिक स्कूल ने काफी साथ दिया। अब उसको भारतीय टीम के लिए खेलते देखना मकसद है।
कोच बताते तो नोट कर लेते
श्याम प्रकाश ने बताया कि बच्चे छोटे होते हैं तो एक बार में समझ नहीं आता। उनको कई बार समझाना होता है। दिल्ली में कोचिंग के दौरान डायरी पकड़कर खड़े रहते थे। कोच जैसे ही कुछ बताते, वह तुरंत नोट कर लेते। फिर घर आकर दिव्यांश के साथ चर्चा करते।