इंग्लैंड ने भारत को दबाव में लाने के लिए पर्याप्त रन नहीं बनाए और इस वजह से उन्हें हार मिली- गावस्कर
गावस्कर ने कहा कि इंग्लैंड की इस टीम के पास बड़े रन बनाने के लिए जो रूट के अलावा कोई नहीं था और वो पहले टेस्ट के दोहरे शतक के बाद भी कुछ नहीं कर सके। इसकी मुख्य वजह यह थी कि इंग्लिश टीम को अच्छी शुरुआत नहीं मिली।
(सुनील गावस्कर का कॉलम)
चौथे टेस्ट की दूसरी पारी में इंग्लैंड के पतन ने दिखाया कि क्यों वे अपनी पहली टेस्ट जीत को भुनाने में असमर्थ थे। जब उन्होंने 1984-85 और 2012-13 में जीत हासिल की तो ना केवल उनके पास गेंदबाजी आक्रमण था, बल्कि उनके पास ऐसे बल्लेबाज भी थे जो भारतीय पिचों पर खेल सकते थे। 1984-85 में माइक गैटिंग ने सीरीज में 500 से अधिक रन बनाए और टिम रॉबिनसन व ग्राहम फेथलर ने 400 से अधिक रन बनाए। इस तरह वे अपने गेंदबाजों के लिए भारतीय पिचों पर 20 भारतीय विकेट लेने के लिए बोर्ड पर अधिक रन बनाने में सक्षम थे।
इंग्लैंड की इस टीम के पास बड़े रन बनाने के लिए जो रूट के अलावा कोई नहीं था और यहां तक कि वह पहले टेस्ट के दोहरे शतक के बाद भी कुछ नहीं कर सके। इसकी मुख्य वजह यह थी कि इंग्लिश टीम को शायद कभी भी अच्छी शुरुआत नहीं मिली थी और इसलिए रूट जब बल्लेबाजी करने आ रहे थे तब टीम पहले ही दो विकेट गंवा चुकी थी और स्कोर बहुत ज्यादा नहीं था। इसलिए जब तक उनका साथ देने के लिए कोई नहीं था तब तक वह हर बार टीम को संकट से नहीं बचा सकते थे। उन्हें पहले टेस्ट में बेन स्टोक्स का साथ मिला और उसके बाद किसी ने उनका साथ नहीं दिया। इसलिए इंग्लैंड ने भारत को किसी भी तरह के दबाव में लाने के लिए कभी भी बोर्ड पर पर्याप्त रन नहीं बनाए।
फिर उनके चयन और रोटेशन नीति से पता चला कि वे शायद इस टेस्ट सीरीज को उतना महत्व नहीं दे रहे थे, जितना वे इसके बाद होने वाली सीमित ओवर सीरीज को दे रहे थे। उनके पास सीमित ओवरों की सीरीज के लिए पूरी ताकत वाली टीम है और टेस्ट सीरीज के लिए उन्होंने कार्यभार प्रबंधन या बायो-बबल के लिए कुछ सबसे अनुभवी खिलाडि़यों को वापस भेज दिया, जिससे यह नजर आ रहा था कि वे टेस्ट मैचों की तुलना में सीमित ओवरों की सीरीज के बारे में अधिक चिंतित थे। इंग्लैंड की टीम में बहुत से युवा खिलाड़ी थे और उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि स्पिन गेंदबाजी को कैसे खेलना है।
अतीत में, काउंटी क्रिकेट के चार या पांच सत्र खेलने के बाद ही बल्लेबाज को इंग्लैंड की टीम में शामिल होने का मौका मिलता था और तब उनके नाम एक दर्जन या अधिक शतक होते थे। यहां डॉम सिब्ले, जैक क्रॉले, ओली पोप और डैन लॉरेंस जैसे खिलाडि़यों के साथ उनके पास प्रतिभावान बल्लेबाज हैं, लेकिन उनके नाम पर बहुत ज्यादा शतक नहीं हैं, जो उन्हें किसी भी पिच पर आत्मविश्वास प्रदान करता। इसलिए जब इन युवा खिलाडि़यों का सामना रविचंद्रन अश्विन की चालाक गेंदबाजी और अक्षर पटेल की अचूक गेंदबाजी से हुआ तो वे काफी घबराये हुए नजर आ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि स्पिन गेंदबाजी को कैसे खेलना है, इसे लेकर उनके पास कोई योजना या प्लान बी नहीं है।
इस सीरीज में युवा रिषभ पंत और वाशिंगटन सुंदर की बल्लेबाजी के लिए कोई भी प्रशंसा बहुत अधिक नहीं हो सकती है। सुंदर दुर्भाग्यशाली रहे जो अपने पहले टेस्ट शतक से चूक गए, लेकिन बहुत ज्यादा बल्लेबाज नहीं हैं जो आठवें नंबर पर 90 पर बल्लेबाजी करने में सक्षम हैं। पंत हर मैच के साथ परिपक्वता दिखा रहे हैं और जिस तरह से उन्होंने अपनी पारी को आगे बढ़ाया, वह वाकई सराहनीय था। वाशिंगटन सुंदर के साथ उनकी साझेदारी मैच को इंग्लैंड से दूर ले गई और भारत ड्राइविंग सीट पर आ गया। हम भारत में आम तौर पर छोटी यादें रखते हैं और कई को दूसरे टेस्ट की पहली पारी में रोहित शर्मा द्वारा बनाए गए शानदार 161 रन नहीं याद होंगे।
उन्होंने कहा कि, यह वो पारी थी जिसने पहला टेस्ट हारने के बाद भारत को वापसी की राह तैयार की। फिर तीसरे टेस्ट की पहली पारी में उन्होंने 60 रन बनाए, जब कोई भी अन्य भारतीय बल्लेबाज सुरक्षित नहीं नजर आ रहा था। इसलिए उनके योगदान को नहीं भूलना चाहिए। रविचंद्रन अश्विन एक और बार मैन ऑफ द सीरीज बने और यह दिखाया कि जब भारतीय पिचों पर खेलने की बात आती है तो उनके करीब कोई भी नहीं होता है। जब पिच को लेकर बकवास बातें हो रही थीं तब अश्विन ने चेन्नई में दूसरे टेस्ट में शतकीय पारी खेली थी, जो उनका सराहनीय प्रयास था। अक्षर पटेल ने 27 विकेट के साथ स्वप्निल पदार्पण किया और अंतिम टेस्ट में धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ बल्लेबाजी की।
उन्होंने यह भी दिखाया कि वह एक अच्छे क्षेत्ररक्षक हैं और इसलिए भारत के लिए रवींद्र जडेजा जैसा एक और खिलाड़ी होना बहुत सकारात्मक है। भारत अब जून में न्यूजीलैंड के खिलाफ विश्व टेस्ट चैंपियनशिप खेलेगा। यह आसान नहीं होगा क्योंकि परिस्थितियां न्यूजीलैंड के अनुकूल हैं। हालांकि, भारत ने हाल के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर दिखाया कि जब उम्मीद कम होती है तो एक-दो खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो उन परिस्थितियों का फायदा उठाते हैं।