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चेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बनाई 'अनाम क्रिकेट अकेडमी', मां ने किस्तों में दिए थे बल्ले के पैसे

भारतीय टीम की टेस्ट की नई दीवार कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने अपने संघर्ष की कहानी को बयां किया और बताया है कि उन्होंने किन-किन परिस्थितियों का सामना बचपन में किया है।

By Vikash GaurEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2020 02:26 PM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2020 02:26 PM (IST)
चेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बनाई 'अनाम क्रिकेट अकेडमी', मां ने किस्तों में दिए थे बल्ले के पैसे
चेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बनाई 'अनाम क्रिकेट अकेडमी', मां ने किस्तों में दिए थे बल्ले के पैसे

नई दिल्ली, जेएनएन। हर मां का दिल कहता है कि उसका बच्चा बड़ा होकर बड़ा अफसर बनेगा या फिर डॉक्टर-इंजीनियर बनेगा, लेकिन भारतीय टीम की टेस्ट की नई दीवार कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा की मां ने कहा था कि उनका बेटा बड़ा होकर क्रिकेटर बनेगा और देश के लिए खेलेगा। यहां तक कि चेतेश्वर पुजारा के पिता अरविंद पुजारा जब उनसे कहते थे कि तुम मां हो, इसलिए ये सब कहती हो तो पुजारा की मां ने कहा था कि मुझसे सफेद कागज पर लिखवा लो कि चेतेश्वर पुजारा भारतीय टीम के लिए खेलेगा और किसी से नहीं रुकेगा। हालांकि, चेतेश्वर पुजारा की मां ने उन दिनों में काफी संघर्ष किया था, जिसकी कहानी खुद चेतेश्वर पुजारा और उनके पिता ने बयां की है।

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बाएं हाथ के बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा ने बताया है कि उन्होंने किन-किन परिस्थितियों का सामना बचपन में किया है और अब वे राजकोट के युवा बच्चों के लिए वो सब फ्री में करना चाहते हैं जो उन्हें उनके बचपन में नहीं मिला। वैसे तो चेतेश्वर पुजारा की कहानी फिल्मी लगती है, लेकिन इसमें वो सब कठिनाईयां, कठिन परिश्रम और दो लोगों का समर्पण शामिल है, जिसकी वजह से चेतेश्वर पुजारा भारतीय टेस्ट टीम के स्पेशलिस्ट बैट्समैन बन गए। चेतेश्वर पुजारा की ये कहानी आपको रुला भी सकती है, लेकिन भारत के मध्यम वर्गीय परिवार में ऐसा होना आम बात है।

पिता थे रेलवे में क्लर्क, मां ने की मेहनत

चेतेश्वर पुजारा के पिता, अरविन्द पुजारा भारतीय रेलवे में क्लर्क के पद पर तैनात थे और उनकी पोस्टिंग राजकोट में थी। गली क्रिकेट खेलते देखकर उन्होंने अपने बेटे यानी चेतेश्वर पुजारा की प्रतिभा को पहचाना था। महज 4-5 साल की उम्र में उनके हाथ में बल्ला थमा दिया था। इतना ही नहीं, 8 साल की उम्र में चेतेश्वर पुजारा की टेनिस बॉल क्रिकेट भी उनके पिता ने बंद करा दी थी, क्योंकि लैथर बॉल और टेनिस बॉल क्रिकेट में जमीन-आसमान का अंतर है। सीनियर पुजारा ने अपने बेटे के क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत और साधन लगा दिए।

अरविंद पुजारा यानी चेतेश्वर पुजारा के पिता ने उनके डांडिया खेलने पर भी रोक लगा दी थी, क्योंकि सुबह प्रैक्टिस के लिए उनको नींद में न पाएं, जिससे कि फोकस बना रहे। पिता के अलावा चेतेश्वर पुजारा की मां ने भी उनके लिए काफी बलिदान दिया, क्योंकि उनकी मां ने 90 के दशक में उनके लिए बैट खरीदकर दिया था, जिसकी कीमत 1500 रुपये उस समय थी। उस समय इतने पैसे एक बल्ले पर खर्च करना बड़ी फिजूलखर्ची के तौर पर देखा जाता था, लेकिन मां ने राजकोट के ही एक स्पोर्ट्स शॉप से किस्तों में बल्ला खरीदा, जिसके लिए उनको हर महीने 100-200 रुपये देने होते थे।

मां ने खुद सिल कर बनाए पैड

चेतेश्वर पुजारा ने क्रिकबज के एक खास सीरीज में खुलासा किया है कि जब वे 8 साल के थे तो उनको बड़े पैड फिट नहीं बैठते थे और फुटवर्क भी अच्छी नहीं होता था। ऐसे में उनकी मां उनके लिए क्रिकेट पैड्स सिल कर तैयार किए थे। ऐसी स्थितियों से कोई राजकोट का युवा खिलाड़ी न गुजरे इसलिए चेतेश्वर पुजारा ने अपने पिता के मदद से अपने होमटाउन यानी राजकोट में एक क्रिकेट एकेडमी बनाई, जिसमें सैकड़ों ट्रकों से काली मिट्टी लाई गई, जिससे कि ग्राउंड और पिच तैयार हो सके। इसमें सफलता मिली, लेकिन उनकी एकेडमी का आज तक कोई नाम नहीं मिला।

खुद पुजारा मानते हैं कि उनकी अकादमी बहुत मशहूर नहीं है, क्योंकि वे किसी प्रकार की मार्केटिंग में विश्वास नहीं रखते। चेतेश्वर बताते हैं, "इस एकेडमी को नेक काम के लिए बनाया गया है। इसका उद्देश्य अच्छे क्रिकेटर तैयार करना है और इसके लिए हमें किसी प्रकार की मार्केटिंग की जरूरत नहीं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ खिलाड़ी आ सकते हैं और सिर्फ अपने खेल पर फोकस कर सकते हैं।" पुजारा इसलिए भी इस क्रिकेट एकेडमी का प्रचार नहीं करते क्योंकि वे फीस नहीं लेते हैं और उनके पास ज्यादा बच्चे आएंगे तो उनके पिता और बाकी सपोर्ट स्टाफ उनको समय नहीं दे पाएंगे।


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