World Tribal Day 2022: छत्तीसगढ़ में तैयार हुआ आदिवासी शब्दकोष, अब अपनी ही बोली में पढ़ेंगे बच्चे
Happy World Tribal Day 2022 आदिवासी बच्चे अब अपनी ही बोली में शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे। गोंडी हल्बी भात्री सरगुजिया कोरवा पांडो कुदुख कमारी आदि बोलियों में विभिन्न शब्दकोश पुस्तकें तैयार किए गए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घोषणा की थी कि बच्चों को उनकी ही बोली में पढ़ाया जाएगा।
रायपुर, संदीप तिवारी। World Tribal Day 2022: राष्ट्रीय शिक्षा नीति का कहना है कि बच्चों को स्थानीय बोली में ही शिक्षा दी जानी है। आदिवासी एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग ने इसके लिए आदिवासी बोलियों का शब्दकोश तैयार किया है।
इसमें गोंडी, हल्बी, भात्री, सरगुजिया, कोरवा पांडो, कुदुख, कमारी आदि बोलियों में विभिन्न शब्दकोश पुस्तकें तैयार की गई हैं।
इन किताबों का इस्तेमाल स्कूलों में बच्चों की शिक्षा के लिए किया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 20 जनवरी 2020 को घोषणा की थी कि राज्य के बच्चों को उनकी ही बोली में पढ़ाया जाएगा। इसे देखते हुए आदिवासी एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग ने ऐसे शब्दकोश तैयार किए हैं।
विभाग के संचालक एवं आयुक्त शम्मी आबिदी ने कहा कि नवा रायपुर अटल नगर के पुरखौटी मुक्तांगन में राज्य के शहीद वीरनारायण सिंह की स्मृति में लगभग 25 करोड़ 66 लाख रुपये की लागत से 10 एकड़ भूमि में स्मारक-सह-संग्रहालय का निर्माण किया जा रहा है।
इसमें प्रदेश के आदिवासी वर्ग के स्वतंत्रता सेनानियों का सीधा परिचय राज्य व देश के शोधार्थियों व आम लोगों को मिलेगा। इसमें ये डिक्शनरी और किताबें रखी जाएंगी।
राज्य में रहती हैं इतनी जनजातियां
राज्य में 42 अधिसूचित जनजातियां और उनके उप-समूह रहते हैं। राज्य की सबसे अधिक आबादी वाली जनजाति गोंड है, जो पूरे राज्य में फैली हुई है। राज्य के उत्तरी क्षेत्र में जहां उरांव, कंवर, पांडो जनजातियां रहती हैं, वहीं दक्षिण बस्तर क्षेत्र में मड़िया, मुरिया, धुरवा, हलबा, अबूझमाड़िया, दोरला जैसी जनजातियां बहुसंख्यक हैं।
टैटू कला सहित तीज-त्योहार के लिए भी पुस्तकें
राज्य में जनजातियों की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है जो उनके दैनिक जीवन, तीज-त्योहारों और धार्मिक रीति-रिवाजों के माध्यम से व्यक्त की जाती है। घोटुल प्रथा, टैटू संस्कृति, बस्तर, गौर, कर्मा, काकसर, शैला, सरहुल और परब आदि जनजातियों के प्रमुख नृत्य जनता के बीच लोकप्रिय हैं।
आदिवासी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान ने इनका सर्वेक्षण कर पुस्तक के रूप में संकलित किया है। इनमें जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, वाद्ययंत्र, नृत्य आदि शामिल हैं।
आदिवासी व्यंजन की पुस्तक
विभाग द्वारा आदिवासी व्यंजनों पर एक किताब तैयार की गई है। इसमें मुख्य व्यंजन जैसे पुरी, अरसा, चौसेला, सोहरी, मुठिया, पन्ना, चटनी, चपड़ा, भाजी, महुआ लाटा, लांदा, हड़िया आदि की जानकारी मिलेगी।
जनजातीय स्वतंत्रता के लोगों, कला-संस्कृति, आदिवासी व्यंजनों और स्थानीय बोली की जानकारी के लिए एक शब्दकोश बनाया गया है।
शम्मी आबिदी, आयुक्त, आदिवासी एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग, छत्तीसगढ़