रायपुरः कर्नाटक की तरह अपने स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में बदले छत्तीसगढ़ सरकार
शिक्षकों का भी हर साल छुट्टी के समय एक महीने का ट्रेनिंग प्रोग्राम चलना चाहिए।
स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने की बहुत जरूरत है। राजधानी समेत प्रदेश भर में स्कूली शिक्षा के लिए जो भी प्रयास हो रहे हैं, उनकी मॉनिटरिंग सिस्टम में अहम बदलाव की जरूरत है। यह कहना है लेखक, साहित्यकार और शिक्षाविद् बीकेएस रे का। उनका कहना है कि आधुनिकीकरण के हिसाब से परिस्थितियां बदलने की जरूरत है। निजी स्कूलों की तर्ज पर राज्य के हर स्कूल को अंग्रेजी माध्यम में बदलने के लिए प्रक्रिया करनी चाहिए। आज अंग्रेजी की मांग है।
कुछ सालों में देखा गया है कि बच्चों के परिजन अंग्रेजी माध्यम की ओर दौड़ रहे हैं। सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम का विकल्प नहीं होने से यहां बच्चों की संख्या घटने लगी है। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार को कर्नाटक सरकार के मॉडल को अपनाना चाहिए। कर्नाटक की सरकार ने अपने बेस्ट प्रैक्टिसेस का उदाहरण देकर प्रदेश के सभी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में बदल दिया है।
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छत्तीसगढ़ के स्कूलों में भी हिन्दी के विकल्प के साथ अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई हर स्कूल में होनी चाहिए। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक ऐसे हों, जिन्होंने अंग्रेजी में एमए यानी स्नातकोत्तर किया है। ऐसे शिक्षकों की चयन प्रक्रिया लिखित में होनी चाहिए। सभी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में तब्दील करने से स्कूली शिक्षा के स्तर में सुधार होगा। सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ेगी।
हाल ही में प्रदेश के 115 स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में बदला गया तो यहां दाखिले का स्तर भी बढ़ा है। ग्रामीण इलाकों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल का टोटा है। लिहाजा परिजनों का निजी स्कूलों के प्रति रूझान लगातार बढ़ रहा है।
समय के अनुसार सिलेबस में भी हो बदलाव
रे का कहना है कि स्कूलों के सिलेबस को लगातार बदलना चाहिए। बच्चों में डायनॉमिक ऊर्जा लाने के लिए बदलती दुनिया के अनुसार सिलेबस को बदलना चाहिए। दूसरे देश जहां पर शिक्षा की स्थिति बेहतर है, वहां पर हर साल सिलेबस को बदला जाता है। कई जगहों पर तो हर घंटे में परिस्थितियों के अनुसार सिलेबस बदलने के लिए रिसर्च संस्थान हैं, जो सिलेबस के बदलने को लेकर सुझाव देते हैं।
लैब और लाइब्रेरी का स्टेटस हो डिजिटल
शिक्षाविद् रे ने कहा कि स्कूलों में अभी भी पुरातन जमाने की लाइब्रेरी और लैब हैं। मुझे लगता है कि डिजिटल इंडिया में अब लैबोरेटरी की गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है। डिजिटल प्रयोग के साथ व्यावहारिक प्रयोग करने के लिए उपयोगी सामग्री हर स्कूल में हो। जहां तक लाइब्रेरी की बात है तो डिजिटल लाइब्रेरी बनानी चाहिए। बच्चों को स्कूल स्तर पर इंटरनेट के जरिए लाइब्रेरी एक्सेस करने का अवसर दिया जाना चाहिए ताकि वे देश-दुनिया का नॉलेज हासिल कर सकें।
रोजगारोन्मुखी कोर्सेस स्कूल स्तर पर ही हों
आज का जमाना स्किल का है। ऐसे में स्कूल स्तर पर ऐसे कोर्सेस चलाने की जरूरत है, जिससे बच्चों में स्किल विकसित हो। वोकेशनल कोर्स पर भी जोर देना चाहिए।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग की हो बेहतर व्यवस्था
स्कूल स्तर पर ही कई प्रवेश परीक्षाएं, छात्रवृत्ति परीक्षाएं जैसे राष्ट्रीय साधन सह छात्रवृत्ति परीक्षा, प्रतिभा खोज परीक्षा आदि होती हैं। इनके बच्चों के लिए विशेष कोचिंग की व्यवस्था की जा सकती है। इसके अलावा राष्ट्रीय आविष्कार अभियान के तहत विज्ञान के लिए प्रोत्साहित करने की योजना में भी बदलाव करके बच्चों को अधिक से अधिक शामिल करना चाहिए।
- बीकेएस रे, लेखक, साहित्यकार और शिक्षाविद्
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