पहली बार नक्सलियों ने पुलिस वाले को बिना शर्त छोड़ा, 20 दिन बाद हुई रिहाई
मड़कम गंगा नाम के पुलिस वाले को पोलमपल्ली इलाके से नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। 20 दिन बाद नक्सलियों ने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसका व्यवहार बहुत अच्छा था।
रायपुर। मड़कम गंगा नाम के पुलिस वाले को पोलमपल्ली इलाके से नक्सलियों ने अगवा कर लिया था। 20 दिन तक उसे बंधक बनाए रखा। उसके अपहरण हो जाने के बाद से उसके गांव में मातम पसरा हुआ था। उम्मीदें टूट चुकी थीं, फिर भी गांव वाले और उसके परिवार के लोग घूम घूमकर फरियाद करते थे कि उसे बचा लो। नक्सलियों को बैनर पोस्टर लेकर खोजते और उसमें लिखते- मड़कम को छोड़ दो। 20 दिन बाद आखिरकार मड़कम गंगा को नक्सलियों ने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसका व्यवहार बहुत अच्छा था। गांव वाले उसे बेहद प्यार करते थे। नक्सलियों ने उसे यही कारण बताकर छोड़ा। 20 दिन तक उसके साथ क्या-क्या हुआ, जाने उसकी ही जुबानी से।
उस दिन मैं ड्यूटी करके लौट रहा था। पोलमपल्ली में ही था। कुछ लोग मेरे पास आए और कहा कि तुम अब हमारे साथ चलोगे।
बचपन से इस इलाके में रहा हूं तो मुझे पहचानते देर नहीं लगी कि ये नक्सली हैं। मैंने कुछ नहीं कहा। क्योंकि कुछ भी कहता तो मेरी जान फौरन चली जाती। मैं चुपचाप उनके साथ चला गया।
उन लोगों ने मेरे हाथ बांधे और मेरी आंख में पट्टी बांध दी। इसके बाद जंगलों के बीच उबड़ खाबड़ रास्तों से मुझे चलाते रहे। मुझे याद नहीं कि मैं उस दिन कितनी दूर चला।
जब चलते-चलते थक गया तो पानी मांगा। उन लोगों की आवाज नहीं आ रही थी, लेकिन उन लोगों ने मुझे पानी दिया।
इसी तरह मुझे जब किसी तरह की जरूरत लगती तो मैं उनसे कहता, तो वे मेरे हाथ खोल देते लेकिन कहते कि आंखों से पट्टी नहीं हटाना, नहीं तो मार देंगे।
मैं वैसा ही करता, जैसा वे कहते। ऐसा करते-करते दिन बीत रहे थे। इस बीच वो जितना पूछताछ करते, मैं उन्हें बताता।
तीन-चार दिनों बाद उनका व्यवहार मेरे प्रति थोड़ा बदला। तो उनमें से एक ने मुझे बताया। गांव वाले तुम्हारी बहुत चिंता करते हैं। तुमसे बहुत प्यार करते हैं।
पुलिस में होने के बावजूद तुम्हारे लिए बीच जंगल में घूम रहे हैं कि हम तुम्हें छोड़ दें। तुम्हारी पत्नी भी उनके साथ है। वो भी रो-रोकर यही पुकार कर रही है।
तुम्हारे लिए उनके मन इतना प्यार और तुम्हारा व्यवहार देखकर उन्हें सूचना दे दी है कि तुम सही सलामत हो, चिंता मत करो। तुम्हें छोड़ देंगे।
नक्सलियों से ये सुनने के बाद मेरी जान में जान आई और तब कहीं जाकर मैं सामान्य हो पाया। इसके बाद मेरा डर दूर हो चुका था। तकरीबन 20 दिन उन लोगों के साथ रहा।
नहाने, खाने और अन्य दूसरे कामों के लिए उन्होंने अब मेरा हाथ-पैर खोल दिया था, लेकिन आंखों से पट्टी हटाने की मनाही तब भी थी। मैं किस जंगल में हूं, कहां हूं, मुझे कुछ पता नहीं था।
खाने में मुझे दाल और भिंडी का झो-झो देते थे। उनकी हरकतों से ऐसा लगता था कि वो लोग किसी उधेड़बुन में हैं कि मुझे मारे या छोड़ दें। उन लोगों ने गांव से मेरे बारे में और परिवार के बारे में पता भी करवाया।
आखिरकार, उन्होंने मुझे छोडऩे का निर्णय लिया और कहा कि तुम्हें गांव वालों के साथ तुम्हारे अच्छे व्यवहार और गांव वालों के तुमसे प्यार के कारण छोड़ रहे हैं।
आंखों में पट्टी बांधे-बांधे मुझे पोलमपल्ली से दूर अतुलपारा के पास सड़क पर छोड़ा और कहा कि दो घंटे तक पट्टी नहीं खोलना। इसके बाद मैं सीधे पोलमपल्ली थाने आ गया।