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हाथ नहीं, अब पैरों से जिंदगी की इबारत लिखेगा इंद्रेश

7 साल की उम्र में 1100 किलो वॉट का करंट लगना। करंट के बाद दोनों हाथ का कंधे तक झुलस जाना।

By anand rajEdited By: Published: Sat, 12 Mar 2016 10:54 AM (IST)Updated: Sat, 12 Mar 2016 11:11 AM (IST)
हाथ नहीं, अब पैरों से जिंदगी की इबारत लिखेगा इंद्रेश

रायपुर। 7 साल की उम्र में 1100 किलो वॉट का करंट लगना। करंट के बाद दोनों हाथ का कंधे तक झुलस जाना। दोनों हाथ कंधों तक सर्जरी कर काट दिया जाना। हादसा, असहनीय दर्द और परेशानियों के बीच मासूम जिंदगी संघर्ष की राह पर चल पड़ी है।

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इंद्रेश, बीते 4 महीनों को भुलाकर हाथों के बगैर जीना सीख रहा है। उसने पैरों में पेन पकड़ना सीख लिया है। अभी आड़ी-तिरछी लाइनें ही खींच रहा है लेकिन उसका हौसला बुलंद है। इसी बुलंद हौसले की बदौलत वह डॉक्टर बनने का सपना देख रहा है।

यह तस्वीर शुक्रवार, 11 मार्च की है। डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में इंद्रेश को उसके माता-पिता जांच करवाने लाए थे। हड्डी रोग विभाग के डॉक्टर ने महीनेभर की दवा दी है। इंद्रेश की मां ने बताया कि वह खुद से लिखना सीख रहा है। उन्होंने जमीन पर पैन और एक कागज रख दिया।

इंद्रेश ने एक पैर के अगुठे और अंगुली की मदद से पैन को फंसाया, दूसरे पैर की मदद से पैन को चालू किया और लिखना शुरू कर दिया। हालांकि अभी यह शुरुआत है। ए, बी, सी, डी लिखने की कोशिश कर रहा है। हड्डी रोग की ओपीडी में डॉक्टर ने उसका यह जज्बा देखा तो हैरत में पड़ गए, अभी ऑपरेशन को दो महीने भी नहीं हुए है और उसने पेन, पैरों से पकड़ना शुरू कर दिया है। इंद्रेश के पिता ने बताया की वे रोजाना उसे अभ्यास करवाते हैं। हर सवाल के जवाब में इंद्रेश ने सिर्फ एक मुस्कान दी, वह ओपीडी में फुर्ती से यहां-वहां दौड़-भाग रहा था। जहां हर कोई उसके माता-पिता से उसके साथ हुए हादसे के बारे में पूछ रहे थे।

कब, कैसे हुआ था हादसा

इंद्रेश दुर्ग जिले के गांव तिरगा का रहने वाला है। घटना 15 दिसंबर की है, जब माता-पिता मजदूरी करने गए थे और यह मौहल्ले के निर्माणाधीन भवन में चढ़ गया। खेलते समय पैर फिसला तो रॉड पकड़ ली। रॉड, हाइटेंशन तार से जा टकराई और इंद्रेश छत से नीचे जा गिरा। आधे घंटे तक वह तड़पता रहा, लोगों ने देखा तो तत्काल परिजनों को सूचना दी। इंद्रेश को जिला अस्पताल दुर्ग ले जाया गया।

उसके दोनों हाथ झुलस चुके थे। कोहनी के नीचे का हाथ बचा ही नहीं था। डॉक्टर्स ने अंबेडर रेफर कर दिया। जहां 20 जनवरी को उसकी सर्जरी की गई। फरवरी में उसे डिस्चार्ज कर दिया। 'नईदुनिया' की पहल पर अंबेडकर अस्पताल ने इलाज का पूरा खर्च खुद वहन करने का निर्णय लिया। अब डॉक्टर्स उसे अर्टिफिशियल हैंड लगाने के लिए निजी कंपनी से संपर्क कर रहे हैं।

माता-पिता ने कहा, जहां तक पढ़ेगा पढ़ाएंगे

इंद्रेश के माता-पिता का कहना है कि वे अब अपने बेटे का भविष्य सवारने खूब परिश्रम करें। दिन-रात मेहनत करेंगे। वे नहीं पढ़ सके, लेकिन इंद्रेश को इस काबिल बनाएंगे कि वह हाथ न होने की कमी महसूस न हो। वह दूसरों की प्रेरणा बन सके।


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