पिता का साथ पाकर नेत्रहीन बेटी ने हासिल की पीएचडी की उपाधि, यूट्यूब वीडियो सुनकर लिखवाई थीसिस
छ्त्तीसगढ़ की देवश्री भोयर ने नेत्रहीन होने के बावजूद पीएचडी की उपाधि हासिल की है। उन्होंने बताया कि यूट्यूब वीडियो सुनकर देवश्री ने ये मुकाम हासिल किया है। देवश्री की पूरी थीसिस उनके पिता ने लिखी थी। आज देवश्री कई युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। छत्तीसगढ़ के पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सैकड़ों छात्रों को गोल्ड मेडल और पीएचडी की उपाधि दी गई। इस दौरान 136 छात्रों को गोल्ड मेडल और 308 पीएचडी धारकों को उपाधि दी गई।
वहीं, एक पीएचडी छात्रा ने पूरे सभा का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। दरअसल, देवश्री भोयर बचपन से ही नेत्रहीन थी, लेकिन इनके पिता ने अपनी बच्ची को जिंदगी में आगे बढ़ाने और ऊंचा मुकाम हासिल कराने के लिए कुछ ऐसा कर दिया, दो सबके लिए संभव नहीं हो सकता था।
दिव्यांगता को नहीं बनाया बाधा
देवश्री ने राजनीति विज्ञान के अंतर्गत भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान विषय में शोध कर पीएचडी की उपाधि हासिल की है। वर्तमान में, देवश्री धमधा के शासकीय स्कूल में टीचर के पद पर नौकरी कर रही हैं।
पांचवी तक ब्लाइंड स्कूल में पढ़ी देवश्री
देवश्री ने पांचवी तक ब्लाइंड स्कूल में पढ़ाई की, लेकिन उसके बाद उनके पिता ने उनका दाखिला एक सामान्य स्कूल में करा दिया। देवश्री ने बताया कि ब्रेल लिपि न होने के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उनके पिता और शिक्षकों ने उनका काफी साथ दिया। देवश्री ने बताया कि उनके पिता और परिवार के सदस्य बोल-बोल कर उन्हें पढ़ाते थे और यूट्यूब की वीडियो सुनकर वो अपने पाठ्यक्रमों का समझा करती थीं।
Devshree Bhoyar says, "This wasn't very difficult because my parents helped me all through. They and I both wanted PhD for me...I had books till std 8, there was nothing after that. So, my parents used to read it aloud to me. I also took the help of YouTube. My parents work as… pic.twitter.com/pFyj6XfY4w— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) May 25, 2023
देवश्री के पिता ने किया दृढ़ निश्चय
देवश्री की पिता पेशे के एक मजदूर हैं, जिन्होंने 12वीं तक शिक्षा हासिल की थी। देवश्री ने बताया कि उनके पिता उन्हें साइकिल से स्कूल और कॉलेज छोड़ने और लेने जाया करते थे। उनके पड़ोसी अक्सर उनके परिवार को ताने मारते थे कि नेत्रहीन बच्चे को पढ़ाने का क्या फायदा है, वो लोग अपना पैसा बर्बाद कर रहे हैं। इसके बावजूद देवश्री के पिता सबकी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी बेटी को आगे बढ़ाना चाहते थे।
अपनी बेटी के लिए पिता ने लिखा पूरा थीसिस
देवश्री ने बताया कि उनके पिता उनके साथ बैठकर पढ़ाई करते थे और हर चीज बोल-बोलकर बताते थे। देवश्री के पिता ने निश्चय कर लिया था कि वे नहीं पढ़ सके हैं, लेकिन उनकी बच्ची शोध करेगी। देवश्री ने बताया कि शोध के दौरान पिता ही उनकी थीसिस लिखा करते थे। उनके पिता अपना घर चलाने के लिए एक छोटी-सी दुकान चलाते थे और वहां से निपटने के बाद अपनी बेटी की पढ़ाई मे मदद करते थे।
रात-रात भर जगकर लिखते थे थीसिस
देवश्री ने कहा कि उनके विचारों को उनके पिता ने पन्नों पर उकेरा है। उन्होंने कहा कि उनके पूरे दिन थक-हार कर, जब घर आते थे, तो इनकी थीसिस लिखा करते थे। कई बार तो रात-रात भर जगकर उनके पिता ने थीसिस लिखा है।
उन्होंने, जो भी मुकाम हासिल किया है, वो सिर्फ उनके पिता के सहयोग की वजह से हुआ है। उनके बिना कुछ भी कर पाना देवश्री के लिए असंभव था। उन्होंने यह भी बताया कि पीएचडी पूरी करने में उनके गाइड और दुर्गा महाविद्यालय के प्रोफेसर डां. शुभाष चंद्रकार का भी अहम योगदान रहा।