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Chhattisgarh: आपसी रंजिश में दी गई गवाही के आधार पर निर्दोष को नहीं दी जा सकती सजा: हाई कोर्ट

Chhattisgarh छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा कि आपसी रंजिश के चलते दी गई गवाही के आधार पर किसी निर्दोष को सजा नहीं दी जा सकती है। लेकिन दुर्भावना या रंजिशवश दी गई गवाही के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Mon, 25 Jul 2022 09:02 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jul 2022 09:02 PM (IST)
Chhattisgarh: आपसी रंजिश में दी गई गवाही के आधार पर निर्दोष को नहीं दी जा सकती सजा: हाई कोर्ट
आपसी रंजिश में दी गई गवाही के आधार पर निर्दोष को नहीं दी जा सकती सजा: हाई कोर्ट

बिलासपुर, राधाकिशन शर्मा। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि आपसी रंजिश के चलते दी गई गवाही के आधार पर किसी निर्दोष को सजा नहीं दी जा सकती है। हाई कोर्ट ने कहा है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 30 के तहत सह अभियुक्त की गवाही को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन दुर्भावना या रंजिशवश दी गई गवाही के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए तीन अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त किया है।

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जानें, क्या है मामला

जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती में जमीन विवाद को लेकर हुई हत्या के मामले में पुलिस ने शत्रु पक्ष के जमुना बाई व श्याम सुंदर के साथ ही मृतक के करीबी सुरेंद्र कुमार, सहानीराम और दधीबल को भी आरोपित बनाया था। इन तीनों को आरोपित बनाने का आधार जमुना बाई और श्याम सुंदर का बयान था, अन्य साक्ष्य कोई नहीं मिला था। निचली अदालत ने जमुना बाई व श्याम सुंदर के बयान के आधार पर उनके साथ ही सुरेंद्र कुमार, सहानीराम और दधीबल को भी आजीवन कारावास की सजा सुना दी। तीनों ने इस निर्णय के विरुद्ध हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो इन्हें फंसाने वाले सह अभियुक्तों ने आपराधिक अपील दायर कर दी। दोनों याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल व जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डबल बेंच में एक साथ हुई।

इधर, सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार कर दि,या जिसमें शीषर्ष कोर्ट और देशभर के हाई कोर्टो में गर्मियों के दौरान वकीलों के लिए काला कोट और गाउन पहनने से छूट की मांग की गई थी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद-32 के तहत याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकती और याचिकाकर्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी से अपनी शिकायत लेकर बार काउंसिल आफ इंडिया (बीसीआइ) के पास जाने को कहा। पीठ ने शैलेंद्र मणि से कहा कि अगर बीसीआइ उनकी याचिका पर कार्रवाई नहीं करती है तो वह फिर शीषर्ष अदालत में आ सकते हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली।


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