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    बस्तर में हिंसा पर भारी 'प्रेम' की खेती, गुलाब से आ रही समृद्धि; सालाना 10-12 लाख रुपये कमा रहे किसान

    Updated: Sun, 22 Dec 2024 06:36 PM (IST)

    बस्तर का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले हिंसा और नक्सलवाद के ख्याल ही आते हैं लेकिन सुरक्षाबलों के साथ-साथ लोगों के प्रयासों से हालात तेजी से बदल रहे हैं। किसानों ने भी बस्तर को नई पहचान दिलाने में कमर कस ली है और कभी हिंसा से प्रभावित बस्तर में आज गुलाब से समृद्धि की खुशबू आने लगी है। पढ़ें खास रिपोर्ट।

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    बस्तर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जरबेरा फूल की खेती। (फोटो- जेएनएन)

    अनिमेष पाल, जगदलपुर। नक्सल हिंसा से प्रभावित बस्तर इन दिनों 'प्रेम' के प्रतीक गुलाब की खेती से महक उठा है। पिछले चार-पांच वर्ष में बस्तर के किसानों ने आधुनिक कृषि तकनीक के प्रयोग से अपने खेतों में गुलाब की खेती प्रारंभ की, जिसका सफल परिणाम सामने आया है। यहां से बड़े पैमाने पर गुलाब निर्यात हो रहा है। फूलों की खेती से किसानों में समृद्धि भी आ रही है।

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    बस्तर में पहली बार वर्ष 2020 में गुलाब की खेती प्रारंभ हुई थी। तब से लेकर अब तक लगभग 30 किसान गुलाब की खेती करने लगे हैं। बस्तर जिले में 40 एकड़ में गुलाब की खेती हो रही है। प्रतिदिन 50 हजार से अधिक फूलों का उत्पादन हो रहा है, जिसे यहां से भुवनेश्वर, कोलकाता जैसे शहरों में निर्यात किया जाता है। इससे किसानों को प्रति एकड़ 10 से 12 लाख रुपये की आय भी हो रही है।

    दूसरे किसानों को मिल रही प्रेरणा

    (बस्तर क्षेत्र में पालीहाउस में गुलाब की खेती। फोटो- जेएनएन)

    जहां कभी बम और बारूद की गंध आती थी, वहां के गांवों में किसान आधुनिक कृषि पद्धति को अपनाकर गुलाब सहित अन्य फूलों की खेती करने लगे हैं। इससे आसपास के दूसरे किसानों को भी प्रेरणा मिल रही है। सरकार भी पाली हाउस में गुलाब की खेती के लिए 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है। इसके लिए उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग की वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होता है। बता दें कि डच गुलाब की खेती केवल पालीहाउस में ही की जाती है। डच गुलाब का रस गन्ने के रस से भी कई गुना मीठा होता है।

    पहले वर्ष 15 लाख से अधिक की कमाई

    (अपने पालीहाउस में डॉ. कमल सिंह सेते। फोटो- जेएनएन)

    सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ कमल सिंह ने जगदलपुर से लगभग 20 किमी दूर जमावाड़ा गांव में पालीहाउस तकनीक के माध्यम से गुलाब की खेती शुरू की थी। वे स्वास्थ्य विभाग में खंड चिकित्सा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए है। उन्होंने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) की योजना वाणिज्यिक बागवानी के तहत 65 लाख रुपये से प्रोजेक्ट तैयार कर खेती प्रारंभ की। इसमें आसानी से बैंक से लोन भी मिल गया।

    अपने खेत में नीदरलैंड के डच गुलाब, जुमेलिया गुलाब व गुलाबी गुलाब की तीन प्रजाति लगाई। तीन माह में ही उत्पादन शुरू हो गया। पहले वर्ष लगभग 24 लाख रुपये का गुलाब बेचा, जिससे 15 लाख रुपये से अधिक की कमाई हुई। दो वर्ष बाद उत्पादन कम हुआ है, पर 10 से 12 लाख रुपये प्रतिवर्ष की कमाई हो रही है।

    परंपरागत खेती छोड़ कर रहे फूलों की खेती

    (गुलाब के बंच के साथ अपने खेत में किसान सुरेंद्र नाहर । फोटो- जेएनएन)

    सुरेंद्र नाहर परंपरागत रुप से धान व सब्जियों की खेती करते थे, पर अब वे भी गुलाब की खेती कर रहे हैं। सुरेंद्र ने बताया कि शहर के आसपास बहुत से लोगों को गुलाब की खेती करते देखने के बाद उन्होंने भी बोर्ड की सहायता से गुलाब उगाना शुरू किया है। शुरुआती नौ माह में ही वे लगभग दस लाख रुपये का गुलाब बेच चुके हैं। बागवानी बोर्ड से जुड़कर काम करने के बाद उन्होंने एक कंपनी से अनुबंध किया है।

    कंपनी के लोग ही गुलाब खरीद लेते हैं। इससे बेचने की समस्या भी नहीं रहती। प्रतिदिन एक हजार से अधिक गुलाब का उत्पादन वे कर रहे हैं। थोक में पांच रुपये की दर से यह गुलाब बिक जाते हैं। डच प्रजाति के गुलाब की मांग अधिक है, इसलिए इसी प्रजाति के फूल उन्होंने लगाए हैं।

    घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर में भी खेती

    बस्तर जिले में पिछले चार वर्ष पहले शुरू हुआ फूलों की खेती का दायरा अब घोर नक्सल प्रभावित नारायणपुर तक पहुंच चुका है। नारायणपुर के आदिवासी किसान देवीलाल दुग्गा ने चार वर्ष पहले खेती प्रारंभ की थी और अब उन्हें इससे अच्छा लाभ हो रहा है। इसी तरह कोंडागांव के किसान रामसाय मरकाम व हितेंद्र देवांगन ने भी अपने खेतों में गुलाब उगाना प्रारंभ किया है। गुलाब के साथ-साथ जरबेरा, सेवंती जैसे फूलों की खेती की ओर भी किसानों का रुझान बढ़ा है।

    (जुमेलिया का फूल)

    (गोल्ड रोज।)