आडवाणी की बायोग्राफी की 500 कॉपियां कूड़े में फेंकी
बीजेपी के सीनियर लीडर एलके आडवाणी की की बायोग्राफी 'मेरा देश' की करीब 500 कॉपियों को अफसरों ने रद्दी बताकर महासमुंद कचहरी कैंपस में रद्दियों में फिंकवा दिया है। अफसरों का तर्क है कि जिन किताबों को दीमक भी नहीं खा रहे उन्हें पढ़ेगा कौन?
रायपुर। बीजेपी के सीनियर लीडर एलके आडवाणी की की बायोग्राफी 'मेरा देश' की करीब 500 कॉपियों को अफसरों ने रद्दी बताकर महासमुंद कचहरी कैंपस में रद्दियों में फिंकवा दिया है। अफसरों का तर्क है कि जिन किताबों को दीमक भी नहीं खा रहे उन्हें पढ़ेगा कौन?
पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग के अफसर का तर्क है कि जिन किताबों की समाज को जरूरत है उन्हें मंगाकर थक गए हैं। ऐसी किताबों को बांटने अफसर दबाव दे रहे हैं, जिन्हें दीमक भी नहीं खा रहे। अफसरों के अनुसार आत्मकथा को अभी तक किसी ने नहीं पढ़ा है क्योंकि बंडल खोलने तक का समय किसी के पास नहीं है। बारिश में सड़ रही 500 से अधिक किताबों को आपत्ति के बाद भी विभाग ने वापस नहीं लिया है।
किताब में संघर्ष की कहानी
किताब में आडवाणी के आपातकाल के समय लोकतंत्र के लिए किए गए संघर्ष, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए राम रथयात्रा का विवेचन किया गया है। वहीं 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार में गृहमंत्री फिर उपप्रधानमंत्री पद पर आडवाणी के दायित्व का उल्लेख है। आडवाणी की आत्मकथा को पंचायत प्रतिनिधियों को भेजा जाना था।
विभाग के रिकार्ड में दीमक खा गई किताब
कचरे में फेंकी गई किताबों का स्टाक मेंटेन करने विभाग ने भी खासी तैयारी की है। कागजों में ही योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर चर्चित रहे विभाग के अफसर कहते हैं कि रिकार्ड में कुछ किताबों को साबूत रखा गया है। जिन किताबों को फेंका गया है, उन्हें दीमक लगने से खराब होना और रखने योग्य नहीं होना बताया गया है। अफसरों का कहना है कि उन्होंने किताबों को रखने और रखरखाव के लिए व्यवस्था दिए जाने की बात लिखकर भेज दी है।
बकायदा नोटशीट चलाकर मंगाई थी किताब
पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग को 2008 में 794 पन्नों की 500 किताबों की पहली खेप भेजी गई थी। भुगतान विभाग ने बकायदा नोटशीट चलाकर किया था। यह भी कहा जा रहा है कि कंपनी को सीधे चेक भेजे गए थे और उसके बाद किताबें पंचायतों में बांटने भिजवाई गई थीं।किताबें विभाग के जिला दफ्तर पहुंची भी, लेकिन बांटना उचित नहीं समझा गया। इसे राजीव वाचनालयों में लोगों के निहितार्थ रखना था।
रखने की जगह नहीं, इसलिए खा गए दीमक
उपसंचालक, पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग, महासमुंद संजय पांडेय का कहना है कि आडवाणी की आत्मकथा मेरा देश को पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग ने थोक में खरीदा था। जिला कार्यालयों से ग्रंथालय मद की राशि भुगतान की गई है। किताबों को रखने की जगह नहीं है, इसलिए दीमक खा रहे थे।" वैसे भी अब यह किताब अनुपयोगी हो गई है, इसलिए फिंकवा दिया हूं। ऐसी किताबें मंगानी ही नहीं चाहिए।