आदिवासी कला को नया जीवन देगी बांस से बनी बम्बूका साइकिल अंतरराष्ट्रीय बाजार में धूम मचाने को तैयार
बस्तरिया बांस से बनी बम्बूका साइकिल अंतरराष्ट्रीय बाजार में धूम मचाने को तैयार है। इसकी खासियत यह है कि इसे बस्तर के शिल्पकार बांस से तैयार कर रहे हैं। बस्तर की नेचर एक्सेप संस्था देश की तीसरी और छत्तीसगढ़ की पहली संस्था है जो अनूठा प्रयोग कर रही है।
अनुराग शुक्ला, जगदलपुर! बस्तरिया बांस से बनी बम्बूका साइकिल अंतरराष्ट्रीय बाजार में धूम मचाने को तैयार है। इसकी खासियत यह है कि इसे बस्तर के शिल्पकार बांस से तैयार कर रहे हैं। बस्तर की नेचर एक्सेप संस्था देश की तीसरी और छत्तीसगढ़ की पहली संस्था है, जो इस तरह का अनूठा प्रयोग कर रही है। हालांकि दुनिया में कई कंपनियां बांस की साइकिल बनाती हैं, पर इस बम्बूका साइकिल को बस्तर के आदिवासियों की ढोकरा शिल्प, लौह शिल्प, शीशल (जूट) और बांस शिल्प की कारीगरी से सजाया गया है। बस्तर की हस्तशिल्प कला का उपयोग साइकिल की चेसिस, सीट, सीट कवर, हैंडल, मडगार्ड में किया जा रहा है। आदिवासियों की विलुप्त होती बांस कला को पुनर्जीवित कर युवाओं को रोजगार से जोडऩा इस योजना का उद्देश्य है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए तैयारी:
पहली साइकिल बनकर तैयार है और अब कलेक्टर रजत बंसल के मार्गदर्शन में इसे बड़े पैमाने पर बाजार में उतारने की तैयारी की जा रही है। जिला प्रशासन ने बम्बूका साइकिल और बस्तरिया हस्तशिल्प को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोशन के लिए आनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट से करार किया है। अमेजन से भी बात चल रही है। भारत में कर्नाटक और मुंबई में पहले से ही बांस की साइकिल बनाई जा रही हैैं। बांस की पहली इको फ्रैंडली साइकिल 2008 में कर्नाटक के विजय शर्मा ने बनाई थी। मेट्रो सिटी बेंगलुरू में इसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली। बाद में 2014 में मुंबई के कैप्टन शशि पाठक ने बांस की साइकिल की नई डिजाइन तैयार कर इसे बाजार में उतारा। अब बस्तर के मुहम्मद आसिफ खान ने बस्तरिया शिल्पकला के साथ बम्बूका साइकिल बनाने का प्रयोग किया है। उन्होंने मुंबई के कैप्टन शशि पाठक से मार्गदर्शन लिया।
25 से 40 हजार रुपये तक होगा दाम:
बाजार में बांस की उपलब्ध साइकिलों के दाम 50 हजार रुपये तक हैं, लेकिन बस्तर की बम्बूका साइकिल को 30 हजार रुपये में लांच करने की योजना है। साइकिल में शिल्पकला और मांग के अनुरूप अन्य फीचर जोडऩे पर इसका दाम कम से कम 25 हजार और अधिकतम 40 हजार तक होगा। फिलहाल साइकिल की बांस निर्मित चेसिस लुधियाना से और धातु के पुर्जे मुंबई से आ रहे हैैं। जगदलपुर के धरमपुरा स्थित केंद्र में शिल्पकार इन साइकिलों के निर्माण में जुटे हैं। बस्तर के थोक साइकिल कारोबारियों का कहना है कि अगर बड़े पैमाने पर उत्पादन हो तो वह धातु के पुर्जे कम दाम में उपलब्ध करा सकते हैं। इससे बम्बूका साइकिल का दाम और कम हो सकता है।
हल्की, झटकारहित इकोफ्रेंडली साइकिल:
बम्बूका साइकिल के डिजाइनर मुहम्मद आसिफ खान ने बताया कि इसे बनाने के लिए पहले इसका प्रोटोटाइप (शुरूआती डिजाइन की कल्पना) तैयार किया। बाद में इसमें शिल्पकला के उपयोग का विचार आया। साइकिल में बांस को जूट के सहारे कसा गया है। यह साइकिल इकोफ्रेंडली तो है ही, लोहे की साइकिल की तुलना में 50 फीसद हल्की व झटकारहित भी है। बांस में लचक होती है। इस गुण के कारण बांस की साइकिल सड़क के गढ्ढे आसानी से झेल लेती है और चलाने वाले को झटका कम लगता है।
बस्तर की शिल्पकला की ख्याति दुनियाभर में है, पर सही प्रमोशन के अभाव में शिल्पकारों को उचित दाम नहीं मिल पा रहा था। हमने शिल्पकला को रोजगार से जोडऩे के लिए कलागुडी केंद्र स्थापित किया है। यहां बस्तर की हस्तशिल्प कला को प्रदर्शित किया जा रहा है। हस्तशिल्प से निर्मित साइकिल व अन्य कलाकृतियों को उचित बाजार दिलाने के लिए आनलाइन मार्केटिंग कंपनियों से करार किया जा रहा है।
-रजत बंसल, कलेक्टर, बस्तर