भोरमदेव मंदिर की दिवार पर दरार
कवर्धा [छत्तीसगढ़ ब्यूरो]। भोरमदेव मंदिर में का आस्तित्व अब खतरे में नजर आने लगा है। मंदिर के प्रवेश द्वार की दिवारों पर लंबी व मोटी दरारें पड़ गई है जिससे मंदिर का प्रवेश द्वार टूट कर गिरने का अंदेशा बना हुआ है।
मैकल पर्वत के श्रेणियों के बीच प्रकृति के गोद में धार्मिक पौराणिक तथा पुरातात्विक महत्व के 11 शताब्दी के ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ खुजराहों के नाम से पहचाना जाता है। फणीनागवंशी काल में निर्मित 11 शताब्दी के इस मंदिर में मंडप व गर्भ गृह पहुंचने से पूर्व दिशा तथा दक्षिण व उत्तर दिशा पर प्रवेश द्वार बना हुआ है। पूर्व दिशा की प्रवेश द्वार के दिवारों पर चार अलग अलग स्थानों पर लंबी व मोटी दरारें पड़ गई है। जिससे मंदिर का प्रवेश द्वारा टूट कर गिरने की स्थिति पर आ गया है। यदि समय रहते इसका संरक्षण नहीं किया गया तो एतिहासिक महत्व का भोरमदेव मंदिर अपना आस्तित्व खो देगा।
भोरमदेव मंदिर के दिवालों में दरार की सूचना के बाद नई दुनिया के प्रतिनिधि ने मंदिर का निरिक्षण किया जिसमें पाया कि पूर्व दिशा के प्रवेश द्वार में दोनों ओर दरारें पड़ चुकी है तथा मंदिर के छत पर लगातार पानी भरे रहने के कारण पानी के रिसाव के चलते मंदिर के दिवालें क्षतिग्रस्त हो रही है।
संरक्षण व संवर्धन जरूरी: भोरददेव तीर्थ कारिणी प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष जीपी अवस्थी ने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को 4 पत्र लिखा गया है, लेकिन उनकी ओर से इस दिशा पर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। भोरमदेव समिति को मंदिर में पूजा ,प्रकाश तथा अतिथियों की व्यवस्था की जिम्मेदारी है। भोरमदेव मंदिर का संरक्षण व संवर्धन बहुत जरूरी है। मंदिर के दिवाल पर दरार पड़ना गंभीर विषय है।
पूरात्तव विभाग की लापरवाही
ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व के भोरमदेव मंदिर में पूरातत्व विभाग की लापरवाही खुलकर सामने आई है। लंबे समय से पानी के रिसाव के चलते दीवालों में दरार पड़ने लगी है। अब यह दरार मोटी और लंबी हो चुकी है यदि समय सरंक्षण व संवर्धन पर सरकार गंभीर नहीं हुई तो मंदिर का आस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
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