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रेपो रेट से लेकर सीआरआर तक समझिए क्या होते हैं इन शब्दों के मतलब

RBI की आज वर्ष 2017 की आखिरी MPC बैठक है। बैंक ने रेपो रेट को 6 फीसद पर बरकरार रखा है

By Surbhi JainEdited By: Published: Wed, 06 Dec 2017 02:26 PM (IST)Updated: Thu, 14 Dec 2017 05:13 PM (IST)
रेपो रेट से लेकर सीआरआर तक समझिए क्या होते हैं इन शब्दों के मतलब
रेपो रेट से लेकर सीआरआर तक समझिए क्या होते हैं इन शब्दों के मतलब

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों को बरकरार रखा गया है। ऐसे में  आरबीआई क्रेटिड पॉलिसी के दौरान  रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर जैसे शब्द जरूर सुने होंगे। क्या आप जानते हैं कि इन शब्दों का क्या मतलब होता है। जागरण डॉट कॉम अपनी इस खबर के माध्यम से आज इन्हीं शब्दों के मायने बताने जा रहा है। जानिए आरबीआई की आर्थिक समीक्षा नीतियों से जुड़े इन शब्दों के बारे में....

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क्या होती है रेपो रेट:
रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि।

रिवर्स रेपो रेट:
यह वह दर होती है जिसपर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।

एमएसएफ क्या है?
आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था। यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ। इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी वर्किंग डे में मिलती है।

नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर):
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है।

क्या होता है एसएलआर:
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी आपात देनदारी को पूरा करने में किया जाता है। आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम ही बचती है।


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