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निर्मला सीतारमण बनी नई वित्‍त मंत्री, सामने हैं ये चुनौतियां

तमिलनाडु के एक साधारण में परिवार में 18 अगस्त 1959 को जन्‍में सीतारमण के सामने वित्‍त मंत्री के तौर पर कई चुनौतियां हैं

By Manish MishraEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 02:13 PM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 07:09 PM (IST)
निर्मला सीतारमण बनी नई वित्‍त मंत्री, सामने हैं ये चुनौतियां
निर्मला सीतारमण बनी नई वित्‍त मंत्री, सामने हैं ये चुनौतियां

नई दिल्‍ली (बिजनेस डेस्‍क)। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण को वित्‍त मंत्रालय की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। तमिलनाडु के एक साधारण में परिवार में 18 अगस्त 1959 को जन्‍मीं सीतारमण के सामने वित्‍त मंत्री के तौर पर कई चुनौतियां हैं। आपको बता दें कि अपनी शुरुआती पढ़ाई तमिलनाडु के तिरुचिरापल्‍ली से करने वाली सीतारमण ने अर्थशास्‍त्र में ग्रेजुएशन किया और दिल्‍ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से उन्‍होंने मास्‍टर्स की डिग्री ली। इसके बाद उन्‍होंने इंडो-यूरोपियन टेक्‍सटाइल ट्रेड में पीएचडी किया। आइए जानते हैं कि ए‍क वित्‍त के तौर पर उनके सामने वर्तमान में क्‍या चुनौतियां हैं।

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आर्थिक विकास दर: देश की आर्थिक विकास दर 5 तिमाहियों के निम्‍नतम स्‍तर 6.6 फीसद पर पहुंच गई है। ऐसे में सीतारमण के सामने सबस बड़ी चुनौती विकास को गति देनी होगी ताकि आर्थिक विकास दर 7 फीसद या इससे अधिक रहे।

मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर को मजबूती देना: देश के मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर में भी सुस्‍ती बनी हुई है। मार्च में औद्योगिक उत्‍पादन 21 महीने के निचले स्‍तर -0.1 फीसद के स्‍तर पर रहा था। विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करने के लिए मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर पर खास ध्‍यान देने की जरूरत है।

मांग में सुस्‍ती: हाल के दिनों में पैसेंजर व्‍हीकल से लेकर एफएमसीजी की मांग में सुस्‍ती आई है। ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी वस्‍तुओं की बिक्री सबसे ज्‍यादा घटी है। ऐसे में नई वित्‍त मंत्री के सामने मांग में तेजी लाने की चुनौती भी होगी। 

GST: भाजपा के मैनिफेस्‍टो में वस्‍तु एवं सेवा कर को सरल बनाने की बात कही गई थी। दूसरी तरफ, लोग चाहते हैं कि 18 फीसद और 28 फीसद का स्‍लैब खत्‍म किया जाए। हो सकता है एक बार फिर सत्‍ता में आई मोदी सरकार इस संदर्भ में कोई ठोस कदम उठाए। 

निर्मला सीतारमण को आने वाले समय में बजट पेश करेंगी। इससे पहले उन्‍हें बढ़ती महंगाई, तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और रुपये की कमजोरी जैसे मुद्दों का भी सामना करना पड़ेगा।

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