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ITR: जान लीजिए कौन सा फॉर्म है आपके लिए जरूरी और कितने तरह के होते हैं फॉर्म

ITR-2 फॉर्म इंडिविजुअल्स और HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) के लिए होता है

By Sajan ChauhanEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 07:01 PM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 09:05 AM (IST)
ITR: जान लीजिए कौन सा फॉर्म है आपके लिए जरूरी और कितने तरह के होते हैं फॉर्म
ITR: जान लीजिए कौन सा फॉर्म है आपके लिए जरूरी और कितने तरह के होते हैं फॉर्म

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। वित्त वर्ष 2018-19 (आंकलन वर्ष 2019-20) के लिए आईटीआर रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2019 निर्धारित है। यानी आईटीआर दाखिल करने के लिए अब आपके पास काफी कम समय बचा है, ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि किस करदाता के लिए कौन सा आईटीआर फॉर्म भरना इस बार जरूरी है। जानिए कितने तरह के होते हैं आईटीआर फॉर्म। जानिए...

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आईटीआर-1: इस फॉर्म को सहज फॉर्म कहा जाता है। यह फॉर्म व्यक्तिगत (इंडिविजुअल) करदाताओं के लिए होता है और इसे 50 लाख रुपए से कम की आय वाले करदाता ही भर सकते हैं। इसमें नौकरी से होने वाली आय, हाउस प्रॉपर्टी (सिर्फ एक घर) से होने वाली आय और अन्य आय (ब्याज एवं कमीशन से होने वाली आय) शामिल होती है।

अब क्या हुआ बदलाव?

अब इन चार शर्तों पर आईटीआर-1 फॉर्म नहीं भर सकते हैं....
1. अगर आप किसी कंपनी में डॉयरेक्टर हैं
2. आप गैर सूचीबद्ध कंपनी में निवेशक हैं
3. कोई किसी और व्यक्ति की इनकम आप में एड हो रही है जिस पर टीडीएस कटा है
4. इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज में कोई खर्चा क्लेम कर रहे हो

आईटीआर-2: यह इंडिविजुअल्स और HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) के लिए होता है। इसे 50 लाख से ज्यादा की आमदनी वाला करदाता भर सकता है। इसमें बिजनेस और प्रोफेशन से होने वाली आय को शामिल नहीं किया जाता है। इसमें आपको काफी डिटेल देनी होगी। मसलन आप कहां-कहां डायरेक्टर है और गैर सूचीबद्ध कंपनियों में आपके पास कहां-कहां शेयर होल्डिंग है। इसके अलावा आपसे आपके रेजिडेंशियल स्टेट्स के निर्धारण के लिए आपसे कुछ सवाल पूछे जाएंगे जैसे कि आप भारत में पिछले साल कितने समय तक रहे हैं? दो साल, 4 साल और 10 साल में...आपको इसकी डिटेल देनी होगी।

आईटीआर-3: यह इंडिविजुअल्स और HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) दोनों के लिए होता है। इसमें सैलरी, बिजनेस, हाउस प्रॉपर्टी और अन्य स्रोतों से होने वाली आय को शामिल किया जाता है। आमतौर पर ऑडिट कराने वाले लोग इसी फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। इसमें भी आपको काफी डिटेल देनी होगी। मसलन आप कहां-कहां डायरेक्टर है और गैर सूचीबद्ध कंपनियों में आपके पास कहां-कहां शेयर होल्डिंग है। इसके अलावा आपसे आपके रेजिडेंशियल स्टेट्स के निर्धारण के लिए आपसे कुछ सवाल पूछे जाएंगे जैसे कि आप भारत में पिछले साल कितने समय तक रहे हैं? दो साल, 4 साल और 10 साल में...आपको इसकी डिटेल देनी होगी।

आईटीआर-4: इस फॉर्म को सुगम कहते हैं। इसमें प्रिजम्पटिव सोर्स ऑफ इनकम को शामिल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर समझें अगर आपके प्रोफेशन से 10 लाख की आय हुई है तो इसमें से 5 लाख को आय और 5 लाख को खर्च मान लिया जाएगा और इसी 5 लाख की आय पर आपको टैक्स देना होगा। वहीं बिजनेस करने वाले लोगों के मामले में यह आंकड़ा 8 फीसद और 92 फीसद का होता है। यानी आपकी कुल आय में से 8 फीसद हिस्से को आमदनी और 92 फीसद हिस्से को खर्च मान लिया जाता है और इसी 8 फीसद को आय माना जाएगा।
अभी तक की स्थिति के मुताबिक नॉन रेजिडेंट (एनआरआई) भी आईटीआर-4 फॉर्म को भर सकते थे। लेकिन वो अब ऐसा नहीं कर सकते हैं। अब यहां पर काफी सारे प्रतिबंध आ गए हैं।

क्या हुआ बदलाव?

आईटीआर-4 में आईटीआर-1 की चारों शर्तें आ ही गईं हैं। साथ ही इसमें इनकम से जुड़े प्रतिबंध जोड़ दिए गए हैं, जैसे कि 50 लाख से अधिक आय है तो आप आईटीआर-4 दाखिल नहीं कर सकते और अगर आप लॉस कैरी फॉरवर्ड करना चाहते हैं तो भी आप आईटीआर-4 नहीं भर सकते हैं।

आईटीआर-5: यह पार्टनरशिप फर्म और एलएलपी के लिए होता है। इस फॉर्म को इंडिविजुअल, एचयूएफ और कंपनियां नहीं भर सकती हैं। इसमें किसी भी तरह से हुई आय को शामिल कर लिया जाता है।

आईटीआर-6: यह फॉर्म कंपनी और पीएलसी के लिए होता है और इसमें भी किसी भी सोर्स से हुई आय को शामिल किया जाता है।

आईटीआर-7: इस तरह का आईटीआर फॉर्म चैरिटेबल फर्म के लिए होता है। इसमें भी किसी भी सोर्स से हुई आय को शामिल किया जाता है।

गौरतलब है कि अगर आपने 31 जुलाई 2019 तक अपना आईटीआर दाखिल नहीं किया तो आपको जुर्माना भी देना पड़ सकता है। यह निर्धारित अवधि के हिसाब से अलग अलग और अधिकतम 10,000 रुपए तक हो सकता है।


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