Move to Jagran APP

समझिए क्या है ‘ट्रेड वार’ का मतलब

अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध से भारतीय मुद्रा सहित कई अन्य एशियाई मुद्राओं के मूल्य पर असर पड़ा है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 10:48 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 10:48 AM (IST)
समझिए क्या है ‘ट्रेड वार’ का मतलब
समझिए क्या है ‘ट्रेड वार’ का मतलब

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। जब एक देश दूसरे के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहां से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को ट्रेड वार कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है, जब एक देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियां अनुचित प्रतीत होती हैं या वह देश रोजगार सृजन के लिए घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने को आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाता है जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया है। ट्रंप ने इसी इरादे से चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध का शंखनाद किया है। जब दो देशों में व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है।

loksabha election banner

उदाहरण के लिए अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध से भारतीय मुद्रा सहित कई अन्य एशियाई मुद्राओं के मूल्य पर असर पड़ा है। दरअसल ट्रेड वार का असर धीरे-धीरे करेंसी वार के रूप में दिखने लगा है। अमेरिका ने जब चीन से आयात को महंगा करने के लिए टैरिफ बढ़ाए तो उसके बाद चीनी मुद्रा युआन में भी गिरावट देखने को मिली है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन ने अपने निर्यात को सस्ता बनाए रखने के लिए अपनी मुद्रा को गिरने दिया है। हालांकि इसके चलते भारतीय रुपये सहित अन्य एशियाई मुद्राओं पर भी दवाब बढ़ा है और उनके मूल्य में गिरावट आई है। ट्रेड वार में देश एक दूसरे के विरुद्ध कई रणनीति अपनाते हैं। आयात पर टैरिफ बढ़ाने, आयात-निर्यात का कोटा तय करने, कस्टम क्लीयरेंस की प्रक्रिया जटिल बनाने और उत्पादों की गुणवत्ता के नए मानक तय करने जैसे टैरिफ व नॉन टैरिफ कदम उठाए जाते हैं।

वैसे यहां ट्रेड वार और सैंक्शंस (प्रतिबंध) में अंतर समझना भी जरूरी है। आप खबरों में पढ़ते होंगे कि अमेरिका ने किसी देश पर प्रतिबंध लगाए। शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका ने क्यूबा, ईरान, म्यांमार और सीरिया जैसे देशों पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाए हैं। इसकी वजह यह है कि अमेरिका सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक शक्ति है।

दुनियाभर में पौने दो सौ से अधिक मुद्राएं हैं, लेकिन सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है। भारत के कुल आयात का 86 प्रतिशत डालर में होता है जबकि भारत कुल आयात का मात्र पांच प्रतिशत ही अमेरिका से करता है। भारत के कुल निर्यात का 86 प्रतिशत डॉलर में होता है, जबकि कुल निर्यात में से मात्र 15 फीसद ही अमेरिका को जाता है। सभी देशों के केंद्रीय बैंक भी विदेशी मुद्रा भंडार में सर्वाधिक डॉलर ही रखते हैं।

ऐसे में जब अमेरिका किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो इसका सीधा संदेश होता है कि दूसरे देश उसके साथ कारोबार न करें क्योंकि जब वे लेन-देन करेंगे तो यह डॉलर में होगा। यह लेन-देन अमेरिकी बैंकिंग तंत्र से गुजरेगा। अमेरिका उस लेन-देन को ट्रैक कर सकता है और प्रतिबंध लगे होने की स्थिति में उस भुगतान को रोक सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.