RBI के NPA को लेकर नए नियम, जानिए NPA के बारे में सब कुछ
जानिए क्या है आरबीआई के नए नियम और क्या होता है एनपीए
नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। वाणिज्यिक बैंक कारोबार करते वक्त विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं और व्यक्तियों और कंपनियों को कर्ज देते हैं। अमूमन, कुछ धनराशि एनपीए (नॉन परफॉर्मिग असेट्स) हो जाती है। सरल शब्दों में कहें तो बैंकों का कुछ कर्ज फंस जाता है, जिसका समय पर भुगतान नहीं हो रहा हो। रिजर्व बैंक के अनुसार सितंबर 2017 की समाप्ति पर देश में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल एनपीए उनके कुल कर्ज का 10.2 प्रतिशत हो गया है।
आइए, समझते हैं कि एनपीए क्या होता है और बैंक इसकी पहचान कैसे करते हैं। आरबीआइ के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसंपत्ति यानी कर्ज से ब्याज आय मिलना बंद हो जाता है तो उसे एनपीए माना जाता है। उदाहरण के लिए बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर दिन तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा। कोई लोन खाता निकट भविष्य में एनपीए बन सकता है, इसकी पहचान के लिए आरबीआइ ने नियम बनाए हैं। इसके तहत बैंकों को उनके लोन खातों को स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) के तौर पर चिन्हित करना होता है। अगर किसी लोन खाते में मूलधन या ब्याज की किश्त का भुगतान निर्धारित तिथि से 30 दिन तक नहीं होता है तो उसे एसएमए-0 कहा जाता है। भुगतान 31 से 60 दिन तक न हो तो इसे एसएमए-1 कहा जाता है। अगर मूलधन या ब्याज का भुगतान 61 से दिन तक न हो तो उसे एसएमए-टू कहा जाता है।
किसी लोन खाते को एनपीए घोषित करने के बाद बैंक को उस एनपीए खाते का तीन श्रेणियों - ‘सब स्टैंडर्ड असेट्स’, ‘डाउटफुल असेट्स’ और ‘लॉस असेट्स’ के रूप में वर्गीकृत करना पड़ता है। जब कोई लोन खाता एक साल या इससे कम अवधि तक एनपीए की श्रेणी में रहता है तो उसे ‘सब स्टैंडर्ड असेट्स’ कहा जाता है। एक साल तक ‘सब स्टैंडर्ड असेट्स’ की श्रेणी में रहता है तो उसे ‘डाउटफुल असेट्स’ कहा जाता है। बैंक यह मान लेता है कि लोन वसूल नहीं हो सकता तो उसे ‘लॉस असेट्स’ की श्रेणी में डाल देती है।
क्या हैं आरबीआई के एनपीए को लेकर नए नियम
बैंक अब किसी भी हालत में दबाव ग्रस्त कर्ज को एनपीए में डालने और वसूली के लिए इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत कार्रवाई को टाल नहीं सकेंगे। केंद्रीय बैंक ने इस संबंध में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। सरकार ने इन कदमों को डिफॉल्टरों के लिए चेतावनी करार दिया है।
रिजर्व बैंक ने फंसे कर्जो के समाधान के लिए वर्तमान में चल रहे आधा दर्जन नियम खत्म कर दिए हैं। अब किसी कर्ज डिफॉल्ट के मामले में बैंकों को 180 दिन के भीतर उसका समाधान निकालना होगा। ऐसा नहीं होने की स्थिति में उस खाते को दिवालिया प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाना होगा। केंद्रीय बैंक ने मंगलवार देर रात नए दिशानिर्देश जारी किए थे।
नए नियम के तहत 2,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा के लोन डिफॉल्ट के मामलों में बैंक अधिकारियों को 180 दिन के भीतर समाधान की योजना तैयार करनी होगी। ऐसा नहीं होने पर उसे दिवालिया प्रक्रिया में ले जाना होगा। नियम का पालन नहीं कर पाने वाले बैंकों को जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
इसके मुताबिक पांच करोड़ रुपये से अधिक के खातों में डिफॉल्ट पर रिपोर्ट जरूरी होगा। बैंकों को हर सप्ताह एनपीए के संबंध में आरबीआई को रिपोर्ट देनी होगी। साथ ही इसके रिजर्व बैंक ने मार्च से एसडीआर, एस4ए, सीडीआर, जेएलएफ फ्रेमवर्क को भी खत्म कर दिया है।