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ITR फाइलिंग को बस कुछ दिन बाकी, जान लें अपने काम से जुड़ी हर अहम बात

फाइनेंशियल इयर (वित्त वर्ष) वह होता है जिसमें आप कमाई करते हैं। यह एक अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलता है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 02:59 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 09:22 AM (IST)
ITR फाइलिंग को बस कुछ दिन बाकी, जान लें अपने काम से जुड़ी हर अहम बात
ITR फाइलिंग को बस कुछ दिन बाकी, जान लें अपने काम से जुड़ी हर अहम बात

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। क्या आपने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए अपना इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल कर दिया है? अगर नहीं तो आपके पास ऐसा करने के लिए सिर्फ 10 दिन का ही वक्त बचा है। आपको बता दें कि बीते वित्त वर्ष के लिए आईटीआर फाइल करने की आखिरी तारीख 31 अगस्त 2018 निर्धारित है।

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अगर आप किसी भी तरह की पेनाल्टी से बचना चाहते हैं तो आप इस समय से पहले भर सकते हैं। हम अपनी इस खबर में आईटीआर से जुड़ी कुछ अहम बातें बता रहे हैं जिसके बारे में जानकारी रखना आपके लिए अहम है।

फाइनेंशियल इयर और असेसमेंट इयर में अंतर समझें?

फाइनेंशियल इयर (वित्त वर्ष) वह होता है जिसमें आप कमाई करते हैं। यह एक अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलता है। असेसमेंट इयर फाइनेंशियल इयर के ठीक बाद का साल होता है। यानी अगर वित्त वर्ष 2017-18 एक अप्रैल 2017 से शुरू होकर 31 मार्च 2018 तक चलता है तो इसका असेसमेंट इयर 2018-19 होगा जो कि 1 अप्रैल 2018 से शुरू होकर 31 मार्च 2019 तक चलेगा।

इनकम टैक्स स्लैब क्या होती है?

करदाताओं (टैक्सपेयर्स) को उनकी सालाना कमाई के आधार पर अलग अलग वर्गों में बाटा गया है जिसे टैक्स स्लैब कहते हैं। बतौर करदाता आपको मालूम होना चाहिए कि आप किस टैक्स स्लैब में आते हैं और आपको अपनी कमाई पर कितना फीसद हिस्सा बतौर टैक्स देना है।

सामान्य वर्ग के लिए:

  • 2,50,000 तक की कमाई कोई कर नहीं (निल कैटेगरी)
  • 2,50,000 से 5,00,000 रुपए तक की कमाई 5 फीसद कर
  • 5,00,000 से 10,00,000 रुपए तक की कमाई 20 फीसद कर
  • 10,00,000 रुपए से ऊपर की कमाई पर 30 फीसद कर

सीनियर सिटीजन के लिए (60 से 80 वर्ष):

  • 3,00,000 रुपए तक कोई कर नहीं
  • 3,00,000 से 5,00,000 रुपए तक 5 फीसद कर
  • 5,00,000 से 10,00,000 रुपए तक 20 फीसद कर
  • 10,00,000 रुपए से ऊपर 30 फीसद कर

सुपर सीनियर सिटीजन (80 वर्ष के ऊपर):

  • 5,00,000 रुपए तक कोई टैक्स नहीं
  • 5,00,000 से 10,00,000 तक 20 फीसद कर
  • 10,00,000 से ऊपर 30 फीसद कर

कैसे चेक कर सकते हैं TDS कटौती?

सैलरी से हुई किसी भी टैक्स कटौती को, आप फॉर्म 16 की मदद से जो कि नियोक्ता की ओर से जारी किया जाता है, जान सकते हैं। हालांकि अन्य आय पर हुई टैक्स कटौती को अगर आप जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको फॉर्म 26AS देखना होगा। इसे आप ऑनलाइन माध्यम से देख सकते हैं।

अपने आईटीआर को कर सकते हैं ई-वेरिफाई: ये एक ऐसी चीज है जिसे आप चाहकर भी इग्नोर नहीं कर सकते हैं। हर साल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के बाद आपको आईटीआर वेरिफाई करने की जरूरत होती है, क्योंकि आईटीआर को वेरिफाई न करना आईटीआर फाइल न करने के जैसा है। आईटीआर के ई-वेरिफिकेशन के दो तरीके हैं मैनुअली और इलेक्ट्रॉनिक (ई-वेरिफिकेशन)। इसके अलावा, नेटबैंकिंग, आधार ओटीपी इत्यादि के माध्यम से भी इलेक्ट्रॉनिक रूप से वेरिफाई किया जा सकता है।

अगर कमाई 50 लाख से ज्यादा है तो सभी एसेट्स का खुलासा करें: ऐसे करदाता जिनकी कमाई 50 लाख रुपए से ज्यादा की होती है। उसे उन वित्तीय संपत्तियों (चल और अचल संपत्तियों सहित) के विवरण का खुलासा करना आवश्यक होता है, जिसे उन्हें उस तिथि तक अर्जित किया हुआ होता है। ऐसा करना इस तरह के करदाताओं का कर्तव्य होता है।

विदेशी परिसंपत्तियों और आय का खुलासा जरूर करें: कर चोरी रोकने के लिहाज से, करदाता के लिए यह जरूरी है कि वह अपने विदेशी खातों की जानकारी भी आयकर विभाग को दे, साथ ही यह भी बताए कि उस वित्त वर्ष के दौरान उसने उस पर कितना ब्याज हासिल किया है। आपकी विदेशी संपत्तियों के संबंध में कोई भी गलत जानकारी आपको मुश्किल में ला सकती है।

पूर्व नियोक्ता की ओर से हुई कमाई को बताना न भूलें: नौकरी छोड़ने के बाद आमतौर पर कर्मचारी अपने पूर्व नियोक्ता से हुई कमाई के बारे में अपने मौजूदा नियोक्ता को जानकारी नहीं देते हैं। आमतौर पर नए नियोक्ता भी पिछली नौकरी से अर्जित आय के बारे में ध्यान नहीं देते हैं। टैक्स की कटौती तब इस अवधारणा पर की जाती है कि बाकी बचे महीनों के लिए होने वाली कमाई सिर्फ इस साल की ही आय है। लेकिन यह उस वक्त मुश्किल खड़ी कर देता है जब टैक्सपेयर्स साल के आखिर में रिटर्न फाइल करते हैं। उस वक्त दोनों नियोक्ताओं की ओर से हुई कमाई को जोड़ा जाता है और कटौती एवं कर छूट आधी रह जाती है और कर देयता की स्थिति बन जाती है।

अगर जरूरत हो तो एडवांस टैक्स भरें: एडवांस टैक्स का मतलब होता है कि आपने जैसे ही कमाई की है वैसे ही आपने उस पर टैक्स का भुगतान कर दिया है। ऐसे करदाता जितनी कर देयता टीडीएस कटौती के बाद 10,000 या फिर उससे ज्यादा की होती है उन्हें एडवांस टैक्स का भुगतान करना होता है।

सभी तरह की कमाई का जिक्र करें: आमतौर पर आधे से ज्यादा करदाता टैक्स सेविंग एफडी और अन्य एफडी से हुई कमाई का खुलासा करना भूल जाते हैं। कुछ करदाताओं को लगता है कि ये टैक्स फ्री है, यह एक मिथ है। उन्हें नहीं पता होता है कि हालांकि ये आयकर की धारा 80सी के तहत टैक्स बचाने में मददगार होते हैं। हालांकि इनसे होने वाली ब्याज योग्य आय पर टैक्स देना होता है। इसलिए बतौर करदाता अपनी इस तरह की आय का खुलासा आईटीआर में जरूर करें।

ओरिजनल डॉक्यूमेंट की नहीं होती है जरूरत: इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के दौरान आयकर विभाग को ओरिजनल डॉक्यूमेंट दिए जाने की जरूरत नहीं होती है। वहीं आपकी ओर से ये दस्तावेज सीए को भी देना जरूरी नहीं होता है। बस जरूरत पड़ने पर आपको इन दस्तावेजों की कॉपी उपलब्ध करवानी होती हैं।

अपने आईटीआर में कर सकते हैं सुधार: इसे रिवाइज्ड आईटीआर भी कहा जाता है। रिवाइज्ड आईटीआर उस सूरत में भरा जाता है जब आपके आईटीआर में कुछ गलतियां रह गई हों। यानी अगर आपने आईटीआर के दौरान कुछ गलतियां कर दी हैं तो आप उन्हें इसके जरिए सुधार सकते हैं। रिवाइज्ड रिटर्न आयकर की धारा 139 (5) के तहत भरा जाता है।

टैक्स रिटर्न में देरी की तो क्या होगा?

अगर आपने 31 अगस्त 2018 तक अपना आईटीआर फाइल नहीं किया तो आपको दो बड़े नुकसान होंगे। पहला यह कि आपको पेनाल्टी का भुगतान करना होता और साथ ही आपकी यह पेनाल्टी किसी भी सूरत में आपको आईटीआर दाखिल करने पर वापस नहीं होगी।

  • अगर आप भूलवश या जानबूझकर 31 अगस्त 2018 तक अपना आईटीआर दाखिल नहीं करते हैं तो आपको पेनाल्टी का भुगतान करना होगा जो कि अवधि के दौरान अलग अलग हो सकता है। यह पेनाल्टी आप पर आयकर की धारा 234F के अंतर्गत लगाई जाएगी।
  • अगर आपकी आय पांच लाख तक या उससे कम है और आप 31 अगस्त तक आईटीआर दाखिल नहीं करते हैं तो आपको 1000 रुपये की पेनाल्टी देनी होगी। वहीं 5 लाख से ज्यादा आय होने की सूरत में 31 अगस्त से एक दिन की देरी पर भी आपको 5,000 रुपये की पेनाल्टी देनी होगी। हालांकि आपको इस सूरत में 31 दिसंबर तक अपना रिटर्न फाइल ही करना होगा।
  • अगर आप अपना आईटीआर 1 जनवरी से 31 मार्च 2019 तक भरते हैं तो आपको 10,000 रुपये बतौर पेनाल्टी देने होंगे।

पेनाल्टी के साथ आपको देना होगा इंटरेस्ट: समय पर आईटीआर फाइल न करने पर आपको जुर्माने के साथ ही इंटरेस्ट भी देना होगा। वहीं आपको यह बात भी मालूम होनी चाहिए कि यह पेनाल्टी किसी भी सूरत में आपको वापस नहीं की जाएगी। पेनाल्टी पर लगने वाला इंटरेस्ट (ब्याज) आयकर की धारा 234 A के अंतर्गत वसूला जाता है जो कि एक फीसद होता है। उदाहरण से समझिए।

7 तरह का होता है आईटीआर फॉर्म, जानिए आपके लिए कौन सा भरना जरूरी:

  • आईटीआर-1: इस फॉर्म को सहज फॉर्म कहा जाता है। यह फॉर्म व्यक्तिगत (इंडिविजुअल) करदाताओं के लिए होता है और इसे 50 लाख रुपए से कम की आय वाले करदाता ही भर सकते हैं। इसमें नौकरी से होने वाली आय, हाउस प्रॉपर्टी (सिर्फ एक घर) से होने वाली आय और अन्य आय (ब्याज एवं कमीशन से होने वाली आय) शामिल होती है।
  • आईटीआर-2: यह इंडिविजुअल्स और HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) के लिए होता है। इसे 50 लाख से ज्यादा की आमदनी वाला करदाता भर सकता है। इसमें बिजनेस और प्रोफेशन से होने वाली आय को शामिल नहीं किया जाता है।
  • आईटीआर-3: यह इंडिविजुअल्स और HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) दोनों के लिए होता है। इसमें सैलरी, बिजनेस, हाउस प्रॉपर्टी और अन्य स्रोतों से होने वाली आय को शामिल किया जाता है। आमतौर पर ऑडिट कराने वाले लोग इसी फॉर्म का इस्तेमाल करते हैं।
  • आईटीआर-4: इस फॉर्म को सुगम कहते हैं। इसमें प्रिजम्पटिव सोर्स ऑफ इनकम को शामिल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर समझें अगर आपके प्रोफेशन से 10 लाख की आय हुई है तो इसमें से 5 लाख को आय और 5 लाख को खर्च मान लिया जाएगा और इसी 5 लाख की आय पर आपको टैक्स देना होगा। वहीं बिजनेस करने वाले लोगों के मामले में यह आंकड़ा 8 फीसद और 92 फीसद का होता है। यानी आपकी कुल आय में से 8 फीसद हिस्से को आमदनी और 92 फीसद हिस्से को खर्च मान लिया जाता है और इसी 8 फीसद को आय माना जाएगा। अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा था कि अगर पूरा पूरा भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया जाए तो इसमें 2 फीसद की अतिरिक्त छूट मिल सकती है। यानी आपको 8 के बजाए 6 फीसद पर टैक्स देना होगा।
  • आईटीआर-5: यह पार्टनरशिप फर्म और एलएलपी के लिए होता है। इस फॉर्म को इंडिविजुअल, एचयूएफ और कंपनियां नहीं भर सकती हैं। इसमें किसी भी तरह से हुई आय को शामिल कर लिया जाता है।
  • आईटीआर-6: यह फॉर्म कंपनी और पीएलसी के लिए होता है और इसमें भी किसी भी सोर्स से हुई आय को शामिल किया जाता है।
  • आईटीआर-7: इस तरह का आईटीआर फॉर्म चैरिटेबल फर्म के लिए होता है। इसमें भी किसी भी सोर्स से हुई आय को शामिल किया जाता है।

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