ITR 2018: टैक्सपेयर्स को जरूर मालूम होनी चाहिए ये 10 बड़ी बातें
करदाताओं (टैक्सपेयर्स) को उनकी सालाना कमाई के आधार पर अलग अलग वर्गों में बाटा गया है जिसे टैक्स स्लैब कहते हैं
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। आमतौर पर हर वित्त वर्ष के खत्म होते ही नौकरीपेशा और अन्य करदाता आईटीआर फाइल करते हैं। अधिकांश करदाताओं को टैक्स से जुड़ी छोटी मोटी जानकारियां ही होती हैं। हालांकि, उन्हें आयकर (इनकम टैक्स) से जुड़ी बारीक जानकारियां भी रखनी चाहिए। आपको बता दें कि वित्त वर्ष 2017-18 के लिए आईटीआर रिटर्न दाखिल करने की डेडलाइन 31 जुलाई 2018 है। हम अपनी इस खबर में 10 ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जो आपको मालूम होनी चाहिए।
फाइनेंशियल इयर और असेसमेंट इयर में अंतर समझें?
फाइनेंशियल ईयर (वित्त वर्ष) वह होता है जिसमें आप कमाई करते हैं। यह एक अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च तक चलता है। असेसमेंट इयर फाइनेंशियल ईयर के ठीक बाद का साल होता है। यानी अगर वित्त वर्ष 2017-18 एक अप्रैल 2017 से शुरू होकर 31 मार्च 2018 तक चलता है तो इसका असेसमेंट ईयर 2018-19 होगा जो कि 1 अप्रैल 2018 से शुरू होकर 31 मार्च 2019 तक चलेगा।
इनकम टैक्स स्लैब क्या होती है?
करदाताओं (टैक्सपेयर्स) को उनकी सालाना कमाई के आधार पर अलग अलग वर्गों में बाटा गया है जिसे टैक्स स्लैब कहते हैं। बतौर करदाता आपको मालूम होना चाहिए कि आप किस टैक्स स्लैब में आते हैं और आपको अपनी कमाई पर कितना फीसद हिस्सा बतौर टैक्स देना है।
सामान्य वर्ग के लिए:
- 2,50,000 तक की कमाई कोई कर नहीं (निल कैटेगरी)
- 2,50,000 से 5,00,000 रुपये तक की कमाई 5 फीसद कर
- 5,00,000 से 10,00,000 रुपये तक की कमाई 20 फीसद कर
- 10,00,000 रुपये से ऊपर की कमाई पर 30 फीसद कर
सीनियर सिटीजन के लिए (60 से 80 वर्ष)-
- 3,00,000 रुपये तक कोई कर नहीं
- 3,00,000 से 5,00,000 रुपये तक 5 फीसद कर
- 5,00,000 से 10,00,000 रुपये तक 20 फीसद कर
- 10,00,000 रुपये से ऊपर 30 फीसद कर
सुपर सीनियर सिटीजन (80 वर्ष के ऊपर)-
- 5,00,000 रुपये तक कोई टैक्स नहीं
- 5,00,000 से 10,00,000 रुपये तक 20 फीसद कर
- 10,00,000 रुपये से ऊपर 30 फीसद कर
कैसे चेक कर सकते हैं TDS कटौती?
सैलरी से हुई किसी भी टैक्स कटौती को, आप फॉर्म 16 की मदद से जो कि नियोक्ता की ओर से जारी किया जाता है, जान सकते हैं। हालांकि अन्य आय पर हुई टैक्स कटौती को अगर आप जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको फॉर्म 26AS देखना होगा। इसे आप ऑनलाइन माध्यम से देख सकते हैं।
अपने आईटीआर को कर सकते हैं ई-वेरिफाई: ये एक ऐसी चीज है जिसे आप चाहकर भी इग्नोर नहीं कर सकते हैं। हर साल इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के बाद आपको आईटीआर वेरिफाई करने की जरूरत होती है, क्योंकि आईटीआर को वेरिफाई न करना आईटीआर फाइल न करने के जैसा है। आईटीआर के ई-वेरिफिकेशन के दो तरीके हैं मैनुअली और इलेक्ट्रॉनिक (ई-वेरिफिकेशन)। इसके अलावा, नेटबैंकिंग, आधार ओटीपी इत्यादि के माध्यम से भी इलेक्ट्रॉनिक रूप से वेरिफाई किया जा सकता है।
अगर कमाई 50 लाख से ज्यादा है तो सभी एसेट्स का खुलासा करें: ऐसे करदाता जिनकी कमाई 50 लाख रुपये से ज्यादा की होती है। उसे उन वित्तीय संपत्तियों (चल और अचल संपत्तियों सहित) के विवरण का खुलासा करना आवश्यक होता है, जिसे उन्हें उस तिथि तक अर्जित किया हुआ होता है। ऐसा करना इस तरह के करदाताओं का कर्तव्य होता है।
विदेशी परिसंपत्तियों और आय का खुलासा जरूर करें: कर चोरी रोकने के लिहाज से, करदाता के लिए यह जरूरी है कि वह अपने विदेशी खातों की जानकारी भी आयकर विभाग को दे, साथ ही यह भी बताए कि उस वित्त वर्ष के दौरान उसने उस पर कितना ब्याज हासिल किया है। आपकी विदेशी संपत्तियों के संबंध में कोई भी गलत जानकारी आपको मुश्किल में ला सकती है।
पूर्व नियोक्ता की ओर से हुई कमाई को बताना न भूलें: नौकरी छोड़ने के बाद आमतौर पर कर्मचारी अपने पूर्व नियोक्ता से हुई कमाई के बारे में अपने मौजूदा नियोक्ता को जानकारी नहीं देते हैं। आमतौर पर नए नियोक्ता भी पिछली नौकरी से अर्जित आय के बारे में ध्यान नहीं देते हैं। टैक्स की कटौती तब इस अवधारणा पर की जाती है कि बाकी बचे महीनों के लिए होने वाली कमाई सिर्फ इस साल की ही आय है। लेकिन यह उस वक्त मुश्किल खड़ी कर देता है जब टैक्सपेयर्स साल के आखिर में रिटर्न फाइल करते हैं। उस वक्त दोनों नियोक्ताओं की ओर से हुई कमाई को जोड़ा जाता है और कटौती एवं कर छूट आधी रह जाती है और कर देयता की स्थिति बन जाती है।
अगर जरूरत हो तो एडवांस टैक्स भरें: एडवांस टैक्स का मतलब होता है कि आपने जैसे ही कमाई की है वैसे ही आपने उस पर टैक्स का भुगतान कर दिया है। ऐसे करदाता जितनी कर देयता टीडीएस कटौती के बाद 10,000 या फिर उससे ज्यादा की होती है उन्हें एडवांस टैक्स का भुगतान करना होता है।
सभी तरह की कमाई का जिक्र करें: आमतौर पर आधे से ज्यादा करदाता टैक्स सेविंग एफडी और अन्य एफडी से हुई कमाई का खुलासा करना भूल जाते हैं। कुछ करदाताओं को लगता है कि ये टैक्स फ्री है, यह एक मिथ है। उन्हें नहीं पता होता है कि हालांकि ये आयकर की धारा 80सी के तहत टैक्स बचाने में मददगार होते हैं। हालांकि इनसे होने वाली ब्याज योग्य आय पर टैक्स देना होता है। इसलिए बतौर करदाता अपनी इस तरह की आय का खुलासा आईटीआर में जरूर करें।
ओरिजनल डॉक्यूमेंट की नहीं होती है जरूरत: इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के दौरान आयकर विभाग को ओरिजनल डॉक्यूमेंट दिए जाने की जरूरत नहीं होती है। वहीं आपकी ओर से ये दस्तावेज सीए को भी देना जरूरी नहीं होता है। बस जरूरत पड़ने पर आपको इन दस्तावेजों की कॉपी उपलब्ध करवानी होती हैं।