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2013 से 2015 के बीच कुल रोजगार में 7 मिलियन की आई कमी: रिपोर्ट

हाल के दिनों में नौकरी को लेकर कई सारे आंकड़े आए हैं। जिनमें ईपीएफओ का दावा है कि जुलाई में 1 मिलियन रोजगार सृजित हुए।

By NiteshEdited By: Published: Wed, 26 Sep 2018 03:15 PM (IST)Updated: Wed, 03 Oct 2018 08:25 AM (IST)
2013 से 2015 के बीच कुल रोजगार में 7 मिलियन की आई कमी: रिपोर्ट
2013 से 2015 के बीच कुल रोजगार में 7 मिलियन की आई कमी: रिपोर्ट

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। हाल के दिनों में नौकरी को लेकर कई सारे आंकड़े आए हैं। जिनमें ईपीएफओ का दावा है कि जुलाई में 1 मिलियन रोजगार सृजित हुए। वहीं सीएमआईई के आंकड़ें बताते हैं कि पिछले 11 महीनों में लोगों ने 9 मिलियन नौकरियां खोई हैं, जबकि अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने कहा कि 2013 से लगातार रोजगार की कमी बनी रही। 2013 से 2015 के बीच कुल 7 मिलियन रोजगार घट गए।

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भल्ला और दास की ओर से किए गए एक हालिया अध्ययन में दावा किया गया है कि 2017 में अर्थव्यवस्था में कुल 13 मिलियन नई नौकरियां पैदा हुईं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1970-1980 के दशक में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगभग 3 से 4 फीसद थी और रोजगार में वृद्धि दर लगभग 2 फीसद थी, जबकि हाल के दिनों में जो दस फीसद की वृद्धि है वह रोजगार में होने वाले 1 फीसद की वृद्धि से भी कम है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि और रोजगार वृद्धि के बीच घटते अनुपात का सिलसिला 1990 से शुरू हुआ। हालांकि, मजदूरी में हाल के दिनों में वृद्धि हुई है, लेकिन कम कमाई एक समस्या बनी हुई है।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सतत रोजगार केंद्र (सीएसई) की जारी रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के वेतन में नियमित रूप से वृद्धि तो हो रही है, लेकिन इसके बावजूद कामगारों के एक बड़े वर्ग का मासिक वेतन 10,000 रुपये से भी कम है। इससे पता चलता है कि भारतीयों की बड़ी आबादी को सामान्य जीवनयापन के लिए भी वेतन नहीं मिल पाता है। यहां तक कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में 90 फीसद के करीब उद्योग केन्द्रीय वेतन आयोग के न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दे रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि संगठित विनिर्माण में सभी श्रमिकों का लगभग 30 फीसद ठेके के श्रमिक हैं। जबकि असंगठित क्षेत्र में स्थिति ज्यादा खराब है। 


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