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सरकार और कंपनियों के लिए उधार लेने का जरिया है बांड

सरकार और कंपनियों के लिए बांड उधार लेने का एक तरीका है। हालांकि जो लोग बांड खरीदते हैं, उनके लिए यह निवेश का माध्यम है

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 10:30 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2018 10:30 AM (IST)
सरकार और कंपनियों के लिए उधार लेने का जरिया है बांड

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। सरकार, नगर निकाय और कंपनियां समय-समय पर बाजार से उधार लेने के लिए बांड जारी करती हैं। दुनियाभर में कई प्रकार के बांड प्रचलित हैं। ‘जागरण पाठशाला’ के इस अंक में हम बांड के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

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सरकार और कंपनियों के लिए बांड उधार लेने का एक तरीका है। हालांकि जो लोग बांड खरीदते हैं, उनके लिए यह निवेश का माध्यम है। बैंक लोन और इसमें अंतर यह है कि बांड जारी कर उधार लेने वाली संस्था उसे चुकाने का आश्वासन देती है। बांड की एक निश्चित फेस वैल्यू (पार वैल्यू) और ‘मैच्योरिटी डेट’ होती है। बांड जारी करने वाले को इसी तारीख पर निवेशक को उसके फेस वैल्यू का भुगतान करना होता है। बांड पर फिक्स्ड या वेरिएबल ब्याज दर भी होती है, जिसका भुगतान एक निश्चित अवधि पर होता है। जिस प्रकार स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों के शेयर खरीदे और बेचे जा सकते हैं। उसी प्रकार बांड भी जारी होने के बाद ओपन मार्केट में खरीदे-बेचे जा सकते हैं। बांड में निवेश करने में जोखिम कम होता है लेकिन ‘जंक बांड’ से सावधान रहना चाहिए क्योंकि जिन कंपनियों की वित्तीय सेहत खराब है, वे ऊंची ब्याज दर के साथ ऐसे बांड जारी करती हैं।

निवेशकों को बांड पर जो रिटर्न मिलता है उसे ‘बांड यील्ड’ कहते हैं। ‘बांड यील्ड’ में जो उतार-चढ़ाव आता है उसे ‘बेसिस पॉइंट’ में व्यक्त करते हैं। एक प्रतिशत में 100 बेसिस पॉइंट होते हैं। बांड पर जो ब्याज दिया जाता है, उसे कूपन कहते हैं। यह बांड की फेस वैल्यू के प्रतिशत के रूप में व्यक्त होता है। हालांकि जब एक बांड पर निवेशक को कोई ब्याज नहीं मिलता है तो उसे ‘जीरो कूपन बांड’ कहते हैं। दरअसल बिक्री के समय इस बांड को फेस वैल्यू से कम राशि में निवेशक को दिया जाता है। जब इसके भुगतान का समय आता है तो कंपनी निवेशक को बांड पर अंकित मूल्य के बराबर भुगतान कर देती है। इसका मतलब यह हुआ कि उस व्यक्ति ने बांड कम मूल्य पर खरीदा था और अब भुगतान उसे ज्यादा मिला है। यह अंतर उसके लिए ब्याज की तरह होता है।

जिस मूल्य पर बांड को भुनाया जाता है उसे रिडंप्शन प्राइस कहते हैं। जब कोई कंपनी अपने बांड को वापस खरीदती है, तो उसे ‘बाय बैक’ कहते हैं। कई बार कंपनियां बांड को शेयर में बदलने का विकल्प देती हैं, जिसे ‘कन्वर्टीबल बांड’ कहते हैं।

प्रचलित हैं कई रोचक नाम

दुनियाभर में बांड के कई रोचक नाम प्रचलित हैं। जब एक बांड की फेस वैल्यू एक हजार डॉलर से कम होती है तो उसे ‘बेबी बांड’ कहते हैं। बेबी बांड अमेरिका में प्रचलित हैं। इसी तरह एक ‘बेयरर बांड’ भी होता है। बांड जारी करने वाली कंपनी के बही खाते में जब बांड खरीदने वाले का नाम पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं होती तो उसे ‘बेयरर बांड’ कहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि बांड की अवधि पूरी होने पर जिस व्यक्ति के पास यह बांड होगा, कंपनी उसे ब्याज और मूलधन का भुगतान कर देगी।

जब कंपनी अपने बही खाते में बांड खरीदने वाले व्यक्ति का नाम पंजीकृत करती है तो उसे ‘रजिस्टर्ड बांड’ कहते हैं। एक होता है ‘बुलडॉग बांड’। जब दूसरे देश की कंपनी बाजार से उधार लेने के लिए ब्रिटेन में स्टरलिंग डिनोमिनेशन यानी पौंड में बांड जारी करती है, तो उसे ‘बुलडॉग बांड’ कहते हैं। इसी तरह ‘यूरो बांड’ होता है जो उस देश से बाहर जारी किया जाता है, जिस देश की करेंसी में यह बांड होता है।

‘यूरो बांड’ का बाजार लंदन में केंद्रित है। इसी प्रकार जब कोई बैंक या वित्तीय संस्थान भारी भरकम राशि का बचत पत्र जारी करता है तो उसे ‘जम्बो बांड’ कहते हैं। यह आम तौर पर एक साल या इससे कम अवधि के लिए जारी किया जाता है। वहीं जापानी बाजार में जारी किए गए विदेशी बांड को ‘सामुराई बांड’ कहते हैं। इसी तरह अमेरिका के सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन में पंजीकृत एक गैर-अमेरिकी कंपनी जब अमेरिका के घरेलू बाजार में बांड जारी करती है, तो उसे ‘यांकी बांड’ कहते हैं।


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