PNB घोटाले का आकार 1300 Cr. रुपए और बढ़ा, समझिए कैसे SWIFT से हुई पूरी हेर-फेर
जब LoU जारी किया जाता है तब SWIFT के जरिए ही विदेशी बैंकों को संदेश दिया जाता है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक में जिस बड़े घोटाले को अंजाम दिया उसके पीछे की बड़ी वजह भारत के सीबीएस सिस्टम का स्विफ्ट सिस्टम के साथ इंटरलिंक न होना रहा। 11,400 करोड़ रुपए के घोटाले में 1300 करोड़ रुपया एक और घोटाला जुड़ गया है। हम अपनी इस खबर में उसी स्विफ्ट सिस्टम के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जो इस बड़े घोटाले का जरिया बना।
क्या है स्विफ्ट (SWIFT): जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नीरव मोदी ने पीएनबी से पैसों का लेनदेन एलओयू (LoU) के माध्यम से किया। जब यह एलओयू (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) जारी किया जाता है तो सोसायटी फॉर वर्ल्डवाईड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) सिस्टम के माध्यम से ही क्रेडिट लेन-देन का संदेश विदेशी बैंकों को दिया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण जानकारी होती है जिसमें पैसों को लेकर बैंक की सहमति और गारंटी होती है। स्विफ्ट जारी करने के लिए, किसी आधिकारी को सिस्टम लॉग इन कर उसमें खाता संख्या और SWIFT कोड जैसी गोपनीय जानकारी दर्ज करानी और भरना होती है। इसमें आमतौर पर सुरक्षा के तीन स्तर होते हैं- एक मेकर, एक चेकर और एक वेरिफायर, स्विफ्ट जारी करने से पहले इन तीनों को ही कोर बैंकिंग सिस्टम में परखा जाता है।
कैसे होता है SWIFT का इस्तेमाल: स्विफ्ट कोड बैंक पहचानकर्ता कोड्स (बीआईसी) का एक मानक प्रारूप है और यह एक विशिष्ट बैंक का एक यूनीक आईडेंटिफिकेशन कोड होता है। इन कोड्स का इस्तेमाल तब किया जाता है जब बैंकों के बीच पैसों का ट्रांसफर किया जाता है, विशेषतौर पर जब विदेशी बैंकों में पैसा ट्रांसफर किया जाता है। बैंकों के बीच अन्य संदेशों के लिए भी इन कोड्स का इस्तेमाल किया जाता है।
कैसा होता है SWIFT कोड: स्विफ्ट कोड दरअसल 8 से 11 करेक्टर का एक कोड होता है। जब 8 डिजिट कोड दे दिए जाते हैं तो इसे प्राइमरी ऑफिस में भेज दिया जाता है। कोड कुछ इस तरह से होता है:
AAAA BB CC DDD
पहले 4 करेक्टर: पहले चार करेक्टर बैंक कोड होते हैं (इसमें सिर्फ लेटर शामिल होते हैं)।
अगले दो करेक्टर: इसमें ISO 3166-1 alpha-2 कंट्री कोड (सिर्फ लेटर्स)
अगले दो करेक्टर: इसमें लोकेशन कोड होता है (लेटर एंड डिजिट)
आखिरी तीन करेक्टर: ब्रांच कोड, ऑप्शनल (प्राइमरी के लिए “xxx”) (लेटर और डिजिट)
गौरतलब है कि नीरव मोदी बैंक से पैसा ले रहे हैं इसकी जानकारी स्विफ्ट सिस्टम को तो थी, लेकिन भारत के सीबीएस सिस्टम में इसकी कोई आधिकारिक जानकारी दर्ज नहीं थी। शायद यही वजह है कि साल 2011 से शुरू हुआ यह घोटाला साल 2018 के जनवरी महीने तक छुपा रहा।