ELSS में अभी से शुरू कर दें निवेश, टैक्स सेविंग के साथ मिलेगा बेहतर रिटर्न
सबसे खास बात यह है कि ELSS टैक्स सेविंग का एकमात्र ऐसा ऑप्शन है जिसकी लॉक-इन अवधि मात्र तीन साल है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। नए वित्त वर्ष की शुरुआत हो चुकी है। अगर आप बचत के साथ-साथ इनकम टैक्स बचाना चाहते हैं तो अप्रैल से ही आपको अपनी प्लानिंग पर अमल करना चाहिए। इससे न सिर्फ आप पर आर्थिक बोझ कम पड़ेगा, बल्कि आप बेहतर रिटर्न भी अर्जित कर पाएंगे। टैक्स सेविंग इन्वेस्टेंमेंट के तौर पर आज हम चर्चा करेंगे म्युचुअल फंडों की इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS की। साथ ही यह भी जानेंगे कि ऐसे कौन से ELSS हैं जिन्होंने 3 साल की अवधि में बेहतर रिटर्न दिया है।
ईएलएसएस की खासियत: म्युचुअल फंडों के ELSS शेयरों में निवेश करते हैं। सबसे खास बात यह है कि ELSS टैक्स सेविंग का एकमात्र ऐसा ऑप्शन है जिसकी लॉक-इन अवधि मात्र तीन साल है। मतलब 3 साल बाद आप अपने पैसे निकाल सकते हैं। आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत इसमें 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर आपको डिडक्शन का लाभ मिलता है।
अप्रैल से ही क्यों करना चाहिए इनमें निवेश?
नए वित्त वर्ष की शुरुआत के साथ ही किसी भी टैक्स पेयर को अपनी टैक्स प्लानिंग शुरू कर देनी चाहिए। इससे बाद में न सिर्फ जल्दबाजी में गलत निर्णय लेने से बचा जा सकता है बल्कि अपेक्षाकृत ज्यादा रिटर्न भी अर्जित किया जा सकता है।
इन ELSS ने 3 साल में दिया है बेहतरीन रिटर्न?
अगर आप टैक्स सेविंग के किसी दूसरे ऑप्शंस के रिटर्न से अगर ELSS के रिटर्न की तुलना करते हैं तो पाएंगे कि ELSS ने निवेशकों को बेहतर रिटर्न दिया है। तीन साल की अवधि में ELSS फंडों ने 22 फीसद तक का रिटर्न दिया है। ये हैं टॉप 10 ELSS जिन्होंने 3 साल में सबसे अच्छा रिटर्न दिया है:
मिराए एसेट टैक्स सेवर फंड (रेगुलर प्लान) ने तीन वर्षों में 22.10 फीसद, मोतीलाल ओसवाल लॉन्ग टर्म इक्विटी फंड (रेगुलर प्लान) ने 17.43 फीसद का रिटर्न, टाउरस टैक्स शील्ड फंड (रेगुलर प्लान) ने 17.33 फीसद का रिटर्न, प्रिंसिपल टैक्स सेविंग फंड (रेगुलर प्लान) 16.71 फीसद का रिटर्न और जेएम टैक्स गेन फंड ने 16.67 फीसद का रिटर्न दिया है।
SIP के जरिए करें निवेश: म्यु्चुअल फंडों में सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी SIP के जरिए निवेश करना फायदे का सौदा है। SIP के जरिए आप एक नियमित अंतराल पर निवेश करते हैं। थोड़ी-थोड़ी रकम का SIP के माध्यम से निवेश करने पर आपके निवेश पर बाजार के उतार-चढ़ाव का असर लंबी अवधि में कम हो जाता है क्योंकि बाजार में तेजी के समय आपको कम यूनिट अलॉट किए जाते हैं और गिरावट के दौरान अधिक यूनिट मिल जाते हैं। इसे रूपी कॉस्ट एवरेजिंग कहते हैं।