एसआइपी की मदद से उठा सकते हैं बैलेंस्ड फंड का पूरा फायदा
इक्विटी और डेट में निश्चित अनुपात में निवेश वाले बैलेंस्ड फंड से निसंदेह निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिलता है। पूरी तरह इक्विटी में होने वाले निवेश की तुलना में रिस्क भी कम रहता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। म्यूचुअल फंड निवेशकों का बड़ा तबका बैलेंस्ड फंड की ओर आकर्षित हो रहा है। बहुत से निवेशक इनका इस्तेमाल नियमित आय के स्रोत के रूप में भी कर रहे हैं। इक्विटी और डेट में निश्चित अनुपात में निवेश वाले इन बैलेंस्ड फंडों से निसंदेह निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिलता है। पूरी तरह इक्विटी में होने वाले निवेश की तुलना में इनमें रिस्क भी कम रहता है। हालांकि इनमें भी बड़ा हिस्सा इक्विटी में ही लगता है, इसलिए सतर्कता जरूरी है। पूरा पैसा एक ही बार में निवेश करने की बजाय एसआइपी या एसटीपी के माध्यम से इनमें निवेश ज्यादा समझदारी वाला कदम हो सकता है।
म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए बैलेंस्ड फंड में निवेश बेहतरीन जरिया है। दूसरे इक्विटी फंड में निवेश की तुलना में इसमें कम रिस्क लेते हुए इक्विटी फंड जैसा ही रिटर्न पाने का मौका रहता है। समझदार निवेशकों ने तेजी से इन बैलेंस्ड यानी हाइब्रिड फंडों की ओर रुख किया है। इक्विटी फंडों की तुलना में हाइब्रिड फंडों में निवेश की हिस्सेदारी एक साल में 24 फीसद से बढ़कर 34 फीसद हो गई है। पिछले कुछ महीनों में हाइब्रिड फंडों का इस्तेमाल नियमित लाभांश स्रोत के रूप में होने लगा है। निवेशक इन्हें नियमित आय पाने का विकल्प बना रहे हैं।
इस बदलाव की वाहक मुख्य रूप से फंड कंपनियां और उनके डिस्ट्रीब्यूटर हैं। बिक्री को लेकर दबाव और इस दिशा में उनके प्रयासों से लोगों का रुझान इस ओर बढ़ा है। बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट पर लगातार कम हो रही ब्याज दरों के कारण निवेशकों को यह रास्ता लुभा रहा है। ऐसे लोग जो कुछ समय पहले तक ऐसे किसी फंड में निवेश से बचकर रहते थे, जिसका ज्यादा हिस्सा इक्विटी में लगाया जाता हो, वे भी अब फिक्स्ड डिपॉजिट से होने वाली आय के घटते जाने के कारण उस सोच से बाहर आ रहे हैं। हालांकि, आज भी पढ़े-लिखे निवेशकों का बड़ा तबका इस तरह के निवेश पर सवाल उठाता है। आखिरकार अच्छा-खासा पैसा एक ऐसे फंड में डालना, जिसका बड़ा हिस्सा इक्विटी में लगता हो और फिर उसे नियमित आय के स्रोत के रूप में प्रयोग करना मानकों पर खरा नहीं उतरता है। तब फिर निवेशकों को करना क्या चाहिए?
क्या बैलेंस्ड फंड से नियमित आय लेने का रास्ता अच्छा है? इसे समझने के लिए पहले एक बार बैलेंस्ड फंड की परिभाषा को दोहरा लेते हैं। इन्हें ऐसा नाम क्यों दिया गया है। इन फंडों में इक्विटी और डेट यानी ऋण का एक निश्चित अनुपात रहता है। इस अनुपात को बनाए रखने के लिए फंड मैनेजर लाभ वाली होल्डिंग्स को बेचते हैं और घाटे वाली होल्डिंग्स में निवेश करते हैं। जब इक्विटी फंड में खराब समय चल रहा होता है, तब इन फंडों का प्रदर्शन पूरी तरह इक्विटी पर निर्भर फंड की तुलना में बेहतर रहता है। कुल मिलाकर ये फंड इक्विटी फंडों का ही रूढ़िवादी स्वरूप हैं, जो एक ऐसे रूढ़िवादी निवेशक के लिए सही हैं, जो नियमित आय की तलाश में हों। यही सैद्धांतिक विश्लेषण है। बैलेंस्ड फंड के इस्तेमाल के नफा-नुकसान दोनों हैं। डिपॉजिट के मामले में ब्याज का भुगतान होता रहता है और मूलधन समान बना रहता है। बैलेंस्ड फंड में मिलने वाला लाभांश लाभ से थोड़ा कम होता है। इसका परिणाम निवेशक के लिए अच्छा रहता है। उदाहरण के तौर पर 10 लाख रुपये के एक निवेश पर चर्चा करते हैं। मान लीजिए तीन साल पहले इसे एक बैलेंस्ड फंड में लगाया गया था। इस अवधि में निवेशक को 2.5 लाख रुपये का लाभांश मिला होगा और बची हुई राशि भी बढ़कर 12.04 लाख रुपये हो गई होगी। डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा आय और साथ ही शेष राशि का बढ़ा हुआ स्तर, निसंदेह शानदार है। इससे भी बड़ी बात कि लाभांश से मिली रकम पूरी तरह से कर मुक्त होती है। बची राशि भी टैक्स फ्री होती है। टैक्स का यह फायदा इक्विटी फंड में भी होता है। डिपॉजिट की तुलना में यह भी एक बड़ा लाभ है।
नुकसान क्या हो सकता है? सबसे प्रमुख या सच कहें तो इकलौता नुकसान यही है कि आखिरकार बैलेंस्ड फंड एक ऐसा फंड है, जिसमें निवेश का बड़ा हिस्सा इक्विटी में लगता है। अगर इक्विटी बाजार में ज्यादा बड़ी गिरावट आती है तो निवेश का बड़ा हिस्सा नुकसान में जाएगा। अगर निवेश कुछ साल पहले किया गया है तो अब तक मिले लाभांश और बढ़ी हुई शेष राशि से निवेशक संतोष कर सकता है। इस स्थिति में गिरावट के बाद की बकाया राशि निवेश की गई मूल राशि से नीचे संभवत: नहीं जाएगी।
हालांकि बाजार में ऐसी बड़ी गिरावट निवेश करने के तुरंत बाद भी आ सकती है। इससे बचने का एकमात्र तरीका है कि पूरी राशि का निवेश एक ही बार में नहीं करना चाहिए। सभी इक्विटी वाले फंडों की तरह ही बैलेंस्ड फंड में भी निवेश एसआइपी या एसटीपी के जरिये कम से कम एक साल की अवधि में करना चाहिए। हर तरह से उस रास्ते पर नहीं चलें, जैसा बताकर इन फंडों को बेचा जाता है। इस तरह के फंड में बड़ी राशि का निवेश एक ही बार में कतई नहीं किया जाना चाहिए। किसी खास समय में ऐसा करने का अच्छा नतीजा मिल सकता है, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि निवेश के तुरंत बाद ही बड़ा नुकसान हो जाए। जब तक निवेशक एसआइपी या एसटीपी के जरिये ऐसे हालात से बचने में सफल रहे, नियमित आय के रूप में बैलेंस्ड फंड का इस्तेमाल अच्छा तरीका हो सकता है।
यह लेख वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार ने लिखा है।