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पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से निजात दिलाने को सरकार देगी लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन

सरकार के भीतर विस्तृत चर्चा के बाद दो-तीन दिनों में जनता को कीमत बढ़ोतरी से राहत देने की घोषणा हो सकती है

By Surbhi JainEdited By: Published: Thu, 24 May 2018 11:12 AM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 07:25 PM (IST)
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से निजात दिलाने को सरकार देगी लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। पिछले दस दिनों से देश के भीतर पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी से जनता को सीधे तौर पर राहत देने का आश्वासन सरकार की तरफ से तो नहीं मिला है लेकिन उसका कहना है कि इसके लिए एक दीर्घकालिक नीति बनाई जा रही है। माना जा रहा है कि बुधवार को कैबिनेट की बैठक में भी पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों के मुद्दे पर चर्चा हुई है। पिछले दस दिनों में नई दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत में 2.54 रुपये प्रति लीटर और डीजल 2.41 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है।

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विधि व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं को बताया, ‘पेट्रो मूल्य वृद्धि को लेकर सरकार चर्चा कर रही है और वह चिंतित भी है। सरकार नहीं चाहती कि इस मुद्दे पर कोई अल्पकालिक समाधान निकाला जाए। हम इस पर निपटने के लिए दीर्घकालिक के फामरूले पर विचार कर रहे हैं। यह प्रक्रिया पूरी होते ही हम विस्तृत जानकारी देंगे।’ उनसे जब यह पूछा गया कि सरकार क्या उत्पाद शुल्क में कोई कटौती करेगी तो उनका जवाब था कि उत्पाद शुल्क संग्रह से जो राशि प्राप्त होती है, उसका इस्तेमाल सड़क, पुल, रेलवे, संचार जैसे क्षेत्रों में होता है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मंगलवार को कहा था कि सरकार के भीतर विस्तृत चर्चा के बाद दो-तीन दिनों में जनता को कीमत बढ़ोतरी से राहत देने की घोषणा हो सकती है। माना जा रहा है कि यह घोषणा सरकार के केंद्र में चार वर्ष पूरे होने पर 26 मई को या उसके एक दिन पहले हो सकती है। सरकार इस बारे में पूरी चुप्पी साधे हुए है कि दीर्घकालिक नीति के तहत क्या उपाय किए जाएंगे। यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि जब पेट्रोल व डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण खत्म करके उसे बाजार के हवाले किया गया था, तब भी यही कहा गया था कि यह दीर्घकालिक उपाय है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार के पास आम जनता को राहत देने के लिए फिलहाल बहुत विकल्प नहीं हैं। उपलब्ध विकल्पों में से एक है कि पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमत तय करने के मौजूदा फॉमरूले को बदला जाए। मसलन, अभी इस फॉमरूले में आयातित तेल की कीमतों को 80 फीसद और देश से निर्यात किए गए पेट्रो उत्पादों की कीमतों का भार 20 फीसद होता है। चूंकि देश की तेल कंपनियां पेट्रोल, डीजल का बड़े पैमाने पर निर्यात भी करती हैं इसलिए निर्यात कीमत को भी इसमें शामिल किया जाता है। दूसरा उपाय यह हो सकता है कि केंद्र सरकार उत्पाद शुल्कों में कुछ कटौती करे और राज्यों को भी वैट घटाने के लिए तैयार करे। केंद्र सरकार भाजपा शासित राज्यों की मदद से ऐसा कर सकती है। लेकिन केंद्र के खजाने की स्थिति को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि उत्पाद शुल्क में कोई बड़ी कटौती की जा सकती है। अगर सरकार पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में दो रुपये प्रति लीटर की कटौती करती है तो उससे उसके राजस्व में 26 हजार करोड़ रुपये की कमी आएगी।

सरकार के पास एक विकल्प यह भी है कि वह पहले की तरह कंपनियों को हर 15 दिनों पर मूल्य तय करने का फॉमरूला लागू कर दे। यह भी माना जा रहा है कि तेल कंपनियों को भी कुछ मूल्य वृद्धि टालकर बोझ उठाने को कहा जा सकता है। ऐसा वर्ष 2004 के आम चुनाव से पहले सरकार ने किया था। वर्ष 2002 में पहली बार तेल कंपनियों को हर 15 दिनों पर पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमत तय करने की आजादी दी गई थी। लेकिन वर्ष 2004 चुनाव से चार-पांच महीने पहले क्रूड काफी महंगा हो गया था लेकिन सरकार के आदेश के बाद तेल कंपनियों ने कोई मूल्य वृद्धि नहीं की। बाद में वर्ष 2010 में पेट्रोल की कीमतों को यूपीए ने और एनडीए ने नवंबर, 2014 में डीजल की कीमतों को तय करने की आजादी तेल कंपनियों को दे दी थी।


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