GST मंत्री समूह चीनी सेस पर लेगा कानूनी राय
जीएसटी की व्यवस्था के तहत सिर्फ लक्जरी और सिन गुड्स पर ही जीएसटी की 28 प्रतिशत दर के अलावा एक सेस लगाने का प्रावधान है
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। गन्ना उत्पादक किसानों और चीनी उद्योग को संकट से उबारने के इरादे से चीनी पर सेस लगाने की दिशा में सरकार की कोशिशों को झटका लगा है। इस मुद्दे पर विचार कर रहे जीएसटी काउंसिल के मंत्री समूह में सेस लगाने के प्रस्ताव पर सहमति नहीं बनी है। यही वजह है कि मंत्री समूह ने अब इस मामले में कानून मंत्रलय की राय लेने का फैसला किया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि जीएसटी के तहत चीनी पर सेस लगाया जा सकता है या नहीं। अगर सेस लगाया जाता है तो उससे जुटायी जाने वाली धनराशि का किस तरह इस्तेमाल किया जाए, इस बारे में मंत्री समूह ने खाद्य मंत्रलय से रिपोर्ट मांगने का फैसला भी किया।
असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वसरमा की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह की सोमवार को दिल्ली में पहली बैठक हुई, जिसमें के केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजैक ने चीनी पर सेस लगाने के प्रस्ताव का विरोध किया। बैठक के बाद सरमा ने कहा कि जीओएम की पहली बैठक में अहम सवाल यह है कि क्या काउंसिल को सेस लगाने का अधिकार है या नहीं। यही वजह है कि काउंसिल ने कानून मंत्रलय से सलाह लेने का फैसला किया है। कानून मंत्रलय और खाद्य मंत्रलय के साथ जीओएम तीन जून को मुंबई में बैठक करेगा।
जीएसटी की व्यवस्था के तहत सिर्फ लक्जरी और सिन गुड्स पर ही जीएसटी की 28 प्रतिशत दर के अलावा एक सेस लगाने का प्रावधान है। इसका इस्तेमाल केंद्र राज्यों को होने वाली राजस्व क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए करता है। यही वजह है कि अब यह सवाल उठ रहा है कि काउंसिल चीनी पर सेस लगा सकती है या नहीं। जीएसटी काउंसिल की चार मई को वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई बैठक में सरकार ने चीनी पर अधिकतम तीन रुपये प्रति किलो सेस लगाने का प्रस्ताव रखा था। सरकार का अनुमान है कि इससे लगभग 6700 करोड़ जुटाए जा सकते हैं जिनका इस्तेमाल चीनी उद्योग को संकट से उबारने के लिए किया जा सकता है। काउंसिल ने एथनॉल पर जीएसटी की दर 18 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत करने पर भी विचार किया था लेकिन इस पर भी कोई फैसला नहीं हो पाया था। इसीलिए सरमा के नेतृत्व में यह मंत्री समूह बनाया गया।