MSME इकाइयों की श्रेणी टर्नओवर के आधार पर होगी तय
नई परिभाषा के मुताबिक पांच करोड़ रुपये तक की सालाना टर्नओवर वाली इकाई अब माइक्रो श्रेणी में आएगी। जबकि पांच करोड़ रुपये से 75 करोड़ रुपये तक के सालाना टर्नओवर वाली इकाई स्माल एंटरप्राइज कहलाएगी
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। माइक्रो, स्मॉल और मीडियम श्रेणी की कंपनियों का निर्धारण अब सालाना टर्नओवर के हिसाब से तय होगा। अब तक यह श्रेणी इकाई के प्लांट और मशीनरी में होने वाले निवेश के लिहाज से तय होती थी। सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र की इकाइयों की श्रेणी तय करने के नियमों में संशोधन के लिए लोकसभा में विधेयक पेश किया है।
माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज डवलपमेंट (एमेंडमेंट) बिल 2018 के जरिये सरकार इन इकाइयों की परिभाषा में बदलाव का प्रस्ताव लाई है। सरकार का मानना है कि प्लांट और मशीनरी में निवेश के लिहाज से इकाइयों के निर्धारण के नियम में अधिकारियों को खुद वहां जाकर देखना और उसका सत्यापन करना पड़ता था। इससे मूल्यांकन के काम की लागत भी बढ़ जाती थी। अन्य विकल्पों पर विचार के बाद सरकार ने तय किया है कि अब माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इकाइयों की श्रेणी का निर्धारण उनकी सालाना टर्नओवर के आधार पर किया जाएगा।
सरकार ने लोकसभा में पेश अपने विधेयक के उद्देश्यों में कहा है कि ऐसा होने से ईज ऑफ डूईंग को प्रोत्साहित करने में भी मदद मिलेगी। विधेयक एमएसएमई मंत्री गिरिराज सिंह ने सदन में चर्चा और पारित कराने के लिए प्रस्तुत किया। नई परिभाषा के मुताबिक पांच करोड़ रुपये तक की सालाना टर्नओवर वाली इकाई अब माइक्रो श्रेणी में आएगी। जबकि पांच करोड़ रुपये से 75 करोड़ रुपये तक के सालाना टर्नओवर वाली इकाई स्माल एंटरप्राइज कहलाएगी। 75 करोड़ रुपये से अधिक लेकिन 250 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली इकाई को मीडियम श्रेणी की इकाई माना जाएगा।
वर्तमान में माइक्रो श्रेणी में वह इकाई आती हैं जिनका प्लांट और मशीनरी में 25 लाख रुपये तक का निवेश हुआ हो। जबकि स्मॉल कैटेगरी में वे इकाई आती हैं जिनका प्लांट व मशीनरी में 25 लाख से अधिक लेकिन पांच करोड़ रुपये से कम निवेश हो। मीडियम श्रेणी की इकाई के लिए पांच करोड़ रुपये से दस करोड़ रुपये तक के निवेश की सीमा तय है। बिल के संसद से पारित होने के बाद इकाइयों की कैटेगरी तय करने का नियम बदल जाएगा।