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इक्विटी में ईपीएफओ का निवेश बहुत कम बहुत देर से

जल्द ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) इक्विटी में निवेश शुरू कर देगा। ईपीएफओ के इतिहास में यह बड़ा बदलाव होगा। यदि सही से क्रियान्वयन हुआ तो रिटायरमेंट सेविंग्स पर बेहतर रिटर्न प्राप्त किया जा सकेगा। काश मैं इस वाक्य की शुरुआत ‘यदि’ से न करता, लेकिन इस पर फिर

By Edited By: Published: Mon, 13 Jul 2015 01:02 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2015 05:51 AM (IST)
इक्विटी में ईपीएफओ का निवेश बहुत कम बहुत देर से

जल्द ही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) इक्विटी में निवेश शुरू कर देगा। ईपीएफओ के इतिहास में यह बड़ा बदलाव होगा। यदि सही से क्रियान्वयन हुआ तो रिटायरमेंट सेविंग्स पर बेहतर रिटर्न प्राप्त किया जा सकेगा। काश मैं इस वाक्य की शुरुआत ‘यदि’ से न करता, लेकिन इस पर फिर कभी।

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श्रम मंत्रालय के अनुसार जुलाई से इक्विटी निवेश शुरू हो जाएगा। वित्त वर्ष के अंत तक धीरे-धीरे निवेश को बढ़ाते हुए पांच फीसद तक ले जाया जाएगा। वित्त मंत्रालय के नए नियमों के अनुसार, इक्विटी में ईपीएफओ का न्यूनतम निवेश पांच फीसद तक होना चाहिए। यह अधिकतम 15 फीसद तक जा सकता है। ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो दावा कर रहे हैं कि सरकार ईपीएफओ को करोड़ों कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई से जुआ खेलने पर मजबूर कर रही है।

ट्रेड यूनियनें और वामपंथी राजनीतिज्ञ इसकी खुलकर मुखालफत कर रहे हैं। इस वर्ग से इसके अलावा किसी और चीज की अपेक्षा की भी नहीं जा सकती है। लेकिन, मैं अचंभित हूं कि किस तरह की व्यापक अंतर्निहित धारणा है। जिस डर को बेचा जा रहा है, उससे लगता है कि डेरिवेटिव में डे ट्रेडिंग का लाभ उठाने के लिए ईपीएफओ अपने पूरे कोष को तुरंत लगाने जा रहा है।

अक्सर संतुलित रहने वाले एक पब्लिकेशन में इस मुद्दे पर आर्टिकल पढ़ा। यह बेहद भ्रामक था। ईपीएफओ का इक्विटी में जो छोटा निवेश होगा वह एक्सचेंज ट्रेडेट फंड्स (ईटीएफ) तक सीमित है। ईटीएफ शेयर में डेरिवेटिव के ऊंचे जोखिम वाले गुण नहीं होते हैं। ईपीएफओ जो रिटर्न देता है वह वास्तविक रिटर्न से बहुत कम होता है। फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट से बंधे होने के कारण मिलने वाला रिटर्न महंगाई के साथ मुश्किल से ही कदमताल कर पाता है। यदि बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखें तो फिक्स्ड इनकम रिटर्न रिटायरमेंट सेविंग्स का सबसे बुरा रूप है।

ये सिर्फ सुनिश्चित करते हैं कि बचतकर्ता को बिना किसी लाभ के उतना ही धन वापस मिल जाएगा जो उसने निवेश किया है। आलोचक जिस जोखिम के बारे में बात करते हैं वह महज उतार-चढ़ाव के आकस्मिक प्रभाव पर आधारित है। इक्विटी अस्थिर हो सकते हैं, लेकिन कुछ साल में किसी भी निवेश की तुलना में ये अधिक रिटर्न देने वाले सिद्ध होते हैं। बीते दस साल को ही लेते हैं। ईपीएफ में एक लाख रुपये बढ़कर 2.48 लाख रुपये हुआ। यदि यही एक लाख रुपये निफ्टी ईटीएफ में लगा होता तो यह बढ़कर 3.9 लाख रुपये हो जाता। लंबे समय तक आर्थिक विकास की गति ठहरी रही। फिलहाल इक्विटी में वास्तविक फंडों का निवेश व्यर्थ है।

नियम कहते हैं कि ईपीएफओ को इक्विटी ईटीएफ में पांच से 15 फीसद के बीच वृद्धिशील पूंजी का निवेश करना है। फिक्स्ड इनकम से कोई एसेट नहीं निकाले जाएंगे और फिर उन्हें इक्विटी में लगाया जाएगा। इस दर से पांच फीसद या इससे अधिक इक्विटी निवेश तक पहुंचने में दशक या इससे भी अधिक समय (निकासी की दर तथा इक्विटी और फिक्स्ड इनकम रिटर्न के बीच अंतर पर निर्भर करते हुए) लग जाएगा। वैसे भी पांच फीसद का निवेश बहुत कम है।

जब शेयर बाजार गिरते हैं तो नुकसान पर खूब हल्ला मचता है। लेकिन जब वे बढ़ते हैं तो थोड़ा सा निवेश जो बढ़ता है वह बचतकर्ता के लिए कुछ अर्थपूर्ण होता है। इक्विटी में निवेश तब तक कारगर नहीं साबित होगा जब तक कि यह कम से कम 30 से 50 फीसद की रेंज में न हो। ईपीएफओ के सदंर्भ में इस तरह की बातें शायद बड़ी लगें लेकिन नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) के कुछ प्लानों में इस स्तर का इक्विटी निवेश पहले से उपलब्ध है।
धीरेंद्र कुमार

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