रियल एस्टेट में निवेश का सही समय
आवासीय क्षेत्र में मांग बढऩे के कारक भी अब काम करने लगे हैं। इनमें एक कारक है तेजी से बढ़ता शहरीकरण।
पिछले तीन सालों में भारत के रियल एस्टेट क्षेत्र, खासकर आवासीय संपत्तियों के बाजार ने सबसे बुरा दौर देखा है। कम बिक्री के कारण प्रॉपर्टी के दाम भी गिर गए हैं और अनबिके फ्लैटों की संख्या बेतहाशा बढ़ गई है।
परिणामस्वरूप नई आवासीय इकाइयों की लांचिंग पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है। आंकड़ों के मुताबिक, 2016 की पहली तिमाही के दौरान नई लांचिंग में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले छह फीसद की कमी आई है। कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2015-16 में 2014-15 के मुकाबले 16 फीसद कम आवासीय स्कीमें लांच हुई हैं।
ऐसा ही हाल फ्लैटों की बिक्री का है, जिसमें 2014-15 के मुकाबले 2015-16 में 2.2 फीसद की गिरावट दिखाई दी है।
इन आंकड़ों के आलोक में मकान खरीदने के इच्छुक एक औसत खरीदार के लिए निर्णय लेना कठिन प्रतीत हो सकता है। लेकिन, तीन सालों के दौरान ज्यादातर शहरों में कीमतों में मामूली वृद्धि के कारण मकान की खरीद पहले के मुकाबले किफायती हो गई है। इसे अफोर्डेबिलिटी रेशियो के जरिये आसानी से समझा जा सकता है।
अफोर्डेबिलिटी रेशियो वह अंक है जो प्रॉपर्टी के औसत मूल्य को औसत गृह क्रेता की वार्षिक आय से विभाजित करने पर प्राप्त होता है। अध्ययन के अनुसार, यद्यपि आवासीय प्रॉपर्टियों का औसत मूल्य 50 लाख रुपये की सार्वकालिक ऊंचाई पर पहुंच गया है। परंतु इसी के साथ एक औसत गृह क्रेता की वार्षिक आय भी बढ़कर रिकॉर्ड 12 लाख रुपये पर पहुंच गई है। इससे अफोर्डेबिलिटी रेशियो जो 2004 में 4.3 और 2015 में 4.4 था, 2016 में घटकर 4.1 पर आ गया है।
इसके अलावा आवासीय क्षेत्र में मांग बढऩे के कारक भी अब काम करने लगे हैं। इनमें एक कारक है तेजी से बढ़ता शहरीकरण। देश की 1.21 अरब की आबादी में से 37.7 करोड़ लोग अब शहरों में रहते हैं। यही नहीं, इसमें हर साल में एक करोड़ का इजाफा हो रहा है। वर्ष 2001-11 के दौरान देश की शहरी आबादी में 2.8 फीसद की वार्षिक चक्रवृद्धि के हिसाब से इजाफा हुआ। इसके अलावा, 2015-31 के दौरान शहरीकरण
की रफ्तार में सालाना 2.1 फीसद की चक्रवृद्धि होने का अनुमान है। यह वृद्धि दर चीन के मुकाबले दोगुनी होगी। यहां रोचक तथ्य यह भी है कि 2001-11 के दौरान भारतीय परिवारों की संख्या बढ़कर छह करोड़ हो गई। जबकि इसके मुकाबले मकानों की गिनती 8.1 करोड़ बढ़ गई।
इसके बावजूद मार्च, 2015 तक देश में एक करोड़ 83 लाख मकानों की कमी थी। इस कमी के पीछे जिस एक कारण को सबसे अहम माना जा रहा है वह है डेवलपर्स द्वारा लग्जरी व प्रीमियम प्रॉपर्टी सेगमेंट में निवेश करना, जो केवल संपन्न और उच्च मध्यम वर्ग की आवश्यकताओं का पोषण करती है। चूंकि भारत में करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। लिहाजा, मकानों की मांग व आपूर्ति के बीच अंतर खड़ा हो गया है और आवासीय मूल्य आम जनता की पहुंच से दूर हो गए हैं।
इसलिए आज की तारीख में सबसे आकर्षक सेगमेंट अगर कोई है तो वह किफायती मकानों वाला अफोर्डेबल हाउसिंग सेगमेंट ही है। रिजर्व बैंक के अनुसार मेट्रो एवं गैर मेट्रो शहरों में 65 लाख रुपये तथा 50 लाख रुपये के फ्लैट/मकान को अफोर्डेबल कहा जा सकता है। हालांकि आमदनी बढ़ी है, लेकिन आवासीय बाजार के प्रति भरोसे की कमी के कारण लोग अपनी अतिरिक्त आमदनी को मकान में लगाने से हिचक रहे हैं। चूंकि खुद का मकान अब भी ज्यादातर लोगों की पहली प्राथमिकता है, लिहाजा वक्त आने पर लोगों का भरोसा लौटेगा और वे अपने घर का सपना पूरा करने का प्रयास अवश्य करेंगे।
इस दिशा में सरकार भी अपनी ओर से प्रयास कर रही है। किफायती मकानों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए उसने कई स्कीमें लांच की हैं। इनमें 'हाउसिंग फॉर ऑलÓ और 'स्मार्ट सिटीजÓ की योजनाएं शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, संसद में रियल एस्टेट बिल का पास होना भी हर्ष का विषय है। इस विधेयक से संपूर्ण उद्योग अधिक पारदर्शी होगा तथा मकान खरीदने वालों के हितों की रक्षा की दिशा में बड़ी भूमिका निभाएगा।
अफोर्डेबल हाउसिंग की दिशा में हाल के बजट में भी कुछ सुधारों का एलान किया गया है। इनमें ये शामिल हैं:
-चार महानगरों में 30 वर्ग मीटर तक तथा अन्य नगरों में 60 वर्ग मीटर तक के फ्लैट वाली परियोजनाओं, जिन्हें जून 2016 से मार्च 2019 के दौरान मंजूरी मिली हो और तीन साल में पूरा किया गया हो, से प्राप्त लाभ पर 100 फीसद टैक्स डिडक्शन की सुविधा।
-पहला मकान खरीदने वाले क्रेताओं को 50 लाख रुपये तक मूल्य वाले मकान/फ्लैट के लिए 35 लाख रुपये तक के होम लोन पर ब्याज पर सालाना 50,000 रुपये तक अतिरिक्त डिडक्शन की सुविधा।
-केंद्र अथवा राज्य सरकार की किसी भी स्कीम के तहत 60 वर्ग मीटर तक के किफायती मकान के निर्माण पर सर्विस टैक्स से छूट।
देश भर के डेवलपर अब सैशे मार्केटिंग की वही रणनीति अपना रहे हैं, जिसे 1990 के दशक में एफएमसीजी कंपनियों ने अपनाया था। जब बाजार में ऊंची कीमतों के कारण मांग गिर रही थीं तब डेवलपर्स ने क्रेताओं की सहूलियत के लिए मकानों का आकार घटाना शुरू कर दिया था। पिछले पांच वर्षों में मुंबई में फ्लैट्स के औसत आकार में 26.4 फीसद की कमी आ गई है। जबकि बेंगलुरु में फ्लैटों का औसत आकार 23.7 फीसद, कोलकाता में 24 फीसद और चेन्नई में 22.2 फीसद घटा है। इससे लागत और फलस्वरूप कीमतें घटने से जो लोग मकान नहीं ले रहे थे वे भी लेने लगे। इसके लिए उन्होंने अपने दफ्तरों के नजदीक के छोटे-छोटे फ्लैट्स को भी खुशी-खुशी मंजूर कर लिया।
इसके साथ हाउसिंग सेक्टर में बाजार की चुनिंदा शक्तियां भी कार्य कर रही हैं। भारत 7.7-7.8 फीसद की स्वस्थ विकास दर के साथ आगे बढ़ रहा है तथा मार्च से औद्योगिक विकास भी फिर से पटरी पर आता दिखाई पडऩे लगा है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर सकारात्मकता की ओर मुड़ गई है। राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण, कच्चे तेल की कीमतों में कमी तथा अच्छे मानसून की भविष्यवाणी ने इसमें सोने पर सुहागा का काम किया है। सब कुछ बेहतर होता दिखाई पड़ रहा है। आरबीआइ जनवरी, 2015 से अब तक रेपो दर में 1.5 फीसद की कमी कर चुका है। इसका असर होम लोन दरों में कमी के रूप में सामने आने लगा है। ये सारी बातें मिलकर लोगों को
मकान खरीदने के लिए प्रेरित कर रही हैं और यही वजह है कि मकानों की बिक्री फिर से बढऩे लगी है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मकानों की बिक्री में 9 फीसद का इजाफा हुआ है। ऐसे में आप किस बात का इंतजार कर रहे हैं।