मुनाफावसूली की निरर्थक व्याकुलता़
निवेशक पूछ रहे हैं कि क्या यह शेयर बेचकर मुनाफावसूली का सही वक्त है? अगर आप म्यूचुअल फंडों के निवेशक हैं और यह सवाल कर रहे हैं तो आप बड़ी गलती कर रहे हैं। सही कहा जाए तो इस वक्त ऐसा प्रश्न पूछा जाना स्वाभाविक है। पिछले साल के जोरदार
निवेशक पूछ रहे हैं कि क्या यह शेयर बेचकर मुनाफावसूली का सही वक्त है? अगर आप म्यूचुअल फंडों के निवेशक हैं और यह सवाल कर रहे हैं तो आप बड़ी गलती कर रहे हैं। सही कहा जाए तो इस वक्त ऐसा प्रश्न पूछा जाना स्वाभाविक है। पिछले साल के जोरदार उछाल के बाद 2015 में स्टॉक मार्केट ढीला पड़ गया है। पूरी दुनिया में मुनाफावसूली इक्विटी निवेश संस्कृति का अभिन्न अंग है। निवेश से जुड़े शब्दकोष में इसे ‘पर्याप्त अधिमूल्यन के बाद लाभ कमाने के लिए प्रतिभूति की बिक्री का कार्य’ के रूप में परिभाषित किया गया है। पहले आप कोई स्टॉक खरीदते हैं। जब लगता है कि इसमें अपेक्षानुसार वृद्धि हो गई है तो फिर उसे बेच देते हैं। इससे मुनाफा प्राप्त होता है।
इक्विटी में निवेश करने वालों में यह बात प्रचलित है कि मुनाफावसूली से कभी किसी को नुकसान नहीं हुआ। यह वक्तव्य बहुत सीधा नजर आता है और किसी को भी नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत भी हो सकता है। मगर समस्या यह है कि इक्विटी म्यूचुअल फंडों के निवेशकों ने भी इस विचार को अपना लिया है। ऐसे ही एक इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेशक ने मुझसे सवाल किया, ‘मैं लंबे समय से अमुक फंड में निवेश करता आ रहा हूं। अब जब बाजार में बढ़त रुक गई है तब मैंने मुनाफावसूली के इरादे से अपनी सभी यूनिटों का नकदीकरण करा लिया है। अब इस पैसे का निवेश मुझे कहां करना चाहिए?’
आपके विचार से इस प्रश्न का सही उत्तर क्या है? मेरा उत्तर तो यह है : यदि निवेशक को किसी चीज पर पैसा खर्च करने की जरूरत है तब तो उसे ऐसा करना चाहिए। अन्यथा, उसे किसी इक्विटी फंड में इसे लगा देना चाहिए। और चूंकि अमुक फंड ने उसे अच्छा लाभ प्रदान किया है लिहाजा, बेहतर होगा कि वह उसी में उस पैसे को लगाए। क्या आपको लगता है कि मैं मजाक कर रहा हूं? शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि किसी इक्विटी फंड में महज मुनाफावसूली के नाम पर मुनाफा वसूली करने का कोई मतलब नहीं है।
मुनाफावसूली का मतलब है कि आपको लगता है कि आपका निवेश उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां से इसके और अधिक बढ़ने की संभावना नहीं है। अब आपको उस पैसे को किसी अन्य स्टॉक में लगाने की जरूरत है। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि चूंकि रकम में एक निश्चित स्तर तक बढ़ोतरी हो गई है, लिहाजा अब इस मुनाफे को काट ही लिया जाए। यदि आप तुरंत ही किसी दूसरे स्टॉक में निवेश करते हैं तो आपने उस मुनाफे को फिर से खो दिया। इस तरह की मुनाफावसूली का तभी कोई औचित्य होता है जब किसी कारणवश आपको प्रत्येक स्टॉक से प्राप्त होने वाले लाभ की अलग-अलग गणना करनी हो। मगर यदि आप अपने निवेश को पोर्टफोलियो के तौर पर देखते हैं, जिसके फायदे आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, तो तब ऐसा करने को बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं माना जाएगा।
वैसे भी कोई भी स्थिति हो, इक्विटी फंडों में फंड मैनेजर हमेशा अपनी भूमिका निभाता रहता है। वह पोर्टफोलियो के स्टॉक्स को आवश्यकतानुसार खरीदता, बेचता रहता है। इसलिए बाजार उठने पर फंड को बेचने और गिरने पर खरीदने का अब निवेश रणनीति के रूप में कोई अर्थ नहीं रह गया है।
मेरे हिसाब से मुनाफावसूली के पीछे कहीं न कहीं व्याकुलता की जड़े हैं। निवेशकों का एक वर्ग है जो बाजार में जरा सी भी बढ़ोतरी पर बेचैन हो जाता है। निवेश में एक पैसे की भी बढ़ोतरी हुई नहीं कि वे यह सोचकर व्यग्र हो जाते हैं कि कहीं यह चला न जाए। और जैसे ही बाजार में जरा सी स्थिरता आती है वे दुम दबाकर भाग जाते हैं।
फंड का फंडा , धीरेंद्र कुमार