नहीं आसान निवेश का फैसला
वेश का फैसला करना आसान नहीं होता। कई बार जो लोग इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में लगातार निवेश करने का अनुभव रखते हैं उनके भी बड़ी राशि के निवेश का फैसला करने में पसीने छूट जाते हैं। सामान्य तौर पर एसआइपी (सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान) तभी बढ़िया काम करता है जब आप
वेश का फैसला करना आसान नहीं होता। कई बार जो लोग इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में लगातार निवेश करने का अनुभव रखते हैं उनके भी बड़ी राशि के निवेश का फैसला करने में पसीने छूट जाते हैं। सामान्य तौर पर एसआइपी (सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान) तभी बढ़िया काम करता है जब आप अपनी मासिक आमदनी का एक हिस्सा नियमित तौर पर इसमें निवेश करते रहे हैं। हर महीने इस फंड में पैसा जुटता जाता है। इससे निवेश की लागत कम होती है और एकमुश्त रिटर्न भी बढ़िया मिलता है। यह साबित हो चुका है कि निवेश का यह पैटर्न तेजी से अच्छा रिटर्न कमाने का एक शानदार तरीका है। जो भी निवेशक इसमें दो वर्षों तक निवेश कर लेता है वह इसका मुरीद बन जाता है।
लेकिन समस्या तब होती है जब बड़ी राशि के निवेश का समय आता है। कई बार निवेशकों के पास अतिरिक्त फंड आ जाता है और तब उनके लिए इसके निवेश को लेकर फैसला करने में होश उड़ जाते हैं। जैसे कई बार बड़ा बोनस मिल जाता है, कई बार संपत्ति बिक्री से अतिरिक्त राशि आ जाती है। जो लोग भी एसआइपी की खूबियों के बारे में जानते हैं वह यह भी जानते हैं कि अतिरिक्त आमदनी को लिक्विड फंड में लगाना ही उचित होता है। इसके बाद इस राशि का एक हिस्सा हर महीने एसआइपी में ट्रांसफर कर दिया जाए। एक फंड से दूसरे फंड में निश्चित अंतराल में की जाने वाली निवेश प्रक्रिया को एसटीपी यानी सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान कहते हैं।
लेकिन एक अहम फैसला यह करना होता है कि निवेश की अवधि क्या हो? वैसे तो यह तीन से चार महीने से लेकर कई वर्षों के बीच विभाजित हो सकती है। लेकिन यह फैसला करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता क्योंकि एक बड़ी राशि को कितने हिस्सों में बांटा जाए इसका कोई ठीकठाक फार्मूला नहीं बता सकता। एक बड़ी राशि के निवेश का सही तरीका यही है कि इसे कुछ हिस्सों में बांट दिया जाए और एकमुश्त राशि कहीं भी निवेश नहीं की जाए। अब एक उदाहरण देखिए। किसी को दिसंबर, 2007 में 20 लाख रुपये निवेश करने हैं। वह पूरी राशि इक्विटी फंड में लगा देता है।
चार महीने में उसकी निवेशित राशि घटकर 10 लाख रुपये हो जाती है। कुछ मामलों में तो यह राशि घटकर पांच-छह लाख रुपये भी हो सकती थी। ऐसे में वह शख्स फिर कभी शेयर बाजार का रुख नहीं करेगा। मूल राशि बनाने में ही उसे छह वर्ष का समय लग जाएगा।अब यह सोचिए कि यह निवेशक अपनी राशि को 12 महीनोंमें निवेश करता है। इस फैसले से बाजार में गिरावट आने के बावजूद वह महज 10 फीसद राशि ही खोता है। निवेश की पूरी लागत काफी कम होगी। एक वर्ष तक लगातार छोटी छोटी राशि निवेश करने से वह बाजार के बड़े जोखिमों से अपने आपको सुरक्षित कर सकता है। अब पिछले एक दशक के दौरान बाजार के मूड की बात की जाए तो देखेंगे कि एसटीपी भी कई बार धोखा दे देते हैं। उन्हें पूरी तरह से जोखिमों से परे नहीं माना जा सकता।
अगर बाजार लंबे समय तक तेजी में रहता है जैसा 2003 से 2008 तक देखा गया और उसके बाद इसमें गिरावट का दौर देखा जाता है तो एसटीपी भी हानि से नहीं बचा सकता। इक्विटी तो इक्विटी ही है और निवेश का चाहे जो भी तरीका है जोखिमों को पूरी तरह से खत्म तो नहीं किया जा सकता। पिछले दो दशकों के भारतीय बाजार के रवैये को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर एकमुश्त राशि निवेश करना है तो उसे दो से तीन वर्षों के अंतराल में विभाजित कीजिए।
फंड का फंडा, धीरेंद्र कुमार