अन्य उभरते बाजारों से बेहतर है भारत
यह मान भी लिया जाए कि तात्कालिक उथल-पुथल से बचने और बाद में निवेश के इरादे से निवेशक फिलहाल बिकवाली करेंगे तो भी दोबारा निवेश के लिए उन्हें प्रवेश द्वार मिलने में दिक्कत हो सकती है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में वृद्धि से इन्कार
यह मान भी लिया जाए कि तात्कालिक उथल-पुथल से बचने व बाद में निवेश के इरादे से निवेशक फिलहाल बिकवाली करेंगे तो भी दोबारा निवेश के लिए उन्हें प्रवेश द्वार मिलने में दिक्कत हो सकती है।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में वृद्धि से इन्कार व महत्वपूर्ण बाजारों के हालात को देखते हुए देश ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद कर रहा है। पिछले पखवाड़े विदेशी निवेशकों द्वारा शेयरों की बड़े पैमाने पर बिक्री से शेयर सूचकांकों में एक ही दिन में भारी गिरावट देखने में आई। इस ग्लोबल गिरावट के फलस्वरूप भारतीय बांड बाजार भी उथल-पुथल का शिकार हो सकता है।
क्या भारतीय बांड बाजार ग्लोबल गिरावट से प्रभावित हो सकता है?
भारतीय फिक्स्ड इनकम बाजार की स्थिति अन्य बाजारों के मुकाबले अपेक्षाकृत बेहतर रहेगी। इसकी वजह यह है कि ग्लोबल विकास की दर कमजोर है। चीन की मंदी के कारण आने वाले समय में इसमें और गिरावट आएगी। वृहत स्तर पर देखा जाए तो भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। हालांकि इक्विटी बाजार में विदेशी निवेशक बिकवाली कर सकते हैं, क्योंकि शेयरों से होने वाली आमदनी में गिरावट का रुख है।
लेकिन डेट मार्केट में हमें ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती, क्योंकि सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में निवेश सीमित है। इसकी बहुत कम संभावना है कि जिन निवेशकों के पास सरकारी प्रतिभूतियां हैं, वे उन्हें बेचेंगे। यह इस तथ्य से भी प्रमाणित है कि शेयर बाजारों में हालिया गिरावट के बावजूद हमारे बांड मार्केट में बहुत कम बिकवाली देखने को मिली है।
‘हॉट मनी’ और फेड दरों में वृद्धि
यह धारणा सही नहीं है कि डेट में ज्यादातर विदेशी निवेश हॉट मनी है और फेड की दरों में बढ़ोतरी होते ही इसे निकाल लिया जाएगा। रुपया डेट में हालिया एफपीआइ निवेश ज्यादातर दीर्घकालिक प्रकृति का है और इसके हाल-फिलहाल निकलने की संभावना नहीं है। अहम सवाल यह भी है कि क्या विदेशी निवेशक निवेश करेंगे?
वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए निवेश के लिहाजा से अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले भारत अब भी अपेक्षाकृत ज्यादा अनुकूल जगह है। यदि यह मान भी लिया जाए कि तात्कालिक उथल-पुथल से बचने व बाद में निवेश के इरादे से निवेशक फिलहाल बिकवाली करेंगे तो भी दोबारा निवेश के लिए उन्हें प्रवेश द्वार मिलने में दिक्कत हो सकती है। यदि कोई बड़ा संकट सामने आता है, मसलन अगर चीन अपनी मुद्रा का 10 फीसद अवमूल्यन करता है तो हालात में जबरदस्त बदलाव हो सकता है।
महंगाई का जोखिम
महंगाई में लोगों की उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से गिरावट आ सकती है। दुनिया मुद्रास्फीति या मुद्रा संकुचन के दो प्रकार के क्षेत्रों में बंटी है। इसलिए इस बात की संभावना कम है कि भारत लंबे समय तक अप्रभावित रह सकता है। इस लिहाज से बुनियादी मुद्रास्फीति दर चिंता की वजह बन सकती है।
10 वर्षीय जी-सेक और रेपो दर में बड़ा अंतर क्यों रहता है?
इसके दो प्रमुख कारण हैं। एक, ब्याज दरों में कमी का बाजार पर असर दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरे सरकारी प्रतिभूतियों की मांग व आपूर्ति के बीच काफी अंतर है। पिछले साल चुनाव के बाद इसी वक्त विदेशी निवेशकों की ओर से सरकारी प्रतिभूतियों की मांग में तेज बढ़ोतरी देखने में आई थी। यह बढ़कर 57,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गई थी। इस साल वैसा कुछ देखने में नहीं आया है। हालांकि अगस्त की नीति के बाद भविष्य के प्रति निवेशकों का नजरिया बदल गया है। आरबीआइ भी अब एफपीआइ सीमाओं पर नए सिरे से विचार कर रहा है। इस तरह के कुछ कदमों से जी-सेक की खरीद सीमित हो सकती है। उस स्थिति में सबसे बुरा दृश्य यह होगा कि आरबीआइ अगले साल के अंत तक प्रमुख नीतिगत दरों में कोई बदलाव न करे। यदि ऐसा होता है तो जी-सेक में निवेश और सीमित हो जाएगा।
गिल्ट फंडों की स्थिति
फिलहाल गिल्ट व बांड फंडों के निवेशक, खासकर वे जिन्होंने मार्च, 2015 के आसपास निवेश किया है चिंतित हैं। उन्हें हमारी सलाह है कि अपने निवेश को लंबे समय तक बनाए रखें। भले ही इसके लिए अल्पकाल में कुछ कष्ट उठाना पड़े। हालांकि निवेशक गिल्ट फंडों में नया निवेश करने से बच सकते हैं। विकल्प के तौर पर वे इनकम एक्रूवल फंडों में निवेश का रास्ता अपना सकते हैं।
अमनदीप चोपड़ा,
हेड, फिक्स्ड इनकम,
यूटीआइ एमएफ