बाहर नहीं जाएंगे ज्यादा विदेशी निवेशक
'अमेरिका में ब्याज दरें बढऩे का भारत पर आप क्या असर देख रहे हैं?
'अमेरिका में ब्याज दरें बढऩे का भारत पर आप क्या असर देख रहे हैं?
-भारतीय अर्थव्यवस्था सिर्फ अमेरिका में ब्याज दरों में की गई एक वृद्धि से प्रभावित नहीं होगी बल्कि यह बढ़ोतरी कितनी बार होती है और कब होती है, इसका असर ज्यादा पड़ेगा। वैस भी अमेरिका में ब्याज दरों की बढ़ोतरी की बात वर्ष 2013 से हो रही है। लेकिन देश की स्थिति काफी बदल चुकी है। तब चालू खाते में घाटे (करेंट एकाउंट डिफीसिट) की स्थिति काफी खराब थी। अब हम इसको लेकर काफी बेहतर हालात में है। ताजे आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि ब्याज दरों में एक और बढ़ोतरी जल्द ही हो सकती है। इसका कुछ असर तो निश्चित तौर पर दिखाई देगा। लेकिन मैं एक बार फिर कहूंगा कि कितनी बार अमेरिकी केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है, इसका असर ज्यादा होगा। शुरुआती तौर पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का फैसला होने के बाद ही उद्योग जगत व निवेशकों को आगे का अंदाजा होगा। दूसरे देशों की स्थिति भी उसके बाद ही स्पष्ट होगी विभिन्न देशों की स्थिति को देखकर निवेश करने का फैसला करना तभी निवेशकों के लिए आसान होगा। मुझे लगता है कि भारत अभी काफी अच्छी स्थिति स्थिति में है। कुछ निवेशक तो बाहर जाएंगे लेकिन मुझे नहीं लगता कि बड़े पैमाने पर निवेशक यहां से बाहर जाएंगे। इसलिए अर्थव्यवस्था को बहुत खतरा नहीं है।
Ó अगर विदेशी निवेशक पैसा निकालना शुरू करते हैं तो क्या इससे घरेलू निवेशकों पर कुछ असर पड़ेगा?
- पहले तो इस बात के आसार कम हैं कि विदेशी निवेशक भारत से ज्यादा निवेश बाहर निकालेंगे। कुछ निवेशक निकाल सकते हैं लेकिन घरेलू संस्थागत निवेशक इस खाली स्थान को भरने की स्थिति में हैं। हमारी बीमा कंपनियां, पेंशन फंड्स, म्यूचुअल फंड्स जितनी ज्यादा रकम जुटाने में सफल होंगी, उनका इक्विटी व ऋ ण बाजार में निवेश उसी गति से बढ़ेगा। यह बदलाव देश की बाजार व्यवस्था को ज्यादा मजबूती देगा क्योंकि घरेलू निवेशक विदेशी संस्थागत निवेशकों के सामने एक बेहतर विकल्प बनकर उभरेंगे। वैसे भी अभी तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय ऋ ण बाजार में 1.3 अरब डॉलर और इक्विटी बाजार में 2.47 अरब डॉलर का निवेश किया है जबकि घरेलू निवेशकों ने 8.5 अरब डॉलर का निवेश किया है।
Ó छोटे वित्तीय बैंक जैसे पेमेंट बैंक वगैरह को खोलने का लाइसेंस दिया गया है, इसका क्या असर पड़ते देख रहे हैं ?
- इसका पूरे वित्तीय बाजार व सेवाओं पर काफी बड़ा असर पड़ेगा। वैसे भी तकनीक में जिस तरह से बदलाव आ रहा है, नियमन में जिस तरह से बदलाव आ रहा है और सबसे बड़ी बात ग्राहक जिस तेजी से बदल रहे हैं उसे देखते हुए वित्तीय सेवा बाजार में कुछ भी स्थायी नहीं रहने वाला है। क्रिप्टो करेंसी (बिटकॉइन की तरह की छद्म मुद्रा) से लेकर पेमेंट और स्मॉल बैंक तक इसी बदलाव का नतीजा है। मुझे लगता है कि पेमेंट बैंक के खासतौर पर काम शुरू करने से बैंकिंग व्यवस्था में कई बदलाव आएंगे। जिन्हें लाइसेंस दिया गया है, उनमें से कुछ संस्थान अगले वित्त वर्ष से काम करना शुरू कर सकते हैं। मोबाइल फोन और इससे जुड़ी तकनीक इन बैंकों के लिए काफी अहम साबित होने जा रही है। भारत में औसतन 15.5 खरब डॉलर की राशि का भुगतान सालाना किया जाता है। अभी इसमें मोबाइल बैंकिंग की हिस्सेदारी महज 0.1 फीसद है लेकिन यह कुछ वर्षों मे बढ़कर 10 फीसद हो सकती है। इस हिसाब से अगले सात वर्षों में मोबाइल बैंकिंग के जरिए भुगतान का आकार 200 फीसद बढ़ कर 3.5 खरब डॉलर का हो सकता है। यह व्यवस्था मौजूदा बैंकों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगी लेकिन आम ग्राहकों के लिए बहुत सुविधाजनक होगी। वे दिन दूर नहीं जब आप छोटी मोटी खरीदारी का भुगतान भी मोबाइल के जरिए कर सकेंगे।
अजय श्रीनिवासन
सीईओ फाइनेंशियल सर्विसेज
आदित्य बिड़ला ग्रुप