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ईपीएफओ को सहनी होगी उथल-पुथल

जब मैं छोटा बच्चा था, तब मेरे चाचा ने मुझे कुछ बीज बोने के लिए दिए। मैने वे बीज लॉन में बो दिए। हर दिन उनमें पानी देने लगा। हर दिन स्कूल से लौटकर मैं घर आता। लॉन में बोए बीज को कुरेदकर देखता कि वह उगा है कि नहीं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2015 11:11 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2015 11:19 AM (IST)
ईपीएफओ को सहनी होगी उथल-पुथल

जब मैं छोटा बच्चा था, तब मेरे चाचा ने मुझे कुछ बीज बोने के लिए दिए। मैने वे बीज लॉन में बो दिए। हर दिन उनमें पानी देने लगा। हर दिन स्कूल से लौटकर मैं घर आता। लॉन में बोए बीज को कुरेदकर देखता कि वह उगा है कि नहीं। यह बताने की जरूरत नहीं कि इसका कोई नतीजा नहीं निकला। बाद में मुझे एक कहानी पता चली जिसमें एक बंदर ऐसा ही करता था। कई वर्ष बाद मुझे यह एहसास हुआ कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) भी इक्विटी निवेश के संबंध में भी ठीक ऐसा ही कर रहा है।

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चार महीने पहले ईपीएफओ ने अपनी निधि का एक छोटा हिस्सा शेयर बाजार में निवेश करने का फैसला किया। उस समय भी ऐसे लोगों की कमी नहीं थी, जिनका दावा था कि सरकार ने कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई को शेयर बाजार में जुआ खेलने के लिए इजाजत दी है। ईपीएफओ इसको लेकर चिंतित है कि पहली तिमाही में इक्विटी निवेश पर मात्र डेड़ प्रतिशत सालाना रिटर्न प्राप्त हुआ है। इसने केंद्रीय ट्रस्टी बोर्ड को निवेश पर रिपोर्ट सौंपी है, जिसने इस रिटर्न पर चिंता जाहिर की है। बोर्ड में श्रम संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। बचत व निवेश के कारोबार में, भले ही वह व्यक्तिगत हो या संस्थािगत, तीन महीने बाद ही इक्विटी निवेश की समीक्षा करने का विचार बेकार है। वास्तव में यह बद से भी बदतर या कहें नुकसानदायक है।

बाजार में उथल-पुथल इक्विटी निवेश की प्रक्रिया का हिस्सा है। आप जितना ही अल्पाावधि निवेश पर ध्यान देंगे उतना ही आपका ध्यान दीर्घकालिक रिटर्न से हटेगा। विचार करके देखिए। पिछले 20 वर्षों में सेंसेक्स करीब आठ गुना बढ़ गया है। इन दो दशकों के दौरान जो लोग भी 80 तिमाहियों में तिमाहीवार रिटर्न का मूल्यांकन कर रहे थे, उनके लिए यह समय धड़कनें बढ़ाने वाला रहा होगा। इस दौरान 34 तिमाहियो में घाटा हुआ, जबकि 46 में लाभ। जिन तिमाहियों में घाटा हुआ उसमें से 13 ऐसी थीं, जब 10 प्रतिशत से अधिक नुकसान हुआ। 25 तिमाहियों में 10 प्रतिशत से अधिक लाभ हुआ। जिस तिमाही में सबसे अधिक घाटा हुआ वह 24 प्रतिशत था जबकि सबसे बेहतर तिमाही में 48 प्रतिशत मुनाफा हुआ।

इस तरह दीर्घकाल में यह सब प्रासंगिक नहीं है। इक्विटी तथा इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेशकों ने यह सब झेला है और अच्छा रिटर्न पाया है। इक्विटी निवेशक दुनियाभर में दशकों से यह सब कर रहे हैं। हालांकि समाजवादियों के अलावा दुनिया में शायद ही कोई और हो जिसको यह बात समझ न आए। यही वर्ग भारत के श्रम संगठनों को लोकलुभावन बातें सिखाता है। अगर ईपीएफओ में इक्विटी रिटर्न तिमाही-दर तिमाही निगरानी करने की प्रक्रिया है तो इसे तत्काल खत्म कर देना चाहिए। वजह यह है कि एक वक्त ऐसा भी आएगा, जब किसी तिमाही में बड़ा नुकसान होगा। जब यह होगा तो जो भी राजनीतिक रूप से सशक्त होगा, ईपीएफओ से इक्विटी निवेश निकालने को कहेगा। असर यह होगा कि ईपीएफओ ने जो शेयर महंगे खरीदे थे, उन्हें कम दाम पर बेचने लगे। ठीक उस निवेशक की तरह जो इक्विटी को जाने समझे बगैर निवेश शुरू कर देता है। वास्तव में ईपीएफओ का मामला उस निवेशक से भी खराब हो सकता है। वजह यह है कि निवेशक अपने हित की सोचेगा। वह आखिरकार यह समझ लेगा कि इक्विटी से उसे अधिक रिटर्न प्राप्त होगा। इस मामले में सबसे ज्यादा विरोध उन लोगों की ओर से हो रहा है जो इसमें सिर्फ राजनीति करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।

इसका जवाब एनपीएस है। ईपीएफओ को निकलने की जरूरत नहीं, जबकि एनपीएस सरकारी कर्मचारियों के लिए ठीक तरह से चल रही है। ईपीएफओ को अलग निवेश प्रणाली अपनानी चाहिए, एनपीएस जैसी। ईपीएफओ जो रिटर्न दे रहा है वह महंगाई दर से कम है। इसलिए इससे वास्तविक रिटर्न प्राप्त नहीं होगा। सुनिश्चित आय वाले निवेश से संबद्ध होने के कारण रिटर्न महंगाई से कम रहा है। ईपीएफओ का सुनिश्चित आय फॉर्मूला इसके सदस्यों के लिए जोखिम की तरह है।

धीरेंद्र कुमार


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