पॉलिसी लैप्स होने पर क्या करें?
खर्चे का पुराना सिद्धांत है जब आदमी वित्तीय संकट में फंसता है तो सबसे पहले गैर जरूरी खर्चों को काट देता है। कई बार लोग बीमा पॉलिसियों पर होने वाले खर्चे को भी गैर जरूरी वर्ग में शामिल कर लेते हैं।
खर्चे का पुराना सिद्धांत है जब आदमी वित्तीय संकट में फंसता है तो सबसे पहले गैर जरूरी खर्चों को काट देता है। कई बार लोग बीमा पॉलिसियों पर होने वाले खर्चे को भी गैर जरूरी वर्ग में शामिल कर लेते हैं। वे यह नहीं जानते कि कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं। जीवन बीमा पॉलिसी चाहे किसी भी वजह से लैप्स हो जाए, उसके परिणाम गंभीर होते हैं।
सबसे पहले तो आपको बीमा कवरेज का फायदा नहीं मिलता है। यानी अगर बीच में कुछ हो गया तो आपको कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलेगा, न ही आपके परिवार व आश्रितों को कोई मुआवजा। कई बार लोग पॉलिसी के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते और उनकी लापरवाही से भी यह लैप्स हो जाती है। ग्राहकों को यह मालूम होना चाहिए कि हर पॉलिसी के साथ एक महीने यानी 30 दिनों का समय ग्रेस पीरियड होता है। कई बार लोगों को प्रीमियम अदा करने की अवधि समाप्त हो जाती है और उन्हें याद भी नहीं रहता। ऐसे लोगों के लिए 30 दिनों का ग्रेस पीरियड होने से किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।
हर कंपनी ऐसे ग्राहकों को फिर से पॉलिसी की सेवा शर्तों का लाभ दे देती है। लेकिन एक बार यह ग्रेस पीरियड की अवधि भी खत्म हो जाती है तो फिर ग्राहकों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पॉलिसी के तमाम लाभ से ग्राहकों को वंचित करने का अधिकार कंपनी के पास होता है। यह आर्थिक तौर पर भी नुकसादेह होता है, क्योंकि आपने अभी तक जो प्रीमियम दिया हुआ था, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता।
ग्राहकों को मैं सुझाव देना चाहूंगा कि जब पॉलिसी खरीदें, तब पता कर लें कि प्रीमियम लेट भुगतान पर क्या कायदे कानून हैं, ताकि भविष्य में आप सतर्क रह सकें। इसके अलावा जब कंपनी दोबारा पॉलिसी चालू करती है तो एक बार फिर सारी प्रक्रिया पूरी की जाती है। मसलन, हेल्थ चेकअप किया जाता है। कागजों की जांच-पड़ताल की जाती है। पहचान का सत्यापन करवाया जाता है। साफ है कि किसी भी बीमा पॉलिसी का लैप्स हो जाना कई तरीके से भारी पड़ता है। ऐसे में सबसे अहम है कि आप इसका ख्याल रखें कि तय समय पर बीमा प्रीमियम भुगतान करें।
बेहतर होगा निश्चित अवधि पर बैंक से सीधे प्रीमियम भुगतान की व्यवस्था कर दी जाए। यह भी अच्छा होगा कि वार्षिक के बजाय हर महीने भुगतान का विकल्प चुनें। इसे सीधे बैंक खाते से अदा करने की व्यवस्था कर दें। हर महीने की राशि भी कम होगी और ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा। बीमा करवाने से पहले कंपनी से इस बारे में विस्तार से बात कर लें। साथ ही, जितने भी निवेश संबंधी खर्चें हैं पहले उन्हें अपनी आय से निकाल लें, शेष जो राशि बचे उससे ही अपना काम चलाएं।
अमित कुमार राय
चीफ डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिसर
एगॉन रेलीगियर लाइफ इंश्योरेंस